बुन्देलखण्ड का दशरथ मांझी 'कृष्णा कोल', जिसने खोद डाला पानी पीने के लिए कुंआ!

Update: 2019-07-13 15:49 GMT

रिपोर्ट-आकाश मिश्र

एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि जमीन का सीना चीर दिया और पानी निकाल लिया । कहते हैं कुछ कर गुजरने का जूनून पहाड़ में भी छेद करके पानी निकाल सकता है । जी हां ऐसा ही कुछ हुआ है बुन्देलखण्ड के चित्रकूट जिले के एक छोटे से गांव बडेहार के पुरवा में । जहां 85 वर्ष के एक वृध्द ने अपने मेहनत और जूनून से ऐसी मिशाल कायम की जिसने गांव में पेयजल संकट ही दूर कर दिया ।

सबसे खास बात ये है कि कृष्णा कोल ने महात्मा गांधी से मुलाकात भी की थी ,जिसके बाद से उनके अंदर ऐसी प्रेरणा जागी की उन्होंने ठाना की वो गांव में कुआं खोदकर धरती के सीने से पानी निकालकर रहेंगे और हुआ भी वही पाठा के पठारी भाग में कृष्णा कोल ने रात दिन एक करके 50-60 फीट गहरे कुंए को खोदकर गांव की प्यास मिटाई। फिलहाल अब तो देखते ही देखते गांव में पेयजल की आपूर्ति व्यवस्था काफी बढ़िया हो गई है । लेकिन कृष्णा कोल ने जिस वक्त कुंए की खुदाई शुरू की थी उस वक्त दशकों पहले पेयजल का जबरदस्त संकट था । लेकिन इन्होंने हार नही मानी और अपने जूनून से धरती के अंदर से भी पानी निकाल लिया । फिलहाल इस व्यक्ति ने सूखे बुन्देलखण्ड में एक मिशाल कायम की है उस सिस्टम को भी जोरदार तमाचा मारा है जो यहां तक कभी पहुंचा ही नही । इनका गांव चारो तरफ से जंगल से घिरा हुआ है ऐसे में यहां रहने के निर्णय लेना भी दशकों पहले कृष्णा कोल का ही था । आज देखते ही देखते चौथी पीढ़ी सामने खड़ी है लेकिन स्थिति वैसी है । गांव में शिक्षा एव स्वास्थ्य के लिए तो कभी कुछ हुआ ही नही ।

गांव आज भी बदहाल स्थिति में

मानिकपुर ब्लाक में पड़ने वाला गढ़चपा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है बड़ाहार गांव । सरकारी सिस्टम और सियासत की अनदेखी का जीता जागता उदाहरण है ये गांव । मौजूदा समय मे इस गांव में 35 आदिवासी परिवार रहते हैं लेकिन सम्पर्क मार्ग न होने के कारण न तो इनके पास शिक्षा व्यवस्था पहुंच सकी और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही अन्य किसी तरह की सुविधाएं । फिलहाल वर्तमान प्रधान रामेंद्र पांडेय की की कड़ी मेहनत के कारण फिलहाल गांव में प्रधानमंत्री आवास पहुंच गए हैं और बिजली भी । लेकिन सरकारी सिस्टम औए सियासत की अनदेखी के चलते गांव वाले आज भी मूलभूत सुविधाओं से बहुत दूर हैं। सबसे ज्यादा आश्र्चर्य की बात ये है कि इस गांव में कभी भी कोई अधिकारी नही गया ।

महात्मा गांधी से मिली प्रेरणा

कृष्णा कोल ने बताया कि उन्हें अच्छे से याद है जब वो 15 साल की उमर के थे और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया करते थे । इसी के चलते उनकी भेंट महात्मा गांधी से भी हुई थी । कृष्ना कोल की मानें तो यही था बदलाव का समय , महात्मा गांधी से भेंट के बाद उनमें बहुत बदलाव आया । गांव आकर उन्होंने इसी जंगल मे घर परिवार बसाया और धीरे धीरे परिवारों की संख्या बढ़ती गई । पेयजल संकट के कारण कई वर्षों तक गांव वालों को इधर उधर भटकना पड़ता था । कृष्ना कोल ने ठाना की वो इस समस्या का हल निकालेंगे और फिर क्या था उन्होंने उठाया हथौड़ा और फावड़ा लग गए कुएं की खुदाई में । शुरुआत में उन्हें बहुत मुश्किलें हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी । उन्हें रिश्तेदारो ने भी मदद की और हाड़तोड़ मेहनत के बाद आखिर कुएं की खुदाई का काम पूरा हुआ, पानी निकला ।

पेयजल समस्या समाप्त करके पेश की मिशाल

बुन्देलखण्ड के दशरथ मांझी कृष्णा कोल ने अपनी मेहनत और जूनून से ये निश्चित कर दिया कि अगर आप किसी भी कार्य को ठान लें तो आप निश्चित रूप से उसे साकार कर सकते हैं । बुन्देलखण्ड का समूचा क्षेत्र पेयजल संकट से हमेशा जूझता रहा है । ऐसे में कृष्णा कोल का भागीरथ प्रयास मिशाल पेश करने वाला है । उन्होंने कुंआ खोदकर न सिर्फ अपने गांव में पेयजल की समस्या दूर की बल्कि आस पास के क्षेत्र में एक नया उदाहरण स्थापित किया जिसने बदलाव की नींव रखी । फिलहाल गांव में प्रधान ने बोर करवाकर पेयजल की समस्या को काफी हद तक कम दिया है लेकिन कृष्णा कोल के भागीरथ प्रयास को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।

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