सूरत से पैदल ही झांसी पहुंचे मजदूर, रास्ते में हुआ जानवरों जैसा हुआ व्यवहार और भूखे पेट कई बार हुए बेहोश

Update: 2020-04-28 04:46 GMT

झांसी. देश में कोरोना वायरस (Corona virus) के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. अभी तक 26 हजार से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 8 सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई है. वहीं, 3 मई तक लॉकडाउन (Lockdown) घोषित हैं. लॉकडाउन के चलते मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. उनके लिए खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में देश के तमाम शहरों में लॉकडाउन की वजह से फंसे मजदूर पैदल ही अपने गांव के लिए कूच कर गए हैं. कई मजदूर अपने-अपने गांव पहुंच गए हैं, तो कई अभी रास्ते में पैदल चल रहे हैं. इस दौरान उन लोगों को कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ रहा है. ऐसा ही एक ताजा मामला झांसी (Jhansi) में सामने आया है.

अमर उजाला के मुताबिक, गुजरात के सूरत (Surat ) में काम करने वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई मजदूर गांव जाने के लिए पैदल ही चल दिए. कई दिनों की यात्रा करने के बाद ये लोग झांसी पहुंच गए. हालांकि, इस दौरान इन लोगों के पैरों से खून बह रहा था. वहीं, कई के पैर तो सूज भी गए हैं. थके-हारे ये मजदूर बस किसी तरह अपने-अपने गांव पहुंचना चाहते हैं. बिंदा, शिवओम, कलुवा, पंकज, हरिओम, जमुना और कक्कड़ अपनी दास्तां बताते हुए कहा कि रास्ते में एक-एक पल भारी हो रहा है. इन लोगों ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से पैदल ही सूरत से चल दिए. सोंचा था कि रास्ते में कही गाड़ी मिल जाएगी, पर कोई साधन नहीं मिला. एक ने बताया कि रास्ते में कई लोग भूख और प्यास की वजह से कई बार बेहोश भी हो गए.

अपने गांव से बाहर नहीं जाएगा

फतेहपुर निवासी अंकित अपने पैर को दिखाते हुए रोने लगा. उसने कहा कि अब वह कभी अपने गांव से बाहर नहीं जाएगा. बड़े शहरों में उन लोगों को घुसने तक नहीं दिया. खेतों से होकर गुजरे. पैरों में कांच लग गया था. उसने कहा कि रात को सोने के लिए जब सड़क किनारे चादर बिछाई तो लोगों ने चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया. मजबूरी में हमें वहां से भागना पड़ा. बहराइच निवासी सूरज ने बताया कि गुजरात से निकलते वक्त एक कस्बा था वहां फुटपाथ पर हम लोगों ने चादर बिछा ली. आंख ही लगी थी कि किसी ने पानी फेंक दिया.

रास्ते में बहुत कष्ट उठाने पड़े

एक मजदूर ने रोते हुए बताया कि रास्ते में बहुत कष्ट उठाने पड़े. लोगों ने जानवरों जैसा व्यवहार किया. उसने कहा कि रास्ते में हमसे हर कोई डर रहा था. खाने के पैकेट भी फेंक कर दिए गए. वहीं, रास्ते में यदि कोई शहर मिले पर उन्हें घुसने तक नहीं दिया. ऐसे में खेतों से होकर शहर पार करना पड़ा. रात को कस्बे में बने फुटपाथ में सो जाते थे.

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