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क्या इस खबर से आनंदबिहार बस अड्डे पर मची अफरा तफरी?
गिरीश मालवीय
कल रात लिस्ट में छिप कर बैठे हुए बहुत से बीजेपी के आई टी सेल के कार्यकर्ताओं के चेहरे से नकाब खिंच गया. कल शाम से दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी रात होते होते प्रवासी कामगारों का सैलाब बस अड्डे से लगी सड़क पर था इस घटना को देशी क्या विदेशी मीडिया भी दिखाने लगा.
हम जैसे लोग जो प्रवासी कामगारों के पलायन पर पिछले तीन चार दिनों से लगातार लिख रहे थे उनकी पोस्ट पर आकर भी यही लोग अफसोस प्रकट कर रहे थे, कि इनकी मदद की जानी चाहिए. लेकिन रात को एक ट्वीट आया और सारा माहौल एक सेकंड में बदल गया. ट्वीट था बीजेपी आई टी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का.
मैंने इसके बाद ऐसे ऐसे लोगो के चेहरे से नकाब हटते देखा जिनके बारे में मैं सोचता था कि यह लोग कम से कम स्वतंत्र सोच के मालिक है. अचानक जैसे कोई ट्रिगर सा दबा ओर दनादन हर तरफ से लिस्ट में मौजूद लोग ठीक उसी आशय की पोस्ट करने लगे जो भाषा इस ट्वीट में थी, आश्चर्य जनक रूप से सब एक ही भाषा बोलने लगे
यह कुछ वैसा ही था जैसे जंगल में एक सियार हुआ हुआ चिल्लाता है तो जंगल के अलग अलग हिस्से में मौजूद सियार भी उसकी आवाज में आवाज मिला कर हुआ हुआ चिल्लाते है ठीक वैसे ही अलग अलग शहरों में बैठे आईं टी सेल के सियार अपने चीफ सियार के सुर से सुर मिलाकर हुया हुआ करने लगे.
दिल्ली में प्रवासी कामगारों की बढ़ती भीड़ का जिम्मेदार केजरीवाल को ठहराया जाने लगा उन पर आरोप लगाया गया कि केजरीवाल दिल्ली से प्रवासी मजदूरों से भगा रहे हैं ओर दिल्ली से यूपी बॉर्डर की तरफ धकेल रहे हैं, जबकि 26 मार्च को ही यूपी के मुख्यमंत्री ट्वीट कर चुके थे कि यूपी सरकार ने कामगारों की मदद के लिए हमने 1000 बसों का इंतजाम किया हुआ है. इसके अलावा भी प्रवासियों की मदद के लिये एक प्रशासनिक आदेश जारी किया था जिसमे बिहार उत्तराखंड के प्रवासी कामगारों की हर तरस से मदद की जाएगी .
आप ऐसा आदेश दे और आप बोले कि कोई घर से न निकले ये दोनों बातें एक साथ कैसे संभव है? दिल्ली की लगभग 60 फीसदी आबादी पूर्वांचल से आकर बसे कामगारों की है. यहाँ उन्हें काम नही मिलेगा लॉक डाउन लंबा खिंच सकता है यह कोई भी सहज बुद्धि से अंदाजा लगा सकता है . इसके अलावा गाँवो में यह रबी की फसल का सीजन है वहाँ एक बार फिर भी रोजगार मिल सकता है अन्न मिल सकता है यह बात सभी के जहन में रही होगी इसलिए मजदूर बड़ी संख्या में पलायन कर गए.
बस अड्डे की भीड़ यह बता रही थी कि लोग परेशान हो चुके हैं, सरकारी दावे पर उन्हें अब यकीन नही रहा कल पब्लिक इनकी बात सुनने को तैयार नही थे राहत शिविर की बात हो या मकान मालिकों द्वारा किराया नही लिया जाएगा यह बात कोई यकीन नही कर रहा था, कल यही भीड़ जब थाली बजा रही थी तो बहुत भली लग रही थी आज उसी भीड़ को दोष दिया जाने लगा .
रात में रिपब्लिक चेनल खोल कर देखा तो बिलकुल वही भाषा बोली जा रही थी जो हमारे तथाकथित मित्र बोल रहे थे. बिल्कुल सेम भाषा और ऐसा भी नही है कि भीड़ सिर्फ दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे पर ही थी हर वो बड़ा शहर जिसके आसपास ऐसे औद्योगिक क्षेत्र थे, वहां के बस अड्डे पर या शहर से बाहर जाने वाले नाको पर ऐसी ही भीड़ थी लेकिन चैनलों पर केवल आंनद विहार की चर्चा थी इसलिए लोगो का ध्यान उसी पर रहा.
एक बात तो अच्छी तरह से समझ में आ गयी कि ये लोग रँगे सियार थे और अब इनका रंग उतर चुका है इनकी सही पहचान नुमाया हो गयी है आप भी इनकी पहचान कर सकते है कल रात को इनकी पोस्ट या कमेन्ट देखकर.