दिल्ली

इस महामारी के ताण्डव से स्वयँ को कैसे बचाएं?

Shiv Kumar Mishra
26 April 2021 1:00 PM GMT
इस महामारी के ताण्डव से स्वयँ को कैसे बचाएं?
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अतः प्रथम रामवाण- "पैनिक न होयें। घबराएं बिलकुल भी नहीं।" सबसे पहले "को-रोना" का नाम एकदम भूल जाएँ, और बैठ कर अपने शरीर में उत्पन्न हुई गड़बड़ियों पर ध्यान दें।

आप सभी जानते हैं कि मैं डॉक्टर नहीं वरन एक इंजिनीयरिंग का विद्यार्थी रहा हूँ, सो मेरी कही बात को मैं सत्यता का आधार मानने को नहीं कह रहा हूँ। केवल, मैं किसी समस्या को किस तरह देखता हूँ, और कैसे कैसे, क्या क्या कर के उसका समाधान ढूंढ़ता हूँ, वही आपके सामने रखने की कोशिश कर रहा हूँ, बहुत ही आसान भाषा में। समस्याओं से इस तरह जूझने की मेरी आदत को मेरे सोशल मीडिया के प्रियजन मेरे इस तरीके को जानते हैं।

को-रोना की तीन स्टेज बताई जा रही है, जिसमें कि जब आपका ऑक्सीजन लेवल 90% से नीचे जायेगा तभी थोड़ी चिंता की बात है। मैंने कहा 'थोड़ी चिंता", और मेरा यही मतलब है। क्योंकि घर बैठे बिना ऑक्सिजन सिलिंडर के, 90 से बढ़ाया भी जा सकता है आसानी से, यदि आप पहले से सतर्क हैं तो। मेरे उपाय उनके लिए हैं जिनको अभी को-रोना हुआ नहीं है, या है भी तो केवल दूसरे स्टेज तक है और वे घर में रहना चाहते हैं तो।

को-रोना क्या है?

कैंसर है? नहीं। एड्स जितना घातक है? नहीं है। हजारों ऐसी बीमारियाँ हैं जिनमें मर जाने का प्रतिशत या तो 100% होता है, या 70/ 50/ 25 प्रतिशत होता है। लेकिन को-रोना में?? यह अभी भी 1 प्रतिशत से नीचे है। आप अखबारों या समाचार चैनलों के दिए प्रतिशत के आंकड़ों पर न जाएँ। अपनी पूरी कॉलोनी/ गाँव/ मुहल्ला आदि से प्रतिशत निकालिए तो पायेंगे कि यह 1% से भी कम है।

अतः प्रथम रामवाण- "पैनिक न होयें। घबराएं बिलकुल भी नहीं।" सबसे पहले "को-रोना" का नाम एकदम भूल जाएँ, और बैठ कर अपने शरीर में उत्पन्न हुई गड़बड़ियों पर ध्यान दें।

मैंने, सर्वप्रथम तत्काल प्रभाव से सबका लॉक डाउन किया। अत्यावश्यक कार्यों के लिए केवल स्वयं बाहर जाने का निश्चय किया, वो भी मास्क आदि की पूरी सुरक्षा के बाद ही। तत्पश्चात सोशल मीडिया से प्राप्त सभी लक्षणों तथा उपायों को मैंने अलग अलग श्रेणी में बाँट लिया।

सर्दी खाँसी बुखार- बुखार कौन सी बड़ी बात है? सबको आता ही है। मेडिकल स्टोर वाले से बोला कि, "भाई! सर्दी खाँसी बुखार की 'साधारण' दवा दे दो।" उसने दे दिया। जिस तरह उसने बताया हमने वैसा ही खाया।

बदन दर्द- पैरासिटामॉल के चार पत्ते ले लिए। घर में सभी बीमार थे, सो सबको घड़ी के टाइम से 5-6 घंटे के अन्तराल पर दिन में चार बार दिया।

साँस- साँस की प्रॉब्लम होने ही नहीं दिए। पिछले साल ही ऑक्सीमीटर खरीद लिए थे, सो उसको जाँचते रहे और सबको बिठाकर दिन में तीन-चार बार 10 मिनट तक प्राणायाम (पूरक-कुम्भक-रेचक) करवाए। यह मैं बिमारी से पहले ही करवाता आया हूँ। पिछले साल की लहर में ही माताश्री बता कर गई थीं कि "ईशू से शँख बजवाते रहा करो।" इसका असर बताने की आवश्यकता नहीं, आपसब भली भान्ति जानते होंगे कि फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है।

सबसे आखिरी और सबसे जरुरी उपाय-

इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता)- मेरी एक आदत है। जितने मेरे जानने वाले हैं वो मेरी इस आदत से खीझ जाते हैं, लेकिन मैं अपनी यह आदत कभी नहीं बदलता। मुझे (किसी को) कोई भी समस्या हो जाए, मेरा सबसे पहला कदम होता है 'उर्जा बढ़ाने वाली दवा'। मैं नाम नहीं लिखना चाहता, लेकिन बाजार में बहुत सारी उपलब्ध हैं, और अधिकतर आयुर्वेदिक ही हैं। आपको जो सूट करे वह आप ले सकते हैं।

मेरा अपना आँकलन है कि कोई भी बिमारी हो, वह पहले आपके शरीर की उर्जा पर ही आक्रमण करती है। जैसे ही शरीर की उर्जा कम होनी शुरू हुई, आपके शरीर की रक्षात्मक प्रणाली भी कमजोर पड़नी शुरू हो जाती है। तो सीधा समीकरण है मेरा, शरीर में ऊर्जा की कमी होने ही न दो। यदि 'एक' कैप्सूल प्रतिदिन के लिए सामान्य अवस्था में खाने के लिए कहा जाता है, तो मैं बीमार पड़ने पर 'दो' खाता हूँ। इससे किसी भी बाहरी कार्य के लिए उर्जा मैं बाहर से ले लेता हूँ, और शरीर की संचित उर्जा को बीमारी से लड़ने के लिए संचित रखता हूँ। बहुत सीधे सरल उपाय हैं मेरे, जैसे ग्लुकॉन डी, ग्लूकोज के बिस्किट।

बस।

आपको सुनने में यह सब बहुत साधारण लगेंगे, हर जगह यही दिख रहे होंगे, लेकिन मैंने इनका अक्षरशः पालन किया है, करता हूँ। करने से ही होता है, केवल "जानने" से तैरना नहीं आता है। आपको पानी में उतर कर सभी नियमों का पालन करना ही पड़ेगा।

नीम्बू, आँवला, ग्रीन टी आदि मेरा प्रतिदिन का है, काढ़ा और जोड़ दिया था जितनी बार मिल जाय। गरम पानी वर्षों से खाली पेट पीते आ रहे हैं, इन दिनों में दिन भर गरम पानी पीया। काली मिर्च सामने रखता हूँ, जबतब मुँह में फोड़ लेता हूँ। अदरक भी रोज का है, इन दिनों उपयोग 4-5 गुना बढ़ा दिया। दूध पीने की आदत नहीं थी, अब हल्दी डालकर पीने लगे हैं।

और, अन्त में! बेमतलब ही हर समय खुश रहने की कोशिश किया। खुश नहीं रह पा रहे थे तो जितनी भी आलतू फालतू फिल्म/ वेब सीरीज आदि छूटी हुई थीं, सब देख डाले। खुद को 24 घंटे व्यस्त रखा अपने शौक के कार्यों में। यहाँ तक कि,... फेसबुक की टाइमलाइन में जो वीडियो दिखते हैं, आजतक मैंने कभी नहीं देखा था। उनको भी देख डाला। हालाँकि कुल तीन चार ही गानों 'नॉक-नॉक,.. कौन सा नशा करता है,..आदि' ने दिमाग का दही कर दिया, लेकिन देख ही डाले हम।

बस यही मेरा प्रयोग तथा अनुभव रहा। आप सब अपने अनुभव यहाँ बाँट सकते हैं।

महाभारत में अश्वत्थामा ने नारायाणास्त्र का प्रयोग कर दिया, जिसकी कोई काट संभव ही नहीं थी। पाण्डवों में दहशत फैलती देख कृष्ण ने सबको आदेश दिया कि "सभी लोग अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र त्यागकर भूमि पर इस शस्त्र के प्रति श्रद्धा में लेट जाओ। जो इसका प्रतिरोध करेगा, मूर्खतापूर्वक तन कर खड़ा रहेगा, वह मारा जाएगा।" सबने श्रद्धा दिखाई, और इतने भारी दिव्यास्त्र से भी एक भी क्षति नहीं हुई।

ऐसी वैश्विक महामारियाँ प्रकृति माता का दिव्यास्त्र ही हैं। आपने पहले ही प्रकृति के सारे नियमों को तोड़कर अपनी उज्जड्डता दिखा रखी है। अब भी नहीं चेते तो मारे जायेंगे। कम से कम अब तो श्रद्धा दिखाइये, और नियमों का पालन करिए।

इं. प्रदीप शुक्ला

"जय हिन्द..!!"

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