संपादकीय

*नीमराणा संदर्भ में चौहान शासक : एक अध्ययन* : अनिल शूर 'आज़ाद'

Desk Editor
4 July 2021 7:09 AM GMT
*नीमराणा संदर्भ में चौहान शासक : एक अध्ययन* : अनिल शूर आज़ाद
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राजेंद्र सिंह ने वर्ष 1985 के आसपास यह किला एक होटल समूह को बेच दिया। शुरू में इसमें चार भागीदार थे..

पृथ्वीराज चौहान के उपरांत उनके वंशजों का प्रभाव सिकुड़कर वर्तमान राजस्थान के मुंडावर, नीमराणा, बहरोड़, अजरका तथा बावल के आसपास सीमित हो गया था। मुगलकाल तथा इसके बाद अंग्रेजों के समय भी इनकी ठसक एवं रुतबा, यहां बराबर बना रहा। इसीलिए इस क्षेत्र को 'राठ' कहा गया। यहां कहावत भी प्रचलित है - काठ नवे, पर राठ कभी नवे ना।

इसी तरह नीमराणा किले के नामकरण की बाबत भी एक दिलचस्प किवदंती है। कहते हैं इन्होंने निमोलामे नामक एक बहादुर सरदार को पराजित कर, इस किले पर अधिकार किया था। मगर उसकी वीरता से चौहान बहुत प्रभावित भी हुए थे। किला छोड़ते समय उसकी प्रार्थना थी कि किले की पहचान उसके नाम से जुड़ी रहने दी जाए। जांबाजी के कद्रदान चौहानों ने उसकी बात को मान लिया था। इसी आधार पर किले का नाम नीमराणा पड़ा, हालांकि तब इसका आकार बहुत छोटा ही था। वस्तुतः चौहानों ने ही इसे विशाल एवं भव्य रूप प्रदान किया। पर.. औपनिवेशिक-काल में, समय के साथ इसका क्षय भी होता रहा। चौहानों की पच्चीसवीं पीढ़ी में 'अंतिम राजा' राजेंद्र सिंह चौहान हुए। साढ़े छह फुट लंबे राजेंद्र सिंह प्रभावशाली शख्सियत रखते थे। इनका 'राजतिलक' वर्ष 1945 में हुआ था। अब इनका भी देहांत हो चुका है। इनकी एक पुत्री हैं जो जयपुर में रह रही हैं।

इससे पूर्व इस कुल के राजा राजदेव ने अपनी राजधानी मुंडावर से हटाकर यहां नीमराणा के अपेक्षाकृत सुरक्षित इलाके में लाने का निर्णय किया था। इस क्रम में राजदेव के उपरांत पूरनमल, बिझराज, नरुदेव, जगतसिंह, प्रतापसिंह, डूंगरसिंह, खड़गसिंह, कल्याणसिंह, बालकरण, रघुनाथसिंह, जैतसिंह, प्रतापसिंह द्वितीय, चतुरसिंह, टोडरमल, महासिंह, चंद्रभानु सिंह, पृथ्वीसिंह, विजयसिंह, ईश्वरसिंह, भीमसिंह, मुकुंदसिंह जनक सिंह, उमराव सिंह तथा राजेंद्र सिंह (पच्चीसवें वंशज) हुए।

लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्थितियां तेजी से बदली। विशेषतया देशी नरेशों के विशेषाधिकार समाप्त किये जाने जा बाद तो ऐसे विशालकाय भवनों, महलों तथा किलों का रखरखाव तक उनके वश के बाहर होने लगा था। इसीलिए राजेंद्र सिंह ने वर्ष 1985 के आसपास यह किला एक होटल समूह को बेच दिया। शुरू में इसमें चार भागीदार थे। लेकिन तीन ने अपनी भागीदारी वापस ले ली। अंततः इसके नए मालिक, होटल समूह के मुख्य प्रबंधक अमन नाथ ने, जो कि स्वयं एक इतिहासवेत्ता भी हैं - अपने वचन के मुताबिक इसके पुरातत्व महत्व को बरकरार रखते हुए वर्ष 1986 में कार्य शुरू कर, धीरे-धीरे इसे एक खूबसूरत 'हेरिटेज रिजॉर्ट' के रूप में विकसित किया।

यह एक दस मंजिला पहाड़ी किला होने के कारण इसके एक भाग से दूसरे तक जाते, पहाड़ पर चढ़ने के जैसा अहसास होता है। वर्तमान में इसमें अस्सी के लगभग भव्य कक्ष हैं जिन्हें प्रत्येक को एक अलग नाम दिया गया है। (उदाहरण के लिए जिस डुप्लेक्स कक्ष में हमारा दो दिन प्रवास रहा उसे 'सूर्य महल' नाम देते हुए इसी के अनुरूप साजसज्जा/इंटीरियर किया गया था।) प्रत्येक कक्ष के साथ विशाल बालकनी बनी हैं जिनसे बाहर दूर तक का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। सभी कक्षों को दूर-दूर से लाए गए एंटीक फर्नीचर, मूर्तियां, तस्वीरें, शिलाएं आदि से सजाया गया है जो इसका विशेष आकर्षण है। किला परिसर में दो सुंदर पूल, राजस्थानी लोक-संस्कृति के प्रस्तुतिकरण हेतु ओपन थिएटर, बाग-बगीचे, हैंगिंग गार्डन तथा स्पा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं जो देशभर से पहुंचने वाले इतिहासप्रेमी तथा सैलानियों को सहज ही आकर्षित करती हैं।

(किले के मौजूदा मालिक, इतिहासवेत्ता श्री अमन नाथ एवं नीमराणा के 'अंतिम राजा' स्व. राजेंद्र सिंह की जयपुर रह रहीं पुत्री से संपर्क के प्रयास जारी हैं। उस आधार पर जो नई जानकारियां सामने आएंगी उन्हें भी - किसी नए आलेख में प्रस्तुत किया जाएगा।) सादर।■

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*आंचलिक इतिहास शोधपीठ, नई दिल्ली के सौजन्य से प्रस्तुत...

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