संपादकीय

महाराष्ट्र के धनुष बाण को तहस-नहस करने के बाद अब झारखंड के धनुष बाण को तोड़ने के लिए भाजपा का ऑपरेशन लोटस शुरू

Shiv Kumar Mishra
12 July 2022 7:00 AM GMT
महाराष्ट्र के धनुष बाण को तहस-नहस करने के बाद अब झारखंड के धनुष बाण को तोड़ने के लिए भाजपा का ऑपरेशन लोटस शुरू
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झारखंड में ऑपरेशन कमल को अंजाम तक पहुंचाने के गणित का जो फार्मूला अपनाया जा रहा है उसमें भाजपा कांग्रेस से उनका गठबंधन तुड़वाकर उसके 12 विधायक अपने साथ लेकर सरकार बनाने की कोशिश में है।


के. पी. मलिक

नई दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा के चाणक्य ने महाराष्ट्र शिवसेना के धनुष बाण को तहस-नहस करने के बाद अब झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के धनुष बाण को तोड़ने के लिए भाजपा का ऑपरेशन लोटस शुरू हो चुका है। इसके बाबत पहले से ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गर्दन चुनाव आयोग और अन्य केंद्रीय एजेंसियों ने पकड़ रखी है। पिछले दिनों उनके करीबी और राजनीतिक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, जो कि हेमंत के बहुत से कारनामों के राजदार हैं, के यहां केंद्र सरकार की सबसे वफादार एजेंसी ने लगातार छापेमारी और धरपकड़ शुरू कर रखी है। जानकार सूत्रों की मानें, तो ईडी ने पंकज मिश्रा और उनसे संबद्ध बड़े-बड़े खास लोगों के करीब 18 ठिकानों पर छापेमारी करके साढ़े पांच करोड़ रुपये के आसपास नकदी बरामद की है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि झारखंड में ऑपरेशन लोटस के चक्रव्यू की गति 18 जुलाई यानि राष्ट्रपति चुनाव के बाद तेज कर दी जाएगी आशा की जाती है कि इसमें भाजपा को आसानी से सफलता मिल जाएगी। क्योंकि सर्विदित है कि गृह मंत्री अमित शाह इस इस प्रकार के चक्रव्यूह की रचना करके धनुष बाण को तोड़ने के माहिर हैं, तो जाहिर है इस प्रकार के अधिकतर कार्यों में वह सफल हो ही होते हैं, भाजपा के सूत्रों के मुताबिक वहां मोदी के सबसे पसंदीदा और विश्वसनीय बाबू लाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। वैसे तो यह कहा जा रहा है कि अमित शाह महाराष्ट्र में लोटस ऑपरेशन चलाने के साथ-साथ ही झारखंड में भी लोटस ऑपरेशन चला रहे हैं। लेकिन समस्या यह है कि हेमंत सोरेन न तो उद्धव ठाकरे की तरह राजनीतिक अनाड़ी हैं और न ही उनकी पकड़ जनता में इतनी कमजोर है कि वे आसानी से सत्ता छोड़ दें। हालांकि हेमंत सोरेन गृह मंत्रि अमित शाह से गुलदस्ता लेकर दिल्ली दरबार में मिल भी चुके हैं। कांग्रेस के कान तभी से खड़े हैं। लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अमित शाह ने हेमंत को ज्यादा भाव नहीं दिया और वह मायूस ही झारखंड लौटे। जबकि कुछ लोगों का कहना है की गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने उनके कारनामों की फाइल रखी और उनको कहा इस पर तत्काल विचार करने की आवश्यकता है, चर्चा है कि फ़ाइल देखकर सकपकाने वाले हेमंत सोरेन को अमित शाह ने कुछ समय की मोहलत दी है

झारखंड में ऑपरेशन कमल को अंजाम तक पहुंचाने के गणित का जो फार्मूला अपनाया जा रहा है उसमें भाजपा कांग्रेस से उनका गठबंधन तुड़वाकर उसके 12 विधायक अपने साथ लेकर सरकार बनाने की कोशिश में है। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि हेमंत सोरेन ने अमित शाह के सामने प्रस्ताव रखा है कि अगर भाजपा चाहे, तो वह कांग्रेस से दूर हो सकते हैं, बशर्ते दिल्ली दरबार मुख्यमंत्री उन्हें ही बने रहने की कृपा करे। लेकिन न तो अभी तक हेमंत सोरेन ने इस ओर इशारा किया है और लगता है कि भाजपा का आलाकमान भी शायद ही इस पर राजी हो। वैसे भी यह उस सरकार को खत्म करने की भाजपा की कवायद है, जिसने झारखंड को अलग राज्य बनाने में महती भूमिका निभाई थी। इसीलिए वहां की जनता में, चाहे वो आदिवासी हों, चाहें एससी के लोग हों, चाहे पिछड़ा वर्ग हो, हेमंत की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति एक लगाव है। यह लगाव इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि वहां गुरु जी के नाम से मशहूर हेमंत सोरेने के पिता शिबू सोरेन लोगों के दिलों पर राज करते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की तरफ से अभी तक भी उसके 12 विधायकों के भाजपा में जाने के कथित आरोप की न तो पुष्टि की गई है और न ही इस मामले में कोई सफाई दी गई है।

खैर, कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का सगा या स्थाई दुश्मन नहीं होता, बल्कि हर कोई मौके का फायदा उठाता है। ऐसे में यह खबर सही न भी हो, पर इसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। संभावनाओं और चर्चाओं पर यकीन करें, तो झारखंड में गठबंधन वाली हेमंत सरकार के भीतर भी तनाव कम नहीं है, हालांकि हेमंत उद्धव ठाकरे की तरह राजनीतिक अनाड़ी नहीं है बल्कि वह अपने पिता की तरह राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। आपको याद होगा कि पिछले साल ही उनके विधायकों को चोरी-छिपे दिल्ली ले जाने की कवायद शुरू हो गई थी, लेकिन हेमंत ने बड़ी राजनीतिक सूझबूझ और होशियारी से न सिर्फ इस खरीद-फरोख्त की साजिश को रोका, बल्कि विधायकों को तोड़ने की कोशिश करने के मामले में लगे तीन दलालों को भी धर दबोचा था। इसलिए उनकी सरकार अभी तक बची हुई है। वर्ना तो पिछले साल ही उनकी सरकार धराशाही हो चुकी होती, अब जब चुनाव आयोग ने सीधे उनकी गर्दन पकड़ी और राज्य के हाई कोर्ट ने भी उन पर शिकंजा कसा गया तो इसके खिलाफ जब वह सुप्रीम कोर्ट गए कि वह मुख्यमंत्री हैं, लिहाजा उनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाही नहीं की जा सकती, तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें यह कहते हुए बैरंग लौटा दिया कि उनकी अपील स्वीकार नहीं की जा सकती। हेमंत पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और कोर्ट के शिकंजे के अलावा उनकी सरकार की एक वरिष्ठ महिला आईएएस अधिकारी अफसर पूजा सिंघल पर शिकंजा कसा तू झारखंड की नौकरशाही में हड़कंप मच गया। हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं कि पूजा सिंघल के घोटालों के ज्यादातर चिट्ठे झारखंड में भाजपा की सरकार के दौर के हैं। इसीलिए कई लोगों का मानना है कि शायद इसी वजह से अब पूजा सिंघल के मामले को समाचार पत्रों एवं टीवी स्क्रीनों की सुर्खियों में जगह नहीं मिल पा रही है, जाहिर है उसमें कई भाजपा कई नेताओं की गर्दन फंसती नजर आ रही है। हालांकि अब यह माना जा रहा है कि जब इस बेगम के पत्ते से चाल आगे नहीं बढ़ी, तो फिर मुख्यमंत्री के छोटे भाई बसंत सोरेने और अब उनके करीबी पंकज मिश्रा पर भी शिकंजा कसा गया। हाई कोर्ट के द्वारा भी उनके भी पेंच कसे गए। लेकिन मजे की बात यह है कि हेमंत फिर भी अब तक बचे हुए हैं? लेकिन आगे भी कब तक बचे रहेंगे या जल्द ही परास्त होंगे, यह कहना अभी कठिन है।

सरसरी तौर पर आंकड़ों पर नजर डालें तो हेमंत की गठबंधन वाली सरकार में उनके दल मजबूती इस समय सबसे अधिक है। उनके पास कुल 30 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 18 विधायक। इस प्रकार कांग्रेस उनकी दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है। वहीं भाजपा के पास 25 विधायक हैं। वहीं तीन निर्दलीय विधायक और एक अन्य छोटे दल के दो विधायक भाजपा के साथ पहले से ही हैं। ऐसे में उसके पास भी फिलहाल कम से कम 30 विधायकों का समर्थन है। झारखंड विधानसभा में कुल 82 सीटें हैं। इस प्रकार सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों का समर्थन चाहिए। अगर भाजपा के साथ 12 विधायक कांग्रेस के जाते हैं, तो वह सरकार बना सकती है। ज़ाहिर सी बात है कि राज्यपालों पर भाजपा का दबदबा रहता ही है। उधर हेमंत की भाभी सीता सोरेन, जिनके पति की पहले ही संदिग्ध अवस्था में मौत हो चुकी है, खुद विधायक हैं। लेकिन वो हेमंत के खिलाफ रहती हैं और उन्होंने एक अलग संगठन बनाया हुआ है। सोरेन परिवार की इसी पारिवारिक कलह का फायदा भाजपा को मिल सकता है। कुछ राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि अगर भाजपा का दिल्ली दरबार झारखंड सरकार को तोड़ने में कामयाब रहता है, तो वह महाराष्ट्र में फणनवीस को पीछे कर उप मुख्यमंत्री बनाने और शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की तर्ज पर सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन को मुख्यमंत्री और बाबू लाल मरांडी को उप मुख्यमंत्री बना सकती है, ताकि शिवसेना को खत्म करने की सोच की तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी धीरे-धीरे खत्म करने की ओर काम किया जा सके। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा के दिल्ली दरबार का ऑपरेशन लोटस लगभग 50 फीसदी पूरा हो चुका है, अब केवल आधा काम यानि 50 फीसदी ही रह गया है, जो राष्ट्रपति चुनाव के बाद कभी भी पूरा हो सकता है।

अगर भाजपा हेमंत सरकार को तोड़ने में सफल होती है, तो जनता, खासकर राज्य की सबसे बडी आदिवासी आबादी अब इसलिए भी विरोध से बचेगी, क्योंकि भाजपा ने पहले ही देश की पहली आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति चुनाव में उतारकर उनके दिल में यह बैठा दिया है कि भाजपा आदिवासियों का सबसे हितेषी राजनीतिक दल है और वह सदैव उनके साथ है। बहरहाल, जहां झारखंड में एक तरफ भाजपा का दिल्ली दरबार पक्के तौर पर ऑपरेशन लोटस की व्यू रचना में लग हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सरकार को हरसंभव बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं, जिसके लिए वह सार्वजनिक समारोहों में शिरकत करने के अलावा जनसभाओं को भी संबोधित कर रहे हैं, ताकि अगर भाजपा उनकी सरकार को गिराती है, तो वह एक बड़ा जनसमूह उसके खिलाफ खड़ा कर सकें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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