संपादकीय

चुनावी रिहर्सल में खबरों की विविधता, रैट माइनर्स की प्रशंसा और सत्तारूढ़ दल का हिन्दुत्व

Shiv Kumar Mishra
30 Nov 2023 10:46 AM GMT
चुनावी रिहर्सल में खबरों की विविधता, रैट माइनर्स की प्रशंसा और सत्तारूढ़ दल का हिन्दुत्व
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Diversity of news in election rehearsal, praise of rat miners and Hindutva of the ruling party

आज तेलंगाना में मतदान है और तीन दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने हैं। इन चुनावों को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का रिहर्सल माना जा रहा है। इसके साथ ही यह भी तय है कि भाजपा इन चुनाव परिणामों से लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति तय करेगी। अब तो यह साफ हो चुका है कि भाजपा के सहयोगियों में उसके नियंत्रण वाली पुलिस, ईडी, सीबीआई, आयकर के साथ मीडिया और पार्टी की ट्रोल सेना की भी भूमिका रहती है। ऐसे में मैं कोशिश करता हूं कि मीडिया खासकर अखबारों में क्या हो रहा है उसे आपको बताता और दर्ज करता चलूं। आज की सबसे प्रमुख खबर है, "अमेरिका ने एक भारतीय अधिकारी पर न्यूयॉर्क में 'सिख अलगावववादी' की हत्या की साजिश का आरोप लगाया। यह खबर कितनी महत्वपूर्ण है उसका पता इस तथ्य से लगता है कि अंग्रेजी के मेरे पांच में से चार अखबारों में यह खबर लीड है। सिर्फ एक अखबार, हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड सुंरग से निकाले गये 41 लोगों की खुशी, आभार और जीवन के नये अध्याय से संबंधित है। हालांकि यहां भी यह खबर लीड के बराबर में है सेकेंड लीड तो है ही।

अमेरिका में किसी भारतीय अधिकारी द्वारा किसी की हत्या की साजिश रचने के आरोप का मतलब भारत सरकार पर आरोप है। इस खबर को अगर इसीलिए प्रमुखता मिली है तो तथ्य यह भी है कि इस मामले में भारत सरकार का पक्ष लचर है और इसलिए प्रमुखता से नहीं छपा है। आप जानते हैं कि यह आरोप पुराना है और भारत सरकार का पक्ष क्या और कैसा है। इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी छापा है कि सरकार ने जांच पैनल बनाया है और अमेरिकी एनएसए, सीआईए, सीआईए के प्रमुख भारत आये हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने विदेश मंत्रालय के हवाले से लिखा है, उच्च स्तरीय पैनल अमेरिकी सुरक्षा चिन्ताओं को देख रहा है। भारत सरकार के काम पर यह अमेरिकी आरोप पर्याप्त गंभीर है और अकेला नहीं है। इससे पहले मेहुल चोकसी के मामले में भी मिलता-जुलता मामला रहा है। पर वह इतना गंभीर नहीं है।

इस मामले की गंभीरता का अंदाजा तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट से लगता है। सरकारों को राष्ट्रहित में कपटपूर्ण अभियान चलाने की आवश्यकता हो सकती है। बात समझ में आती है। लेकिन इस मामले में भारत के सरकारी एजेंट सीसी-1 ने गुजराती नशा कारोबारी को नियुक्त कर लिया जिसने शूटर की तलाश में गुप्त अमेरिकी डीईए एजेंट से संपर्क किया और पकड़ा गया! इसमें कुछ सम्मान की बात नहीं है। हम बेवकूफी करने वाले मूर्ख नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर, सिल्कयारा टनल में फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए चल रहा अभियान भले ही सफल रहा और सभी मजदूर सुरक्षित निकाल लिये गये लेकिन 17 दिन म नहीं होते हैं। इतने समय में सुरंग में फंसे मजदूर तो बाहर आ गये पर सुरंग बनाने वाली कंपनी के लोग कहां हैं, क्या कर रहे हैं और सामने क्यों नहीं आये या किसके सामने आये यह लाख टके का सवाल है।

ऐसे में मुद्दा यह बन गया कि रैट माइनर्स की टीम में मुसलमान थे इसलिये उनका नाम नहीं लिया गया। सरकार समर्थकों ने इसकी भी आलोचना की। उल्लेखनीय है कि जबसे 'अच्छे दिन' आये हैं अपराधियों के नाम मुसलमान लगें तो उन्हें प्रचारित करने और कई बार मुस्लिम अपराधियों के अपराध को भी प्रचारित करने का रिवाज बन गया है। लेकिन अपराधी हिन्दू हों तो अक्सर ऐसा नहीं होता है। इसका असर यह है कि हिन्दू अपराधी मुस्लिम बनकर और मुस्लिम अपराधी हिन्दू बनकर भी काम करते पकड़े जाते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने रैट माइनर्स की टीम में मुसलमानों के होने का उल्लेख किया तो इसका समर्थन करने वालों के साथ विरोधी भी सक्रिय रहे और चुप रहने की बजाय दलीलें दी जाती रहीं। इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस में आज एक खबर है इसका शीर्षक है, बचाव कार्य पूरा करने वाली फर्म के प्रमुख ने कहा कि सुरंग में फंसे 41 लोगों को बचाने में हिन्दू-मु्स्लिम ने मिलकर भूमिका निभाई। आम तौर पर यह सब चर्चा का विषय भी नहीं होना चाहिये लेकिन अच्छे दिनों की पहले पन्ने की खबर है।

तथ्य यह भी है कि इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली के रॉकवेल एंटरप्राइजेज के प्रमुख वकील हसन को इतना महत्व दिया है। उन्होंने कहा है और अवनीश मिश्रा की बाईलाइन है कि अकेले कोई यह काम नहीं कर सकता था और मैं हर किसी को यही संदेश देना चाहता हूं ... उन्होंने आगे कहा है .... हम सबको मिलकर सद्भावना के साथ रहना चाहिये और घृणा का जहर नहीं फैलाना चाहिये। हम सब अपने देश के लिए अपना 100 प्रतिशत देना चाहते हैं .... कृपया हर किसी को मेरा संदेश पहुंचा दें। कहने की जरूरत नहीं है कि कुल 66 मीटर में पाइप लगना था लेकिन मशीन टूट गई और अंतिम के 12 मीटर जिन 12 लोगों ने खोदे और 41 मजदूरों की जान बचाई उने नाम हैं - हसन, मुन्ना कुरैशी, नसीम मलिक, मोनू कुमार, सौरभ, जतिन कुमार, अंकुर, नसीर खान, देवेन्द्र, फिरोज कुरैशी, रशीद अंसारी और इरशाद अंसारी। ये 20 से 45 साल के हैं। इन लोगों ने इस काम के लिए कोई पैसे नहीं लिये। उनका कहना था कि यह अन्य कामों की तरह नहीं था और 41 लोगों की जान बचाने का मिशन था। इनकी सेवा लेने वाली कंपनी ने इन्हें यात्रा खर्च जरूर दिया। रैट माइनर्स की टीम में हिन्दू मुस्लिम दोनों का होना भले खबर नहीं है पर सत्तारूढ़ दल के सांसदों, जन प्रतनिधियों, पदाधिकारियों में कोई मुसलमान नहीं है तो यहां मुसलमानों का होना मायने रखता है। पर ट्रोल सेना वालों को क्या समझ में आये।

यहां टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने की एक खबर का उल्लेख जरूरी है। कौटिल्य सिंह और दीपक दास की इस बाईलाइन वाली खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने टनल में काम करने वाले फोरमैन गब्बर सिंह नेगी से कहा है कि वे संकट में लोगों का नेतृत्व करने के तरीकों पर केसस्टडी हो सकते हैं। केस स्टडी तो किसी भी केस का किया जा सकता है लेकिन प्राथमिकता ज्यादा महत्वपूर्ण है और इस मामले में अध्ययन इस बात का होना चाहिये कि सुरक्षा उपाय क्यों नहीं थे या थे तो काम क्यों नहीं आये, भविष्य के लिए उन्हें बेहतर कैसे किया जाए और सुंरग बनाने वाली कंपनी व उसके अधिकारी इन 17 दिनों तक पर्दे के पीछे या छिप क्यों रहे। अध्ययन इसका भी होना चाहिये कि सुरंग खोदने वाली टीम में अगर मुसलमान होने से फायदा हुआ तो सरकार चलाने वाली टीम में मुसलमानों का होना जरूरी है कि नहीं। भाजपा यह अध्ययन भी करा सकती है कि हिन्दू समर्थक छवि और मुस्लिम विरोधी छवि में कौन जयादा फायदेमंद है। अध्ययन इसपर भी होना चाहिये कि ऐसी दुर्घटनाएं क्या सामान्य ह या रोकने का कोई तरीका है। इसके अलावा भी कई मुद्दे हो सकते हैं पर टाइम्स ऑफ इंडिया और प्रधानमंत्री की प्राथमिकता के साथ आप इंडियन एक्सप्रेस की प्राथमिकता देख सकते हैं।

भाजपा या केंद्र सरकार के काम-काज के तरीकों का अध्ययन करना हो तो एक खबर द हिन्दू में भी है। इसके अनुसार, सुप्रीम को्र्ट ने पूछा है कि केरल के राज्यपाल (आरिफ मोहम्मद खान) विधेयकों पर दो साल तक क्या करते रहे। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा राज में राज्यपालों की भूमिका कांग्रेस राज के राज्यपालों से कैसे बेहतर है या बेहतर है कि नहीं यह अध्ययन पार्टी के लिए भी उपयोगी हो सकता है। खासकर इसलिए भी कि उसने संघ के लोगों को ही नहीं, आरिफ मोहम्मद खान जैसे (पूर्व) कांग्रेसी और किरण बेदी जैसी गैर राजनीतिक को तो राज्यपाल बनाया ही है जगदीप धनखड़ जैसे भाजपाई और द्रौपदी मूर्मू जैसी महिला और आदिवासी ( या वनवासी) को राज्यपाल बनाया है। जगदीप धनखड़ हाल में प्रधानमंत्री को युगपुरुष कहकर न सिर्फ चर्चा में रहे बल्कि तरक्की पाने के राज को भी चर्चा का विषय बना दिया है।

जहां तक खबरों की बात है, द टेलीग्राफ ने मैजिकल राट होल माइनर्स शीर्षक से रक्षक वीरों की खबर छापी है, सबकी फोटो है। साकेत गोखले ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मांग की है कि अपनी जान जोखिम में डालकर फंसे हुए 41 मजदूरों को सुरक्षित निकालने वाली इस टीम को अगले साल के गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जाये। कहने की जरूरत नहीं है कि इस मामले में सबके हीरो अलग हैं और कुछ लोग सबका नेतृत्व करने या टीम चुनने के लिए प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं और वह भी निराधार नहीं है। आज की अन्य प्रमुख खबरों में कैबिनेट के फैसले और इसमें गरीबों को पांच किलो मुफ्त अनाज पांच साल और मिलते रहने का फैसला शामिल है। इसके अलावा, अमित शाह ने कहा है, सीएए को लागू होने से कोई नहीं रोक सकता तथा मणिपुर में आतंकी समूह यूएनएलएफ से शांति समझौता प्रमुख है। मोटे तौर पर ये खबरें लोकसभा चुनाव के संदर्भ में हैं और चुनाव तैयारियों के क्रम में अभी ऐसी खबरें और आयेंगी।

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