संपादकीय

चुनाव करीब, ईडी को रॉबर्ट वाड्रा की याद आई, अमर उजाला और टीओआई प्रचार में लगे, जो खबर चाहिये थी वह है ही नहीं

चुनाव करीब, ईडी को रॉबर्ट वाड्रा की याद आई, अमर उजाला और टीओआई प्रचार में लगे, जो खबर चाहिये थी वह है ही नहीं
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यात्रियों ने पत्रकारों के सवालों के जवाब नहीं दिये, कुछ तो नाराज हो गये। कायदे से उन्हें अपना अनुभव बताना चाहिये था ताकि दूसरे लोग न फंसें। अधिकारियों को उनकी पहचान उजागर किये बिना भी यह सुनिश्चित करना चाहिये था।

वैसे तो यह खबर तीन चार दिन से छप रही थी पर उसका विस्तार या पूरा विवरण नहीं मिल रहा था। अभी भी, मामला क्या है यह तो समझ में नहीं ही आ रहा है और किसी ने साफ-साफ लिखा भी नहीं है। आज जब यह खबर द हिन्दू में लीड है और तकरीबन सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है तो भी मामला साफ नहीं है और ना ही कोई सरकारी बयान नजर आ रहा है। द टेलीग्राफ ने यह खबर अंदर होने की सूचना दी है और पहले पन्ने पर जो लिखा है वह इस प्रकार है, फंसे हुए विमान यात्री भारत वापस आये (शीर्षक)। मानव तस्करी के संदेह में फ्रांस में रोके गए विमान में फंसे अधिकांश यात्री मंगलवार सुबह भारत लौट आए, लेकिन देर शाम तक सरकार की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। अभी यह पता नहीं चला है कि फ्रेंच अधिकारियों ने इन्हें क्यों रोका था या निकारागुआ क्यों जा रहे थे।

अभी तक जो पता चला है उसके अनुसार करीब 308 भारतीय यात्रियों के साथ दुबई से निकारागुआ जा रहे एक चार्टर्ड विमान को फ्रांस के अधिकारियों ने रोक लिया। उन्हें शक था कि इन लोगों को अवैध रूप से ले जाया जा रहा था। खबरों के अनुसार चार दिन की जांच पड़ताल के बाद फ्रांस के अधिकारियों ने विमान को भारत आने दिया। निकारागुआ जा रहा विमान भारत क्यों आने दिया गया या निकारागुआ क्यों नहीं गया - यह इस खबर की सबसे महत्वपूर्ण जानकारी है। पर नहीं है। पहले ऐसे मामलों में लिखा जाता था कि इस संबंध में जानकारी नहीं मिली। जैसे टेलीग्राफ ने लिखा है। यह अकेले भी एक खबर है और इस खबर का तो सबसे महत्वपूर्ण भाग है। द हिन्दू ने भी बताया है और इसी कारण चार दिन बाद भी यह खबर पहले पन्ने की है हालांकि कुछ अखबारों ने ना जानकारी दी है और ना पहले पन्ने पर रखा है।

खबर छापने के लिए संपादित करने समय हम भी रिपोर्टर से कहते थे कि यह जानकारी तो जरूरी है। इस बारे में तुमने क्यों नहीं लिखा। पता करके जोड़ो। जो भी बात होती थी लिखी जाती थी या फिर यह तो लिखना ही था कि पता नहीं चला। फलां अधिकारी ने फोन नहीं उठाया या क्या कहा। अब नये किस्म भी पत्रकारिता होती दिख रही है जिसमें खबरें बताती कम हैं सवाल ज्यादा छोड़ती है। चूंकि पत्रकारों की सवाल करने की आदत ही छूट गई है या वही पत्रकारिता कर रहे हैं जो सवाल नहीं करते इसलिए अखबारों से पता ही नहीं चलता है। वरना पहले एक खबर यह भी होती थी कि इस मामले में सरकार ने कुछ नहीं बताया है और तब सरकार को बताना पड़ता।

खबर से स्पष्ट है कि इन लोगों को अवैध रूप से ले जाया जा रहा था तभी वापस भारत भेजा गया। लेकिन सवाल है कि क्या निकारागुआ को इसपर एतराज नहीं होता। ये निकारागुआ में कैसे स्वीकार किये जाते और जाहिर है उसमें भी दलालों की भूमिका होगी। नागरिकों को अवैध रूप से विदेश भेजना एक बड़ा और गड़बड़ मामला है। वसुधैव कुटुम्बकम अपनी जगह सही होगा और ऐसे में व्यवस्था का मतलब है। पर इस मामले में व्यवस्था की ऐसी तैसी होती नजर आ रही है। सरकार चुप है, अखबार बता नहीं रहे हैं, हमारी ओर से पूछ भी नहीं रहे हैं। कायदे ये अवैध दलालों और उनकी सेवा जान बूझकर ली गई तो संबंधित नागरिकों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिये।

अवैध रूप से नागरिकों को विदेश भेजना बड़ा मामला है इसलिए सरकार को बताना चाहिये कि इस मामले में उसने क्या किया और क्या पाया। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि इस तरह का काम नहीं हो। कायदे से सरकार को इस मामले में फ्रांस और निकारागुआ को भी संतोषजनक जवाब देना होगा। लेकिन अखबारों का रुख ऐसा रहेगा तो यह सब कैसे होगा। खासतौर से तब जब इस मामले में रोके गये दो लोगों को फ्रांस की अदालत ने छोड़ दिया है। अगर कुछ गलत नहीं था तो उन्हें निकारागुआ जाने क्यों नहीं दिया गया। यही नहीं, खबरों के अनुसार लोग चेहरे ढंके हुए थे। सवाल है कि अगर गलत नहीं किया तो चेहरा क्यों ढंक रहे थे।

अगर फ्रांस की अदालतों ने अपराधी को छोड़ दिया है तो उसे लाने की जरूरत है या नहीं और इस मामले में भारत सरकार क्या कर रही है यह कैसे पता चलेगा और क्यों नहीं बताया जाना चाहिये। खासतौर से तब जब रक्षा मंत्री ने कहा है और अमर उजाला (दूसरे अखबारों में भी प्रमुखता से है) ने लीड बनाया है। खबर के अनुसार, वाणिज्यिक जहाजों के हमलावरों को रक्षा मंत्री राजनाथ (सिंह) की चेतावनी, जहाजों पर हमला करने वालों को पाताल भी खोज लायेंगे। यहां आपको याद दिला दूं, 22 जुलाई 2016 को चेन्नई से पोर्ट-ब्लेयर जा रहा वायुसेना का एएन-32 विमान लापता हो गया था। इसमें 29 लोग थे। तकरीबन दो महीने तक विमान के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका। इसके बाद वायुसेना ने तलाशी अभियान पर रोक लगा दी और विमान में सवार सभी लोगों को मृत मान लिया गया। आने को विदेश में रखा काला धन भी आना था और राबर्ट वाड्रा का भष्टाचार भी उजागर होना था।

दस साल में हम देख रहे हैं कि हर चुनाव के समय वाड्रा का मामला खुल जाता है। इस बार भी है। आज अमर उजाला ने पांच कॉलम में बॉटम स्प्रेड लगाया है, अपराध की कमाई से लंदन में खरीदे घर में रहे रॉबर्ट वाड्रा : ईडी। मेरा मानना है कि संपादकों को इन खबरों की राजनीति या सत्यता समझ में आये या नहीं आये पाठक समझने लगे हैं। जो नहीं समझे हैं उन्हें समझाने की कोशिश तमाम लोग कर रहे हैं। हालांकि वह अलग मुद्दा है। विमान यात्रियों की खबर अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है जबकि नवोदय टाइम्स में है और यह तथ्य कि मानव तस्करी के संदेह में 4 दिन रोका गया था फ्रांस में हाइलाइट किया गया है। रॉबर्ट वाड्रा की ईडी वाली खबर यहां पहले पन्ने पर नहीं है।

मुंबई पहुंचे विमान यात्रियों के बारे में सरकार ने नहीं बताया तो अखबार वाले यात्रियों से बात कर मामला समझने की कोशिश कर सकते थे। द हिन्दू में यह खबर लीड है और उसने लिखा है, यात्री अपना चेहरा ढंके हुए थे और हवाई अड्डा कर्मचारियों ने उन्हें दूसरे गेट से निकल जाने दिया जबकि पत्रकारों से कहा गया था कि वे किसी खास गेट से आयेंगे। इनमें से कुछ ने अंतर्देशीय टर्मिनल यानी दूसरे शहर जाने के लिए ट्रांजिट बस ली तो कुछेक के लिये होटल की गाड़ी आई थी। मीडिया को सिर्फ यह पता चला कि उनमें कुछ पंजाब, हरियाणा और गुजरात के थे। यात्रियों में पुरुषों की संख्या ज्यादा थी। यात्रियों ने पत्रकारों के सवालों के जवाब नहीं दिये, कुछ तो नाराज हो गये। कायदे से उन्हें अपना अनुभव बताना चाहिये था ताकि दूसरे लोग न फंसें। अधिकारियों को उनकी पहचान उजागर किये बिना भी यह सुनिश्चित करना चाहिये था।

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