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तीन राज्यों में मिली पराजय और पांच राज्यों में हुए सफाये के बाद बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें अब साफ़ देखी जा रही है. बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह अब गुणा गणित में ज्यादा व्यस्त दिख रहे है. अपनी गोटें फिट करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे है जबकि सरकार द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की प्रसंशा नहीं कर पा रहे है. इस बात का ताजा प्रमाण रविवार को उस प्रेस कांफ्रेंस में दिखा जिसमें कि अमित शाह काफी नर्वस से लग रहे थे.
जिस तरह बिहार के मसले पर बीजेपी फिर एक बार बैक फुट पर आती नजर आ रही है. रामविलास पासवान के चलते बीजेपी से सवर्ण और पिछड़ा वोट वैंक खिसका है और उन्ही को पार्टी ने वरीयता देकर एक बार फिर से अपने पाँव में कुल्हाड़ी ही नहीं कुल्हाड़ी पर पाँव दे मारा है. एससी एसटी अध्यादेश में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले रामविलास को इतनी अहमियत देना बीजेपी को भारी पड़ सकता है. इसका सबसे बड़ा खामियाजा यूपी , बिहार , राजस्थान , एमपी और महाराष्ट्र में भुगतना पड़ेगा.
अभी पांच राज्यों में हुए चुनाव में भी यह बीजेपी की हार का अहम कारण था. कहीं हो न हों एमपी में तो सत्ता इसी के चलते चली गई. अब वही गलती फिर दोहराई जा रही है. यूपी में दलित का वोट बसपा को जाता है. वो बात अलग है कि छिटपुट वोट इधर उधर होता हो लेकिन जब बहुतायत में बात होती है तो बसपा का ही गिना जाता है. २०१४ और २०१७ में की गई गलती से दलित को अब सबक मिल गया है. अब वो यूपी में गलती नहीं करेगा. फिर पासवान कहाँ पर सही भूमिका निभाएंगे.
चूँकि अब बिहार में नीतीश का कोई साथी नहीं बचा है तो अब वो किसके सहारे बिहार में रहेंगे तो उनका पासवान के समर्थन में आना कतई गलत नहीं है लेकिन बीजेपी का नतमस्तक होना किसी के गले नहीं उतर रहा है. जिस तरह सहयोगी दलों को लेकर कांग्रेस का मजाक बनाती हो वहां ऐसा फैसला मजाक जैसा लगता है. हालांकि ज्यादा कहना ठीक नहीं है लेकिन पासवान बीजेपी के लिए दुखदाई साबित होंगें.
कभी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी अब गठवंधन बनाम महागठवंधन चुनाव लडती नजर आ रही है. बीजेपी के तूफानी लहरों से कांग्रेस लडती जरुर रही लेकिन राहुल के सैलाब में मोदी हिचकोले लेते जरुर नजर आ रहे है. कभी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले अमित शाह अब क्या कहेंगे तो मंच से अब कांग्रेस मुक्त नारा भी चला जाएगा या इसमें अभी जान बाकी है. हाँ एक बात और आपको बता दें कि आने वाले चुनाव में त्रिशंकु लोकसभा के लिए हम चल पड़े है. अब बहुमत मिलना दूर की कड़ी नजर आ रहा है.