संपादकीय

Ram Mandir Live Updates: 1992 में ढांचा ना ढाया होता तो शायद देखने को ना मिलता

Shiv Kumar Mishra
5 Aug 2020 5:10 AM GMT
Ram Mandir Live Updates: 1992 में ढांचा ना ढाया होता तो शायद देखने को ना मिलता
x
इसलिए राम के काज में सहयोग करने वाले लोगों का ही सम्मान करिए अभिनंदन करिए शठे शाठ्यम सामाचारेत शास्त्रों का उद्घोष हैं अंत में इस कविता के साथ पोस्ट को विराम देता हूं कोयले उदास मगर फिर फिर वह गाएगी.

पूरी रात बेचैन रहा बार-बार टीवी चैनल खोल कर देखता रहा सुबह से ही टीवी के सामने बैठा हूं. मन प्रफुल्लित है आत्मा उमंग में है हृदय हिलोरे ले रहा है. शब्दों में मन के रोमांच को परगट नहीं कर पा रहा हूं मेरी अनुभूति को वही समझ सकते हैं. जो राम जन्मभूमि आंदोलन के साथ जुड़े रहे आज राम दिवस है ऐसा मैं नहीं कहूंगा क्योंकि प्रत्येक दिवस ही राम का है हम सब में हमारे रोम रोम में राम बसे हैं आज 5 अगस्त को एक ऐतिहासिक दिवस है. सदियों के पश्चात हिंदू के लिए मानो विजय दिवस है.

राम राम जन्मभूमि राम जी का मंदिर तो हमेशा से ही था परंतु बीच के कालखंड में धर्मांध आक्रांतओ ने अपने विजय चिन्ह के रूप में हमारे स्वाभिमान के प्रतीक हमारे आराध्य श्री राम के मंदिर को अपना निशाना बनाया वहां पर एक ढांचा खड़ा कर दिया यूं तो उन्होंने अनेक भव्य इमारतों भव्य संरचनाओं को प्रति मानव को धार्मिक उन्माद में तोड़कर ध्वंस कर धार्मिक आधारों का निर्माण कर दिया परंतु सबसे ज्यादा चोट यदि कहीं लगी तो वह थी मथुरा काशी अयोध्या की पवित्र भूमि पर किए गए ध्वंस के बाद निर्माण राम मंदिर आंदोलन उसी की परिणीति की जो सदियों से हिंदुओं के द्वारा अपने स्वाभिमान अपने आराध्य के मान के लिए संघर्ष की गाथा है आज जो हो रहा है वह यदि 1992 में ढांचा ना ढाया होता तो शायद देखने को ना मिलता 1992 में ढांचे को गिरा दिया गया और 70 वर्ष के कानूनी युद्ध के बाद आज राम जन्मभूमि पर भव्य श्री राम मंदिर बनने की दिशा में कार्य प्रारंभ होगा राम जी 1992 से ही अस्थाई रूप से बने मंदिर में टाट के अंदर विराजमान से जो अब अपनी पूर्ण भव्यता के साथ ऐश्वर्य के साथ संपूर्ण सनातन समाज का विश्व भर में आह्लाद कारी सनातन धर्म ध्वजा का परचम लहराएंगे.

राम राज्य के गुण क्या लिखूं राम के गुण क्या लिखूं सबको उसकी जानकारी परंतु आज ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कर रहा हूं ऐसा उल्लेख है कि राम जी का मंदिर सर्वप्रथम अयोध्या में विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा बनवाया गया था पुष्यमित्र शुंग ने मंदिर को भव्यता प्रदान की व जीर्णोद्धार करवाया उसके बाद उसका जीर्णोद्धार जयचंद द्वारा बाद में मिहिर भोज द्वारा करवाया गया इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व अयोध्या में महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था तथा पांचवी शताब्दी में बोध केंद्र के रूप में भी विकसित हुआ तब इसका नाम साकेत था कहते हैं चीनी बिच्छू फाहियान सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया और उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा कि उस समय आप भी इस बोध मंदिर तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और हजारों लोग रोज इस भव्य मंदिर में दर्शन करने आते थे 70 वर्ष की लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में फैसला लिया गया. जिसका अनुपालन हो रहा है.

मुगल शासक बाबर 1526 में भारत आया 1528 तक वह अवध वर्तमान अयोध्या तक पहुंच गया बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 29 में वहां एक ढांचे का निर्माण किया जो मंदिर की ही नहीं ऊपर था 134 साल पुराने इस अयोध्या मंदिर के ऊपर मस्जिद के निर्माण के बाद उसी समय विवाद प्रारंभ हो गया और लगातार संघर्ष चलता रहा कुछ तारीख के हैं जो इस आंदोलन में गवाह हैं भव्य राम मंदिर के इस पड़ाव पर उन लोगों का नाम उल्लेखित करना भी आवश्यक है जिन्होंने अग्रणी भूमिका में रहकर नेतृत्व किया एवं संघर्ष किया तथा अपना सर्वोच्च बलिदान भी किया उस कड़ी में सब सर्वप्रथम दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस महंत दिग्विजय नाथ वह हिंदू हृदय सम्राट निर्भीक निडर बाला साहब ठाकरे के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी अटल बिहारी वाजपेई साध्वी ऋतंभरा महंत नृत्य गोपाल दास महंत अवैद्यनाथ जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे तथा हिंदू महासभा के उस समय के अध्यक्ष थे विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त पूज्य सरसंघचालक श्री गुरु जी बाला साहब देवरस विशेष रुप से प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया के सुदर्शन एवं मोहन भागवत जी एवं सभी संघ के श्रेष्ठ प्रचारक वरिष्ठ प्रचारक कार्यकर्ता स्वयंसेवक एवं अनुषांगिक संगठनों के सभी कार्यकर्ताओं का विशेष योगदान इस आंदोलन में रहा कुछ फ्रंट पर थे कुछ बुनियाद में कुछ संघर्ष में थे कुछ नेपथ्य में सब अपनी अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे थे.

इनके अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने आडवाणी की रथ यात्रा का उस समय व्यवस्था संचालन किया प्रवीण भाई तोगड़िया अखंड हिंदुस्तान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद बी एल शर्मा प्रेम इनके अलावा भी बहुत सारे ऐसे नाम है जो मुझे स्मरण है परंतु पोस्ट लंबी हो जाएगी इसलिए नहीं लिख रहा हूं परंतु उन सभी के प्रति ज्ञात अज्ञात राम सेवकों के प्रति सनातन धर्म की तरफ से अपना आभार कृतज्ञता एवं नमन प्रस्तुत कर रहा हूं करता हूं इसके अलावा कुछ ऐसी भी थी जो राम मंदिर के पक्ष में तो नहीं परंतु उसके आंदोलन के लो को अपने राम मंदिर विरोधी कृतित्व और प्रचंड कर गए जैसे मुलायम सिंह यादव जिन्होंने न केवल कारसेवकों पर लाठीचार्ज करवा गोलियां चलवाई वरन अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता जैसे कुख्यात बयान के कारण ग्राम सेवकों कारसेवकों में एक युद्ध का ओज पैदा किया राजीव गांधी जिन्होंने ताला खुलवाया उस समय के प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के नेता वह आजम खान जैसे नेता दिग्विजय सिंह जैसे नेता कपिल सिब्बल जैसे नेता जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा ही दे दिया कि राम तो काल्पनिक हैं इन लोगों के प्रति मेरी कोई सहानुभूति नहीं है परंतु क्योंकि जब राम का स्मरण होगा तो रावण का स्मरण भी होगा ही पूरे आंदोलन का नेतृत्व विश्व हिंदू परिषद कर रही थी.

परंतु शिवसेना हिंदू महासभा एवं अनेक हिंदू संगठन इसमें सहभागी रहे और उन्होंने बढ़-चढ़कर इस आंदोलन में भाग लिया बलिदानी कोठारी बंधु गोधरा कांड में जलाकर मारे गए कार सेवक बंधुओं का एवं इस आंदोलन में जेल गए प्राणों की आहुति देने वाले असंख्य ऐसे आंदोलनकारियों का म मैं कृतज्ञता पूर्वक पुण्य स्मरण कर रहा हूं एवं उनके श्री चरणों में अपना नमन समर्पित करता हूं मुझे फैज खान इकबाल अंसारी सुन्नी वक्फ बोर्ड आदि को निमंत्रण देने पर भी घोर आपत्ति है यदि फैज खान की जगह घर वापसी किए आर्य समाजी पंडित महेंद्र आचार्य को निमंत्रण दिया होता तो अच्छा होता उन्होंने मजहब छोड़कर धर्म अपनाया एवं भारतवर्ष में क्रांति की अलख जगा रहे हैं आखिर फैज खान को हम इतिहास पुरुष बनने का अवसर कैसे दे सकते हैं.

परंतु शीर्ष नेतृत्व ने जो सोचा होगा वह सही ही है होगा ऐसा विश्वास है टीवी चैनल पर हेड लाइन में आ रहा है ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान दिया है कि आज हम उस स्थिति में नहीं है कि विरोध कर सकें लेकिन यदि हमें 50 साल भी लगे तो हम इसका बदला जरूर लेंगे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी अन्याय कारी एवं बहुसंख्यक तुष्टीकरण पर आधारित कहा है इसलिए मेरा स्पष्ट मत है कि यदि आप विरोधी विचारधारा के साथ यह सोचकर काम कर रहे हैं कि आपकी सज्जनता से भी प्रभावित हो जाएंगे या आपकी सहृदयता से उनका दिल बदल जाएगा तो यह मेरी नजर में कोरी मूर्खता के अलावा कुछ नहीं क्योंकि यह धर्मांध लोग सज्जनता को कायरता समझते हैं इसलिए राम के काज में सहयोग करने वाले लोगों का ही सम्मान करिए अभिनंदन करिए शठे शाठ्यम सामाचारेत शास्त्रों का उद्घोष हैं अंत में इस कविता के साथ पोस्ट को विराम देता हूं कोयले उदास मगर फिर फिर वह गाएगी.

नये-नए चिन्हों से राहें भर जाएंगी

खुलने दो कलियों को ठिठुरी हुई यह मुट्ठिया

माथे पर नई नई मुस्कुराएंगी

नयन गगन फिर फिर होंगे भरे पात झरे फिर फिर होंगे हरे

जय जय श्रीराम जय श्रीराम यही गाओ यही गुनगुनाओ

इसी में सारे धाम

जय श्री राम जय जय श्री राम्

रामसेवक नीरज शर्मा

Next Story