संपादकीय

अरवल के इस वन क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश है मना, अंदर संत करते हैं ब्रह्मचर्य की साधना

Shiv Kumar Mishra
25 Sep 2022 10:55 AM GMT
अरवल के इस वन क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश है मना, अंदर संत करते हैं ब्रह्मचर्य की साधना
x

शिव कुमार मिश्रा, अरवल। देशभर में चर्चित सबरीमाला मंदिर की तरह अरवल के एक मंदिर में भी महिलाओं की एंट्री पर पाबंदी है। सबरीमाला मंदिर में अब पाबंदी नहीं है पर अरवल के इस मंदिर में आज भी केवल पुरुषों को आने की इजाजत है। सदर प्रखंड क्षेत्र के अहियापुर में सोन नदी के किनारे पांच एकड़ वन क्षेत्र में संत पयहारी बाबा की कुटिया व मंदिर है, जहां महिलाओं को नहीं जाने दिया जाता है।

कुटिया के बाहर से ही लौट जाती हैं महिलाएं

कहा जाता है कि यह एक वैष्णव मठ है। प्रवेश द्वार पर ही महिलाओं के प्रवेश वर्जित का बोर्ड लगा है। लिखा है महिलाओं के लिए सेवा यहीं तक समाप्त। हर साल गुरु पूर्णिमा पर यहां भव्य मेला लगता है। काफी भीड़ जुटती है। आस्था के चलते महिलाएं भी आती हैं पर बाबा की कुटिया के बाहर से ही दर्शन कर लौट जाती हैं।

200 साल से अध‍िक पुरानी है संत की कुटिया

कुटिया व मंदिर का इतिहास दो सौ साल से अधिक पुराना है। संत पयहारी बाबा की इस कुटिया में संत रामनाथ दास उर्फ राय बाबा के अलावा दर्जनभर साधु-संत रहते हैं। कुटिया के साधु आसपास के क्षेत्रों में भिक्षाटन करते हैं और यहां आकर साधना करते हैं, यहां जो भी पुरुष राहगीर आते हैं उनको शुद्ध शाकाहारी भोजन भी परोसा जाता है।

ब्रह्मचारी साधुओं का आश्रम है यह स्‍थल

इसे बारे में पूछने पर संत रामनाथ दास उर्फ राय बाबा कहते हैं कि यह ब्रह्मचारी साधुओं का आश्रम है। इस आश्रम में जो भी साधु रहते हैं उनको कड़ाई से ब्रह्मचर्य नियम को पालन करना पड़ता है। इसलिए महिलाएं को आश्रम के मंदिर और संतों के आवास की तरफ जाने से रोक लगा दी गई है।

प्रकृति को हरा भरा करने के लिए बाबा ने लगाए हैं पांच हजार पेड़

प्रकृति को हरा भरा करने के लिए पर्यावरण प्रेमी बाबा ने सोन नदी किनारे पांच हजार से ज्यादा पेड़ लगाए हैं, जो अब घना जंगल बन गया है। बाबा कहते हैं कि रात में जब नींद नहीं आती है तो सोन से पानी लेकर छोटे-छोटे पौधों में डालते हैं। कुटिया में आने वाले पुरुष अतिथि यहां का वातावरण देखकर प्रसन्न हो उठते हैं। वन में सैकड़ों प्रकार के फूल और फल के वृक्ष हैं। पूरे जिले में इस आश्रम से सुंदर वातावरण कहीं नहीं है।

पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं संत

पेड़ों की देखरेख खुद करते हैं। गर्मी के मौसम में पारा चढऩे लगता है तो पौधों को बचाने के लिए कई बार सिंचाई का प्रबंध भी करते हैं। उनकी कुटिया की हरियाली का प्रभाव पूरे क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। वन विभाग का स्लोगन एक वृक्ष दस पुत्र के समान को आदर्श मानकर उसे जीवन में सार्थक रूप देने में लगे हैं। क्षेत्र के तमाम युवा उनसे प्रभावित हुए हैं। कई युवाओं ने उनसे प्रेरणा लेकर पर्यावरण संरक्षित रखने का संकल्प लिया है।

साभार दैनिक जागरण

Next Story