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ज़रूरी है बच्चों को समस्या सुलझाने की ट्रेनिंग देना

ज़रूरी है बच्चों को समस्या सुलझाने की ट्रेनिंग देना
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पारुल जैन

कई बार देखने में आता है कि कोई युवा जीवन की चुनौतियों और संघर्षों से जल्दी हार मानकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। ये बहुत ही दुखद है। लेकिन इस विषय पर गहराई से चिंतन करें तो हम पाते हैं कि इस समस्या की जड़ें बचपन में दी गयी परवरिश से जुड़ी हैं। कई बार हम बच्चों को उम्र में छोटा समझ कर उनसे जुड़े हर छोटे बड़े फैसले खुद लेने लगते हैं जिससे उनमें अपनी समस्याएं खुद सुलझाने की और अपने फैसले खुद लेने की क्षमता विकसित ही नहीं हो पाती है। जबकि यह स्किल सीखनी हर बच्चे के लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि बचपन में सीखी यही प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल बड़े होने पर जीवन के संघर्षों के सामना करने में उसके बहुत काम आती है।

प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल है क्या? ये एक ऐसा कौशल है जिसमें व्यक्ति अपनी बुद्धिमता, ज्ञान और अनुभव से अपनी उलझनों को सुलझाता है। बच्चे बचपन में बहुत जिज्ञासु होते हैं। साथ ही वह महज़ देखकर ही किसी कला को सीखने में सक्षम होते हैं क्योंकि उनका दिमाग अभी फ्रेश और उर्वर होता है। तो वे अपनी समस्या को अपने नज़रिये से देखकर उसका अपने हिसाब से हल निकालने की कोशिश करते हैं।

यहीं हम अगर उन्हें अपने हिसाब से समस्या का हल प्रस्तुत कर देते हैं तो उनका मस्तिष्क हमारे दिए हल हिसाब से ही सोचने लगता है और वह कुछ नया सोच नहीं पाते। इसे ऐसे समझे। फ़र्ज़ कीजिये आपका बच्चा अपने ब्लॉक्स वाली गेम खेल रहा है और हम उसके ज़रा सा अटकने पर ही उसे पूरा ब्लॉक् सुलझा कर दे दें तो वह हमारी तरह से ही ब्लॉक को सुलझाएगा। इस तरह उसकी खुद उस ब्लॉक को सुलझाने की जिज्ञासा पर विराम लग जायेगा। कहने को ये बहुत छोटी सी बात है पर इसका विपरीत असर उसके बाल मन और मस्तिष्क पर जाकर उस पर अंकुश लगा देगा।

प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल डिसीजन मेकिंग, एनालिटिकल थिंकिंग और कम्युनिकेशन स्किल जैसी कई स्किल्स का संगम है।

समस्या सुलझाने का कौशल कोई एक दिन में सीखा नही जा सकता बल्कि इसके लिये माता पिता को बच्चे के बचपन से ही प्रयास करना होगा। मान लीजिये कि अगर बच्चे ने होमवर्क नहीं किया है तो आप बच्चे को अगले दिन स्कूल में क्या बोलना है, ये कतई न सिखाएं। बल्कि उसे खुद ही अपनी इस समस्या से निपटने दें। इसी तरह रेस्टॉरेंट में उसे अपने लिए मेन्यू में से डिश खुद चूज़ करने दें। इसी तरह उम्र के हिसाब से बच्चे पर निर्णय छोड़ें। मसलन दोस्तों में झगड़ा उसे खुद ही सुलझाने का मौका दें।

अगर बच्चा बचपन से ही अपनी छोटी मोटी समस्यायें सुलझाने के लिए अपने छोटे छोटे निर्णय अपने आप लेगा तो यह भविष्य में उसे अपने बड़े निर्णय लेने में बहुत सहायक होगा क्योंकि इससे किसी भी समस्या के प्रति उसका विजन साफ होगा और साथ ही समस्या सुलझने के बाद उसमें एक संतुष्टि की भावना भी आएगी जो उसके आत्मविश्वास में वृद्धि करके उसे एक बेहतर इंसान बनाएगी।

इस विषय पर सर गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ रोमा कुमार का कहना है कि प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल एक बहुत महत्वपूर्ण लाइफ स्किल है जो हर बच्चे को बचपन में सीखनी बहुत ज़रूरी है क्योंकि वयस्क होने पर इसी स्किल के द्वारा ही उसके सभी छोटे बड़े निर्णयों के निर्धारण होता है जो जीवन पर्यन्त उसके जीवन पथ का निर्धारण करते हैं। खुद से लिये गए निर्णय बच्चे को ज्यादा खुश, आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाते हैं।

इसके साथ साथ उसे सही गलत का फर्क भी समझ आता है और साथ ही वह गलत निर्णयों की ज़िम्मेदारी भी लेना सीखता है। ये स्किल व्यक्ति को दायरे के बाहर सोचने का और नए नज़रिये से चीज़ों को देखने का मौका देती है। कुल मिला कर बचपन में ही प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल सीखना किसी भी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए निहायत ज़रूरी है।


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