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राहुल से निर्ममता और बीजेपी से ममता क्यों?

Prem Kumar
22 March 2023 1:27 PM GMT
राहुल से निर्ममता और बीजेपी से ममता क्यों?
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ममता बनर्जी ने नयी चर्चा छेड़ दी है कि राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनाने से कोई भी नरेंद्र मोदी को टारगेट नहीं कर पाएगा। दूसरी अहम टिप्पणी है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी टीआरपी हैं। तीसरी टिप्पणी है कि बीजेपी संसद इसलिए चलने नहीं दे रही है ताकि राहुल गांधी को हीरो बनाया जा सके। चौथी और सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी है कि कांग्रेस बीजेपी के सामने झुक गयी है और कांग्रेस, सीपीएम एवं बीजेपी मिलकर अल्पसंख्यकों को तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ भड़का रही है।

ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सियासत से बाहर निकलना ही नहीं चाहतीं। राष्ट्रीय राजनीति को पश्चिम बंगाल के दायरे में समेटन और एक उपचुनाव नतीजे को इस रूप में परिभाषित करने में ममता जुटी हैं मानो बंगाल से बाहर की सियासत भी ममता बनाम गैर ममता हो। केंद्र में मोदी बनाम गैर मोदी की सियासत से ममता बनर्जी ने यह सीख ली है और वह बंगाल में उसी सियासत की नकल करती दिख रही हैं।

क्या यह सही नहीं है कि ममता बनर्जी ने भी राहुल गांधी पर सीधा हमला बोल कर उसी सियासत को आगे बढ़ाया है जिसे बीजेपी रोज आगे बढ़ा रही है? राहुल गांधी न तो अब तक कांग्रेस का चेहरा बनकर सामने आए हैं और न ही विपक्ष का चेहरा। ऐसे में ममता बनर्जी को यह कहने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी कि 'राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा' बनाने से ऐसा हो जाएगा या वैसा हो जाएगा?

जिस भूमिका के लिए खुद राहुल गांधी या कांग्रेस कोई दावा नहीं कर रही है उस भूमिका को ममता ठीक वैसे ही राहुल पर थोप रही हैं जैसे बीजेपी किया करती है। पहले बीजेपी और अब तृणमूल कांग्रेस विपक्ष के बीच नेतृत्व का भ्रम पैदा करने के लिए खुद राहुल केंद्रित सवाल भी पैदा करती दिख रही हैं और जवाब भी उन्हीं के पास है।

राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी टीआरपी हैं- तृणमूल कांग्रेस की यह बात भी समझ से परे है। सत्ता और विपक्ष एक-दूसरे की जरूरत हुआ करते हैं लेकिन कभी एक साथ या एक ओर नहीं होते। क्या पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी के लिए टीआरपी नहीं थीं? अगर नहीं, तो 'दीदी ओ दीदी' का नारा बुलंद क्यों करना पड़ता? उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी-नीतीश आज क्या नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी टीआरपी नहीं हैं?

ऐसे सवाल दूसरे प्रदेशों में भी दोहराए जा सकते हैं जहां बीजेपी मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। बीजेपी की ओर से हर प्रदेश में नरेंद्र मोदी ही चेहरा होते हैं और उन्हीं के नाम पर पार्टी चुनाव लड़ती है यह सबको पता है। पार्टी कार्यकर्ता और प्रत्याशी एवं नेता ही नहीं, स्वयं नरेंद्र मोदी भी अपने नाम पर या कमल निशान के नाम पर वोट मांगते हैं, बीजेपी का नाम लेने से परहेज करते हैं। कहने का अर्थ यह है कि क्षेत्रीय स्तर पर जब मोदी बनाम दीदी हो सकता है तो राष्ट्रीय स्तर पर मोदी बनाम राहुल क्यों नहीं हो सकता? जो सवाल राहुल गांधी के लिए ममता बनर्जी उठा रही हैं वही सवाल क्षेत्रीय स्तर पर बाकी तमाम नेताओँ के लिए भी तो उठते हैं? हालांकि यह बात ही बेमानी है कि विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी का नेता सत्ता पक्ष की टीआरपी है।

यह बात भी गले नहीं उतरती है कि राहुल गांधी टीआरपी हैं नरेंद्र मोदी के लिए। इसका उल्टा भी कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी टीआरपी हैं राहुल गांधी के लिए। वैचारिक लड़ाई के केंद्र में ये दोनों व्यक्ति आमने-सामने हैं इसमें कोई संदेह नहीं। राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी दक्षिणपंथी विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं तो राहुल गांधी कांग्रेस का जो स्वयं में एक विचार है और वाम व दक्षिण ध्रुव के बीच सामंजस्य का विचार है। इन दो धाराओं में हमेशा से संघर्ष रहा है। ममता की थ्योरी को मान लें तो कांग्रेस की टीआरपी अटल बिहारी वाजपेयी और उनके बाद लालकृष्ण आडवाणी रहे थे जो पीएम इन वेटिंग ही रह गये।

सत्ता पक्ष विपक्ष के किसी नेता को हीरो बनाता है इस विचार पर भी थोड़ा विचार करना जरूरी है। ऐसा होता है जब सत्ता पक्ष की नाकामी विपक्ष को उसे भुनाने का अवसर देती है और इस काम को विपक्ष करता है। कभी वीपी सिंह यह काम कर सके थे कांग्रेस के खिलाफ, तो कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने भी ऐसा कर दिखलाया था। मगर, ऐसे नामों में कांग्रेस के नेताओं के नाम इसलिए नहीं लिए जा सकते क्योंकि कांग्रेस कभी आंदोलन के जरिए सत्ता में नहीं रही। कांग्रेस हमेशा से उम्मीदों के साथ जनता को अपने से जोड़ते हुए सत्ता में रही। ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई यह कहे कि कांग्रेस के किसी नेता को कोई गैर कांग्रेसी हीरो बना रहा है।

ममता बनर्जी की यह बात हास्यास्पद है कि कांग्रेस झुक गयी है बीजेपी के सामने। जब कांग्रेस को ममता बनर्जी अपने सामने झुकी हुई नहीं मानती है जबकि बीते चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट ने बीजेपी के खिलाफ एक तरह से टीएमसी को अघोषित वाकओवर दे दिया था। तो, फिर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिए हों, इस बात पर देश में कोई यकीन नहीं करेगा। पश्चिम बंगाल की सियासत में ऐसी बातें कहने की विवशता ममता बनर्जी की हो सकती है। मगर, बंगाल में भी कोई इन बातों पर शायद ही यकीन करे।

सच यह है कि जबसे सागरदिघी उपचुनाव में कांग्रेस ने 67 फीसदी वोट पाते हुए जीत हासिल की है ममता बनर्जी को लगने लगा है कि उनकी पार्टी के जनाधार में बड़ी सेंध लग चुकी है। अगर लोकसभा चुनाव में भी यही प्रवृत्ति दिखी तो पश्चिम बंगाल की सियासत में कांग्रेस का उभार अवश्यंभावी है। कांग्रेस के उभार का मतलब बंगाल की सियासत में टीएमसी का ढलान होता है। ऐसे में स्वाभाविक है ममता बनर्जी अपनी जमीनी सियासत को ध्यान में रख रही हैं।

अगर वे ऐसा नहीं करें तो करें भी क्या? राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ सियासत खड़ी नहीं कर सकीं। उल्टे उनकी सियासत से बीजेपी को ही मजबूती मिलने के आसार दिखते हैं। हालांकि ममता बनर्जी की सियासत के शिख-नख-दंत नज़र नहीं आते। ऐसे में उनकी कवायद बस राजनीतिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सक्रियता की पुष्टि भर करती है। हम देख चुके हैं कि ममता की सियासत से गोवा, त्रिपुरा या मेघालय में बीजेपी को फायदा और कांग्रेस को नुकसान हुआ है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी पर हमला करते हुए वह उसी सियासत को मजबूत कर रही हैं जिससे बीजेपी मजबूत होती है।

Prem Kumar

Prem Kumar

प्रेम कुमार देश के जाने-माने टीवी पैनलिस्ट हैं। 4 हजार से ज्यादा टीवी डिबेट का हिस्सा रहे हैं। हजारों आर्टिकिल्स विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित हो चुके हैं। 26 साल के पत्रकारीय जीवन में प्रेम कुमार ने देश के नामचीन चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। वे पत्रकारिता के शिक्षक भी रहे हैं।

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