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पढ़िए, अब्बास ताबिश की ग़ज़ल : इनसान था आख़िर तू मिरा रब तो नहीं था

पढ़िए, अब्बास ताबिश की ग़ज़ल : "इनसान था आख़िर तू मिरा रब तो नहीं था"

ताबिश' तिरा चेहरा मह-ए-नख़शब' तो नहीं था

12 Aug 2021 1:45 PM GMT
नफ़रतों के हमको ,        फिर मंज़र नज़र आने लगे...                       - मुजाहिद चौधरी

नफ़रतों के हमको , फिर मंज़र नज़र आने लगे... - मुजाहिद चौधरी

नफ़रतों के हमको फिर मंज़र नज़र आने लगे । रंजो गम के फिर नए मौसम नज़र आने लगे ।। दाग़ दामन के छुपाकर सामने वो आ गए । कल के रहज़न अब हमें रहबर नज़र आने लगे ।। का़तिलों और जा़लिमों की सफ़ में था जिनका...

19 July 2021 2:34 AM GMT