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24 घण्टे में न जाने कई घण्टे इनके यूँही बरबाद होते हैं, जिसके कारण कई बार ये...

24 घण्टे में न जाने कई घण्टे इनके यूँही बरबाद होते हैं, जिसके कारण कई बार ये...
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आज बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा आयोजित 67वीं संयुक्त प्रतियोगिता (प्रारंभिक) परीक्षा है। लगभग 6 लाख अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा हुआ है। इनमें से लगभग 50 हजार अभ्यर्थी ही थोड़े गम्भीर होते हैं, बाकी महज फॉर्म भरने की खानापूर्ति करते हैं।

अधिकांश अभ्यर्थी जनता के प्रति सेवा भाव से कम, बल्कि खुद के जीवन में आर्थिक स्थायित्व, पुलिस-प्रशासनिक सेवा की ठसक वाली सामंतवादी प्रवृत्ति इत्यादि के कारण इन सेवाओं के प्रति आकर्षित होते हैं।

चूँकि अब मैं पठन-पाठन के कार्य में हूँ तो पाता हूँ कि महज दस फीसदी छात्र-छात्राएं ही पढ़ाई को लेकर अत्यंत गम्भीर हैं। बाकी सब 'सरकारी नौकरी' तो पाना चाहते हैं, परन्तु उसके लिए वह कम्फर्ट जोन के बाहर आकर कठिन मेहनत नहीं करना चाहते।

फिर इंटरनेट सुविधा के साथ मोबाइल फ़ोन और उसमें फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और व्हाट्सअप इत्यादि सोशल मीडिया साइट्स ने अधिकांश छात्र-छात्राओं का जीवन दुष्प्रभावित किया है।

तिस पर कइयों के सिर पर प्यार-मोहब्बत-इश्क़ की खुमारी चढ़ी रहती है, वह अलग। पढ़ाई और कैरियर जाए भले तेल लेने, इससे इन्हें कोई फर्क न पड़ता। बस ''मेला शोना बाबू ठाना ठाया ति नहीं ठाया'' के आगे ये कुछ सोच ही न पाते कि बेटा, पहले कैरियर बना लो तो फिर तुम्हारा शोना बाबू भी रोज ठीक से 'ठा लिया तरेगा ठाना'!

इसके कारण 24 घण्टे में न जाने कई घण्टे इनके यूँही बरबाद होते हैं, जिसके कारण कई बार ये सभी मानसिक तनाव में भी रहते हैं और फिर नींद पूरी न होने से देर-सबेर विभिन्न व्याधियों से घिर जाते हैं। परिणामस्वरूप परीक्षा नजदीक आते ही कइयों के हाथ-पाँव फूलने लगते हैं।

पर फिर इस दौरान जो अपने स्नायुतन्त्र पर नियंत्रण कर लेते हैं, वे सफल हो जाते हैं। हाँ, कई बार दुर्भाग्यवश भी कई तेजतर्रार अभ्यर्थी रह जाते हैं। मसलन कोई दुर्घटना हो जाना या फिर घर-परिवार में किसी करीबी की मृत्यु हो जाना या अत्यंत कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि भी कइयों को कई बार अंतिम सफलता से रोक देती है!

पर फिर अंत में सफल हो जाने पर भी कई बार जब कुछ पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के नाम भ्रष्टाचार में डूबा देखता हूँ तो दुःख भी होता है कि सरकार इन्हें इतना सब कुछ सुविधा, वेतन, ठसक इत्यादि देती है, फिर भी अरबों-करोड़ों लूट कर पता नहीं ये मरने के बाद सब लेकर कहाँ जाएंगे!

कुमार प्रियांक

सुजीत गुप्ता

सुजीत गुप्ता

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