जिसके प्यार को लोग मजाक बनाये, उसके सम्मान में CM नीतीश ने छोड़ दी थी अपनी कुर्सी

दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी कहते हैं कि मेरे बाबा दशरथ मांझी जगंलों और पहाड़ों से लकड़ी काटकर बाजार में बेचते थे तो हमलोगों का पेट भरता था.

Update: 2020-02-14 11:43 GMT

दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्‍़बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया. बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक्‍़त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का इंतकाम.

पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'.

साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया

दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी।


दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी कहते हैं कि मेरे बाबा दशरथ मांझी जगंलों और पहाड़ों से लकड़ी काटकर बाजार में बेचते थे तो हमलोगों का पेट भरता था. मेरी मां फाल्गुनी देवी पिता के लिए पहाड़ पर खाना पहुंचाती थी.एक दिन खाना ले जाते वक्त उसे पत्थर से ठोकर लग गई और वो गिर गईं. खाना बर्बाद हो गया और तब से वो बीमार रहने लगीं. इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई तो पिता जी ने प्रण लिया कि जब तक पहाड़ का तोड़ कर रास्ता नहीं बना देंगे तब तक चैन से नही बैठेगें।


उन्होंने पहाड़ तोड़ना शुरू किया तो उन्हें घर के लोग और ग्रामीण पागल कहने लगे. लेकिन, सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता का रूप दे दिया तो लोग देखते रह गए. जाहिर है आज वे हम सबके लिए मिसाल बन गए हैं. आज यहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग आते हैं और फ़ोटो खिंचते हैं।

वहीं दशरथ मांझी के जानने वाले ग्रामीण अभिनव और गोविंद बताते हैं कि वो उस समय विख्यात हो गए जब दशरथ मांझी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पटना चले गए. जब मुख्यमंत्री को बाबा के बारे में जानकारी मिली तो उन्हें बुलाकर सम्मान में अपनी कुर्सी छोड़कर बाबा दशरथ मांझी को बैठा दिया. ये अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बनीं और आज तक इसपर चर्चा होती है.बता दें कि साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था कि पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. 22 साल तक जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया।



 



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