चुनाव आयोग का कुकर्म ही 'SIR'? | देखिए कैसे कर दिया सब गोलमाल?
क्या भारत का चुनाव आयोग किसी 'SIR' के इशारे पर चल रहा है? जानिए कैसे पारदर्शिता पर उठे सवाल और जनता ने उठाई आवाज़। पढ़ें पूरी कहानी।;
देश में लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताक़त मानी जाती है — चुनाव प्रक्रिया। और उस प्रक्रिया का सबसे बड़ा प्रहरी है — भारत का चुनाव आयोग। लेकिन क्या हो जब यही प्रहरी सवालों के घेरे में आ जाए? क्या हो जब जनता कहने लगे कि चुनाव आयोग अब "सर्व जनहित" नहीं, बल्कि किसी "SIR" के इशारे पर काम कर रहा है?
जी हां, सोशल मीडिया पर इन दिनों यही चर्चा गर्म है —
"SIR" कौन है? और चुनाव आयोग का उससे क्या लेना-देना है?
क्या है 'SIR' का रहस्य?
एक वायरल वीडियो क्लिप या प्रेस वार्ता में चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी को यह कहते हुए सुना गया:
"हमने SIR से अनुमति ली थी..."
बस, फिर क्या था — जनता पूछ बैठी:
ये 'SIR' कौन है?
क्या भारत के चुनाव आयोग को अब किसी 'SIR' की परमिशन चाहिए?
क्या ये लोकतंत्र है या "ऑफिस का प्रोटोकॉल"?
जब पारदर्शिता पर लगने लगे धब्बे
चुनाव आयोग हमेशा से ही स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन हाल की घटनाओं से यह भरोसा दरकता नज़र आ रहा है:
EVM पर उठते सवाल, मगर जवाब गोलमोल।
राजनीतिक दलों की शिकायतों पर ढीली प्रतिक्रिया।
और अब यह 'SIR' राज — जिसने संदेह को और गहरा कर दिया है।
क्या यह सब महज़ संयोग है? या वाकई कुछ गोलमाल है?
जनता बोले — SIR नहीं, सिर्फ संविधान चले!
सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं:
#WhoIsSIR
#ECIExposed
#DemocracyUnderThreat
लोग कह रहे हैं:
"जब एक क्लर्क से लेकर चुनाव आयुक्त तक SIR के आदेश पर चलते हैं, तो लोकतंत्र किसके भरोसे चलेगा?"
चुनाव आयोग की सफाई?
अब तक आयोग की तरफ से इस मुद्दे पर कोई ठोस सफाई नहीं आई है। अगर "SIR" महज़ एक प्रशासनिक संदर्भ था — तो उसे स्पष्ट क्यों नहीं किया गया?
क्यों जनता को अंदेशा होने दिया गया कि कोई 'बाहरी शक्ति' चुनाव प्रक्रिया को निर्देशित कर रही है?
'SIR' से सवाल पूछना गुनाह नहीं है!
लोकतंत्र का मतलब है सवाल करना। और जब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग किसी "SIR" के इशारे पर चल रहा है — तो जवाब देना आयोग की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है।
वरना ये तो वही बात हुई —
"जनता पूछे: ये सब गोलमाल है क्या?"
और आयोग बोले: हां SIR!"