राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के खिलाफ शिक्षक एवं छात्र सड़कों पर क्यों ?

Update: 2019-10-20 08:56 GMT

भारत सरकार ने फिलहाल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 लागू कर दी है। जिसमें सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों को कमजोर करने के लिए उद्योगपतियों के प्राइवेट संस्थाओं को मजबूत करने के मन से इस नीति को लागू किया गया है। सरकार फिलहाल इस नीति के तहत शिक्षा को उद्योग के रूप में देश में स्थापित करना चाहती है। इस नीति के लागू होने के बाद देश की शिक्षण संस्थाएं स्वंय में दम तोड़ने लग जायेगीं। जिसको उद्योगपतियों के बनाए हुए शिक्षण संस्थानों मजबूत करने के इरादे से सरकार ने इस नीति को लागू किया है। जिसका भविष्यगामी परिणाम यह होगा कि शिक्षा कुछ चंद उद्योगपतियों के हाथों सिमट कर रह जायेंगी। वे अपनी इच्छा के अनुसार छात्रों से शिक्षा शुल्क वसूल करेंगें।

इसका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव देश के किसान मजदूर दलित आदिवासी पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों पर पड़ेगा। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न वर्गों को महंगी प्राइवेट संस्थानों में पढ़ाने से कोई समस्या नहीं है। उनकी आर्थिक सम्पन्नता महँगी शिक्षा प्राप्त करने में कोई व्यवधान नही डालती। दूसरा सबसे बड़ा नुकसान यह है कि धीरे-धीरे सार्वजनिक संस्थानों के धन के अभाव नष्ट हो जाने से सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं हमेशा के लिए खत्म हो जायेंगी। सरकार ने 2016-17 के बजट में HEFA हायर एजुकेशन फाइनेंस एजेंसी स्थापना की है| जिसका उद्देश्य शैक्षिक संस्थानों में पूंजीगत संपत्ति का सर्जन करना है और साथ ही साथ ही है उन्हें कर्ज भी मुहैया करवाना। अर्थात जिन सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों को जिंदा रहना है उन्हें HEFA से कर्ज लेकर चलाना होगा। कुछ निश्चित अवधि बाद यह कर्ज वापस लौटाना होगा। सरकार शिक्षण संस्थानों को जिंदा रखने के लिए किसी प्रकार का कोई खर्च नहीं करेगीं। जिससे छात्रों की फीस में भारी बढ़ोतरी होगीं। इससे आर्थिक दृष्टि से कमजोर बहुत बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित हो जाएगा।




 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट के तहत अकादमिक और सेवा शर्तों पर निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता बोर्ड ऑफ गवर्नर्स करेंगें। जिससे इन शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता खत्म हो जायेगीं। इस नीति में सरकार ने संघीय विश्वविद्यालय के विखंडन की भी सिफारिश की गई है। इसके खिलाफ देश में जगह-जगह व्यापक स्तर पर आन्दोलन चल रहे है। लेकिन सरकार का इस पर कोई संज्ञान नही है। दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन DUTA के नेतृत्व में कांग्रेस के संगठन, डीटीएफ, एनडीटीएफ जैसे संगठनों ने 16 अक्टूबर पर विशाल प्रदर्शन के बाद अब 22,23, 24 को दिल्ली विश्वविद्यालय को बन्द करके सड़कों पर उतरने की अपील की है। एजुकेशन पॉलिसी 2019 किसी भी दृष्टि से देश के शिक्षण संस्थानों के हित में नहीं है। आन्दोलन कर रहे देश के शिक्षकों की मांग है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में लंबे समय से पढ़ा रहे संविदा पर एवं तदर्थ अस्थाई अध्यापकों को नियमित किया जावें।




 दिल्ली विश्वविद्यालय में 5000 से अधिक अध्यापक अस्थाई तौर पर पढ़ा रहे हैं उनको नियमित करने की मांगे लम्बे समय से उठ रही है। कई सालों से पढ़ा रहे शिक्षक नियमित होने की आशा में उम्र अधिक हो चुकी है। अब वे अधिक उम्र के कारण किसी अन्य सरकारी नौकरीयों के आवेदन करने योग्य नही रहे। सरकार को ऐसा लगता है कि शिक्षण संस्थानों को चलाने के लिए नियमित अध्यापकों को पर जितना खर्च किया जाता है शायद उससे बहुत कम मात्रा में अस्थाई अध्यापकों पर खर्च करके संस्थाएं आराम से चलाई जा सकती है । अस्थाई शिक्षकों को अतिरिक्त सेवायें में नहीं देनी पड़ती शायद इसलिए भी वह नियमित नहीं करना चाहती। सरकार के लगातार कदम निजीकरण की तरफ बढ़ने के कारण भी उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को सरकारी नौकरियों से वंचित रखना चाहती है। अध्यापकों का सरकार पर गुस्सा इसलिए भी है कि लंबे दशकों से अध्यापकों की पदोन्नति नहीं हुई है।




 इस पीड़ा को उसी दृष्टि से समझा जा सकता है जब किसी को लंबे समय से किसी का विकास रोक दिया जाए तो वह व्यक्ति धीरे-धीरे मानसिक तनाव से धीरे-धीरे परेशान होने लग जाता है वही ही स्थिति आज देश के शिक्षकों की हो रही है। जिनकी पदोन्नति को सरकार ने लंबे समय से रोक कर शिक्षकों की उन्नति का मार्ग बन्द कर दिया है। शिक्षण संस्थानों में लगातार बढ़ती हुई फीस भी शिक्षक एवं छात्रों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रही है। सरकार ने आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण देने के लिए ईडब्ल्यूएस सिस्टम को लागू कर दिया लेकिन सरकार ने इसको पूरा करने के लिए किसी प्रकार की कोई अतिरिक्त वित्तीय सहायता अभी तक उपलब्ध नहीं करवाई है।

सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों को पेंशन लंबे समय से नहीं मिलना। देश के अध्यापकों में गुस्सा इसलिए सरकारी फरमान जारी हुआ है कि रिक्त शिक्षकों के पदों को गेस्ट अध्यापकों के माध्यम से भरा जायेंगा। इस तरह सरकार का उद्योगपतियों को खुश करने के लिए लगातार निजीकरण की तरफ बढ़ते हुए कदमों के खिलाफ छात्र एवं शिक्षक सड़को पर आन्दोलन के लिए प्रेरित हुए।




 लेखक डॉ. अनिल कुमार मीणा प्रभारी दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस असिस्टेंट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय

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