सीएम पद की शपथ लेते ही सुखविंदर सुक्खू ने कर दिए बड़े ऐलान

Update: 2022-12-11 11:52 GMT

शिमला. कांग्रेस नेता एवं चार बार के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रविवार को एक समारोह में हिमाचल प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. शपथ लेने के तुरंत बाद ही उन्होंने पुरानी पेंशन योजना को लेकर बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि उसे यथासंभव जल्द ही लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा, 'अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करेंगे. उसके बाद हम सब योजनाएं, जो भी वादे किए हैं… उसे पूरे करने का काम करेंगे. पुरानी पेंशन स्कीम पहली कैबिनेट में लागू कर देंगे. ईमानदान पारदर्शी सरकार होगी.'

वहीं, शपथग्रहण समारोह में मौजूद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि पार्टी ने जो भी वादा किया है, उसे जल्द से जल्द लागू करना चाहते हैं. प्रियंका के अलावा शपथग्रहण समारोह में राहुल गांधी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने यहां ऐतिहासिक रिज मैदान में खुले आकाश के नीचे आयोजित एक समारोह में 58 वर्षीय सुक्खू को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी. निवर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे मुकेश अग्निहोत्री ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इस समारोह में शामिल हुए. पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और वरिष्ठ नेता सचिन पायलट भी शपथग्रहण समारोह में उपस्थित रहे.

चार बार विधायक रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू

सुक्खू कांग्रेस से संबद्ध नेशनल स्टूडेन्ट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) की राज्य इकाई के महासचिव थे. उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की थी. जमीनी स्तर पर काम करते हुए वह दो बार शिमला नगर निगम के पार्षद चुने गए थे. उन्होंने 2003 में नादौन से पहली बार विधानसभा चुनाव जीता और 2007 में सीट बरकरार रखी, लेकिन 2012 में वह चुनाव हार गए थे. इसके बाद 2017 और 2022 में उन्होंने फिर से जीत दर्ज की.

राज्य की 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 40 विधायक हैं. राज्य में विधानसभा चुनाव 12 नवंबर को हुआ था और नतीजों की घोषणा बृहस्पतिवार को की गई. जुलाई 2021 में वीरभद्र सिंह के निधन के बाद से राज्य में यह पहला चुनाव था.

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