अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया से जुड़ने की तालिबान की पहली शर्त, अमेरिका निकले बाहर अफगानिस्तान से
एक ओर अफ़ग़ान सरकार के वरिष्ठ अधिकारी और इस देश के धर्मगुरु तालेबान से शांति प्रक्रिया में शामिल होने पर बल दे रहे हैं तो दूसरी ओर इस गुट का एक वरिष्ठ सदस्य अफ़ग़ानिस्तान से अमरीकी सैनिकों के जल्द से जल्द निकलने पर बल दे रहा है जो शांति प्रक्रिया में जुड़ने के लिए तालेबान की पहले वाली शर्त की तरह है।
मुल्ला अब्दुस्सईद के शब्दों में जो लोग अफ़ग़ानिस्तान की मुश्किल को हल और तालेबान के साथ शांति वार्ता प्रक्रिया शुरु करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि इस देश से विदेशी सैनिकों को बाहर निकालें। मुल्ला सईद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की अफ़ग़ानिस्तान के संबंध में नीति को वॉशिंग्टन की पिछली नीति की तरह नाकाम मानते हुए बल देते हैं कि ट्रम्प न सिर्फ़ यह कि तालेबान को ख़त्म नहीं कर पाएंगे बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा भी क़ायम नहीं कर पाएंगे।
यह पहली बार नहीं है जब तालेबान ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए इस देश से अमेरिकी और नेटो फ़ोर्सेज़ के बाहर निकलने की शर्त रखी है। अमेरिका भी तालेबान गुट के जारी हमले को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सैन्य मौजूदगी को जारी रखने के औचित्य के तौर पर पेश करता है। इसलिए बहुत से टीकाकारों का मानना है कि तालेबान की घोषित व व्यवहारिक नीति में अंतर है। यह गुट अफ़ग़ान जनमत के निकट अपने हमलों का औचित्य पेश करने के लिए अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी को बहाने के तौर पर पेश करता है जबकि दूसरी ओर अफ़ग़ान फ़ोर्सेज़ और जनता के ख़िलाफ़ उसके बढ़ते हमलों के कारण वह ख़ुद इस देश में अशांति का तत्व बन गया है।
बहरहाल अफ़ग़ान जनता को उम्मीद है कि तालेबान अपने हालिया बयान के प्रति पाबंद रहेंगे कि जिसमें उन्होंने ख़ुद को राष्ट्रीय हितों का संरक्षक कहा है और अपने हथियार रखकर व अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में शामिल होकर नेटो और अमेरिका से इस देश के अतिग्रहण के जारी रहने का बहाना छीन लेंगे।