बीस साल में क्या हासिल कर पाया अफ्रीकी संघ?

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Update: 2022-07-17 05:52 GMT

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बड़ी उम्मीदों के साथ 9 जुलाई 2002 को अफ्रीकी संघ की शुरुआत की गई थी. इन बीस सालों में अफ्रीकी संघ ने अफ्रीका की क्षमता को पहचानने और उसकी समृद्धि को सुरक्षित करने के लिए काफी कुछ किया है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है. बीते हफ्ते अफ्रीकी संघ ने अपनी 20वीं वर्षगांठ मनाई है. आधिकारिक तौर पर अपनी स्थापना के दो दशक बाद संगठन ने काफी कुछ हासिल किया है, खासतौर पर वैश्विक मंच पर अफ्रीका की आवाज उठाने और व्यापारिक बाधाओं को तोड़ने के संदर्भ में. हालांकि आलोचकों का कहना है कि अफ्रीकी संघ को उन संघर्षों और सरकारों के गैर लोकतांत्रिक परिवर्तनों से बेहतर ढंग से निपटने की जरूरत है जो कि इस महाद्वीप की समृद्धि में बाधक बने हुए हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एकीकृत होकर आवाज उठाने की जरूरत है. 

2002 में जब ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी की जगह पर अफ्रीकी संघ का गठन हुआ था तो उसके संस्थापकों ने राजनीतिक सहयोग के लिए अधिक व्यावहारिक और यथार्थवादी रुख अपनाने का वादा किया था. अफ्रीकी संघ के पहले अध्यक्ष थाबो म्बेकी ने दक्षिण अफ्रीका के डरबन में उद्घाटन सत्र में कहा था, "अब समय आ गया है कि अफ्रीका को वैश्विक मामलों में अपनी सही जगह लेनी चाहिए." विशेषज्ञों का मानना है कि इस उद्देश्य को पाने में एयू काफी हद तक सफल रहा है. संघ के 55 सदस्य देशों ने वैश्विक मुद्दों पर एक साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है जिससे अफ्रीका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक अहम स्थान हासिल हुआ है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ थॉमस क्वॉस्की टीकू कहते हैं, "अफ्रीकी संघ ने अफ्रीकी देशों को दुनिया भर में निर्णय-प्रक्रिया में अधिक सक्रिय और मुखर बनाने में मदद की है." बेल्जियम और लक्जमबर्ग में घाना की राजदूत हैरियत सेना सिया-बोएतेंग भी कुछ ऐसे ही विचार रखती हैं. दक्षिण अफ्रीका स्थित एक थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज में अफ्रीकी संघ के बारे में आयोजित एक वेबिनार में उन्होंने कहा, "वैश्विक स्तर पर अफ्रीकी देश कई मामलों में यूरोपीय देशों की तरह काम कर रहे हैं. मसलन, मसौदा तैयार करने, बातचीत करने और अपने हितों की रक्षा के संदर्भ में एकजुट होकर बात करने में. जब अफ्रीका एक होकर कोई बात कहता है तो पूरी दुनिया उसे सुनती है और उसका संज्ञान लेती है." हाल ही में अफ्रीकी संघ को कोविड संक्रमण से निपटने, वैक्सीन उपलब्ध कराने और कोविड-19 कर्ज राहत के मामलों में काफी प्रशंसा मिली थी.

जहां एक ओर अफ्रीकी संघ की उपलब्धियों की चर्चा होती है वहीं दूसरी कई विश्लेषकों का यह भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर अफ्रीकी संघ सदस्य देशों के बीच सहमति बनाने में विफल रहा है जिसकी वजह से अफ्रीका में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ी है. अफ्रीकी संघ के देश इस क्षेत्र में रूस के बढ़ते प्रभाव के बारे में भी एकमत नहीं हो सके और ना ही यूक्रेन पर आक्रमण के बारे में. सिया बोएतेंग कहती हैं, "हमें खुद को स्वार्थी होने से रोकने की जरूरत है. अफ्रीका को दुनिया में अपनी जगह ढूंढ़ने की जरूरत है और अपने हितों को बाहरी दुनिया में पेश करने की जरूरत है." यदि यूरोपीय संघ से तुलना की जाए तो अफ्रीकी संघ कुछ हद तक उसी पर आधारित है. यूरोपीय संघ की तरह अफ्रीकी संघ के भी मुख्य स्तंभों में से एक आर्थिक एकीकरण है.

अफ्रीकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी एएफसीएफटीए की शुरुआत 1 जनवरी 2021 से हुई थी और इस समझौते ने अफ्रीकी संघ को आर्थिक एकीकरण की दिशा में नई राह दिखाई और नई गतिशीलता दी. एफसीएफटीए का उद्देश्य है कि अफ्रीका महाद्वीप में सेवाओं और वस्तुओं का एक बाजार बने और अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार को बढ़ाकर 35 बिलियन डॉलर तक ले जाया जाए. इसके अलावा बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करना भी प्रमुख उद्देश्य है क्योंकि अफ्रीका एक बड़ा बाजार है. अफ्रीकी संघ समझौते पर बातचीत और उस पर अमल में सहयोग कर रहा है. जर्मनी की एजेंसी फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन, जीआईजेड के मुताबिक, "एएफसीएफटीए ने बहुत ही कम समय में बड़ी कूटनीतिक और राजनीतिक सफलता हासिल की है, साथ ही महत्वाकांक्षी उदारीकरण लक्ष्यों को तय करने और 55 देशों के बीच मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है."

अफ्रीकी संघ ने पिछले दो दशक में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से सदस्य देशों के बीच शांति और सुरक्षा के मामलों को भी सुदृढ़ किया है. अफ्रीकी संघ की स्थापना से पहले और स्थापना के शुरुआती वर्षों में इस इलाके में सुरक्षा मामलों और शांति स्थापना की जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र पर ही थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि अफ्रीकी संघ के पूर्ववर्ती ओएयू के पास सदस्य देशों के आपसी संघर्षों को हल करने में कानूनी साधनों की कमी थी. अफ्रीकी संघ ने इस मामले में अलग दृष्टिकोण अपनाया. गैर-उदासीनता के सिद्धांत को अपनाते हुए इसे युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवाधिकार हनन जैसे मामलों में सदस्य देशों के बीच हस्तक्षेप का जनादेश मिला हुआ है. अफ्रीकी संघ ने अपनी स्थापना से लेकर अब तक महत्वपूर्ण शांति अभियानों का विकास किया है, संयुक्त राष्ट्र संघ की सेनाओं के साथ मिलकर माली और कांगो गणराज्य जैसे देशों में काम किया है और बुरुंडी, सूडान और सोमालिया जैसे देशों में अपनी सेना भेजकर शांति स्थापना के प्रयास कर रहा है. हालांकि संगठन के मुख्य राजनीतिक धड़ों के बीच समन्यव का अभी भी अभाव है. साल 2019 में एक अध्ययन में सामने आया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अफ्रीकी संघ शांति और सुरक्षा परिषद बड़े संकट के दौरान एक दूसरे के साथ सहयोग करने में असहज रहे हैं.

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