प्रसिद्ध पर्वतारोही मेघा परमार अब समाज सेवा की ओर अग्रसर
22 मई 2019 को सुबह पांच बजे मेघा ने एवरेस्ट फतह कर लिया....;
प्रसून लतांत
एवरेस्ट फतह के बाद मध्य प्रदेश की 26 वर्षीय मेघा परमार के लिए जिंदगी की और उसके लिए ऑक्सीजन की कीमत बढ़ गई है। इसलिए वे अब पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करती हैं और खुद भी लगाती हैं। मेघा जब जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी तब उन्होंने खुद से दो वादे किए। पहला तो यह कि वे ताउम्र पेड़ लगाएंगी और दूसरा लोगों की मदद करेंगी।
माउंट एवरेस्ट और दुनिया की अन्य ऊंची चोटियों की चढ़ाई के बाद मध्य प्रदेश की सरकार ने इनको बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड एंबेसडर घोषित किया। मेघा ने बालिकाओं के विकास की दिशा में अनेक कदम उठाए। लैंगिक भेदभाव से मुक्त कराने और शिक्षा के प्रति दिलचस्पी जगाने के लिए अपने गांव सहित प्रदेश के गांव गांव में विभिन्न अभियानों का संचालन किया।
मेघा ने बताया कि मध्य प्रदेश के गांवो में लडके के जन्म पर मिठाई बांटने का रिवाज था और लड़कियों के जन्म पर गुड बांटने का रिवाज था। मेघा ने पूरे प्रदेश को इस बात के लिए राजी कर लिया कि अब लड़का लड़की के जन्म पर कोई भेदभाव नहीं होगा। दोनों के जन्म पर मिठाईयां बांटी जाएगी। मेघा की इस अपील का प्रदेश के ज्यादातर लोगों ने मान रखा। अब मध्य प्रदेश में चाहे बेटी का जन्म हो या लड़के का। दोनों के जन्मों पर मिठाईयां बांटी जाने लगी है।
इसी तरह मासिक धर्म के प्रति फैले अंधविश्वास से समाज को मुक्त कराने के लिए भी अनेक प्रयास कर रही हैं। उनका कहना है कि मासिक धर्म के प्रति लड़कियों को जागरूक करने की जरूरत है क्योंकि अंजानेपन के कारण बहुत सी लड़कियां अनेक गंभीर रोग की शिकार हो जाती हैं। इसके अलावा वह महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत की तैयारी कर रही हैं।
लॉक डाउन के दौरान भी मेघा लोगों की मदद के लिए काम करती रहीं। उन्होंने बहुत से लोगों के बेड,दवा और ऑक्सीजन की व्यवस्था की।
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के भोजपुर की रहने वाली मेघा परमार ने एवरेस्ट चढ़ाई के खतरनाक अनुभवों की चर्चा करती हुई बोलीं कि जिंदगी में कामयाबी के लिए आपके भीतर जुनून होना चहिए। क्योंकि आपका जुनून आप से वह कराता है,जिसे आप करने का बारे ने सोच भी नहीं सकते। मेघा ने हिम्मत कर एवरेस्ट फतह जरूर किया लेकिन इस फतह के लिए अनेक भूषण कष्टों का सामना करना पड़ा। मेघा बताती हैं कि चढ़ाई के दौरान उन्हें दो दो किलो वजन के जूते पहनने पड़े। हमेशा पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता था। हर समय शरीर टूटता रहता था। सांस लेने में भी बहुत कठिनाई होती थी। जैसे जैसे उंचाई पर पहुंची तो ऑक्सीजन की कमी भी होने लगी थी। कभी कभी लाशों के ऊपर से भी गुजरना पड़ता था।
मेघा पहली खेप में एवरेस्ट पर नहीं पहुंच पाई थी। केवल 700 फूट से पीछे रह गई थीं। तब उनको रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन कराना पड़ा था। मेघा की जगह कोई दूसरी लड़की होती तो शायद वह एवरेस्ट पर चढ़ने की दूसरी कोशिश नहीं करती। लेकिन मेघा कुछ दूसरी ही मिट्टी की बनी हुई है। स्वस्थ होते ही उसने दोबारा एवरेस्ट फतह के लिए चढ़ाई शुरू की और 22 मई,2019 को सुबह 5 बजे एवरेस्ट पर देश का तिरंगा फहरा दिया। मेघा ने तिरंगा फहराने के बाद अपने गांव की मिट्टी और पत्थर को रख दिया।
किसान की बेटी और गांव में रहने वाली मेघा आज भी खेती में पिता की मदद करती है। किताबें कम पढ़ती है लेकिन अच्छी फिल्में देखने में संकोच नहीं करती। उनको कलाकार प्रिय है। नाटक और संगीत में खास रुचि है। लोकगीत में गहरी रुचि है लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उनका मन रमता है। बिस्मिल्ला ख़ां की शहनाई उनको बहुत पसंद है। मेघा कोई बनावटी और आडंबर वाली जिंदगी नहीं जीना चाहती है।