मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा झटका, सीवीसी को दो हफ्ते में आलोक वर्मा के खिलाफ जांच पूरी करने का आदेश

Update: 2018-10-26 11:12 GMT

यूसुफ़ अंसारी

नई दिल्ली। सीबीआई में जारी रिश्वतखोरी के आरोपों के ड्रामे के बीच सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की मोदी सरकार को तगड़ा झटका दिया है. जबरन छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद सुर्पीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए आदेश दिया है कि आलोक वर्मा के खिलाफ मामले की जांच सेंट्रल विजिलेंस कमीशन यानी सीवीसी को करेगी. देश की सबसे बड़ी अदालत ने सीवीसी को दो हफ्ते में जांच पूरी करनी का आदेश दिया है. खुद सुप्रीम कोर्ट सीवीसी की जांच की खुद निगरानी करता रहेगा.

सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले की सुनवाई की सबसे खास बात यह है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मोदी सरकार की तरफ से नियुक्त किए गए सीबीआई के अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव को कोई भी बड़ा या नीतिगत फैसला करने पर पूरी तरह रोक लगा दी है. कोर्ट के इस आदेश के बाद नागेश्वर राव महज रूटीन कामकाज ही देख सकेंगे. किसी तरह का नीतिगत फैसला, किसी केस को खोलने अथवा बंद करने, किसी बड़े अफसर का तबादला करने जैसे काम उनके कामकाज के अधिकार के दायरे से बाहर रहेंगे. इस लिए यह कहा जा रहा है कि इस फैसले से मोदी सरकार को भले ही झटका लगै हो लेकिन इसका सीधा असर सीबीआई के कामकाज पर पड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर सीबीआई पर एक तरह से दबाव बहना दिया है. अभी तक सीबीआई अपनी जांच में पूरी गोपनीयता बरतती रही है. अभी तक सीबीआई सिर्फ प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर अपने कामकाज का ब्यौरा उपलब्ध कराती रही है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पहली बार ऐसा होगा कि अंतरिम निदेशक जो भी फैसला लेंगे उसकी एक प्रति एक बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे. इस फैसले के बाद सीवीसी की जांच का नतीजा आने तक केन्द्र सरकार और सीबीआई के बीच सुप्रीम कोर्ट की अहम भूमिका रहेगी और वो एक सेतु की तरह काम करेगा.

गौरतलब है कि आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में दलील दी थी कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष शामिल रहते हैं. सीबीआई निदेशक की नियुक्ति 2 वर्ष के लिए की जाती है और कार्यकाल के दौरान बिना इस समिति की अनुमति लिए हटाया अथवा तबादला नहीं किया जा सकता है. आलोक वर्मा ने अपनी याचिका में वर्मा ने यह भी दावा किया था कि उन्हें उनके पद से गलत ढंग से हटाने के बाद बनाए गए अंतरिम निदेशक ने सीबीआई के अधीन कई बड़े मामलों में अधिकारियों में फेरबदल किया है. वर्मा ने आशंका जताई है कि ऐसे फैसलों से जांच प्रभावित हो सकती है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने केन्द्र सरकार, सीबीआई और सीवीसी तीनों को नोटिस जारी करते हुए कोर्ट के अपना-अपना पक्ष सामने रखने को कहा है. केंद्र की मोदी सरकार को शायद सुप्रीम कोर्ट में अपनी फजीहत को अंदेशा रहा होगा. इश लिए गुरुवार को देर शाम को सीबीआई से बयान जारी करवा कर यह जानकारी दी गई थी कि आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक पद से हटाया नहीं गया है. उनके खिलाफ जांच पूरी होने तक उन्हें सिर्फ छुट्टी पर भेजा गया है और एम नागेश्वर जांच पूरी होने तक सीबीआई के अंतरिम निदेशक रहेंगे. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने नागेश्वर राव के पर पूरी तरह कतर दिए.   

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