अगस्त 1990 में वीपी सिंह ने वोट बैंक के चलते बोतल से निकाला आरक्षण का जिन्न, और लग गई थी देश में आग
अगस्त 1990 में वीपी सिंह ने राजनीतिक भविष्य और वोट बैंक सुरक्षित करने के लिए उदेश्य से निकाला बोतल से आरक्षण का जिन्न
एक बार की बात है , वीपी सिंह नामक प्रधानमंत्री हुए थे देश में। भाजपा के सहयोग से उन्होंने सरकार बनाई हुई थी। अगस्त 1990 में उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य और वोट बैंक सुरक्षित करने के लिए आरक्षण का जिन्न बोतल में से निकाला और 1931 की जनगणना के आंकडों के आधार पर बनी मंडल आयोग की दस साल पुरानी रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण बढा दिया। जातिगत आरक्षण के विरोध में पूरे देशभर में प्रदर्शन हुए, लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही। आज ही के दिन यानी 19 सितंबर 1990 को दिल्ली में देशबंधु कॉलेज के एक छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह कर लिया। उसके बाद इस अन्याय के खिलाफ 200 से ज्यादा छात्रों ने आत्मदाह किए आरक्षण के विरोध में, जिनमें से 62 की मृत्यु हो गई। बंद, हड़ताल, धरने सब कुछ हुए, लेकिन सरकार वोट बैंक के चक्कर में अड़ी रही।
आखिर ऐसे काम नहीं बना तो आरक्षण का विरोध करने वालों को धर्म की अफीम सुंघाई गई। भाजपा ने 500 साल पुराने राम मंदिर का मुद्दा निकाला और सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी। आरक्षण का विरोध कर रहे लोगों को राम मंदिर में उलझा दिया, मुद्दे से डायवर्ट करके भटका दिया। लोग भूल गये कि दो सौ लोगों ने आत्मदाह किया था किसी कॉज के लिए। लोग भूल गये कि उनकी पीढियों का भविष्य खतरे में है। फिर कुछ समय बाद लोगों को आदत हो गई आरक्षण के साथ जीने की, वो आरक्षण को ही अपनी नियति मान बैठे। उनकी आगे वाली पीढियों को बताया ही नहीं गया कि क्या हुआ था। वेमुला की आत्महत्या पर महीनों रोने वाला मीडिया तो बताता ही कहां से, जब हमें हमारे लोगों ने ही नहीं बताया। वो धर्म की अफीम सूंघकर बेहोश पड़े रहे, आज तक पड़े हैं।
आज 28 साल हो गये। वो आरक्षण ज्यों का त्यों है, कोई समीक्षा नहीं हुई। इस दौरान एक पूरी पीढी पैदा होकर ओवरऐज हो गई। कोई कोर्ट कोई सरकारें कुछ नहीं कर पाई आरक्षण के नाम पर अपने वोट बैंक पक्का करने के सिवा। भाजपा ने दो बार देश में सरकार बना ली, राज्यों में जमकर सत्ता सुख भोग लिया.. लेकिन हमें तो ना राम मंदिर मिला, ना आरक्षण से निजात। फिर भी हम हिंदुत्व के नशे में बीजेपी को वोट देते रहे आजतक। अब बीजेपी ने sc/st एक्ट और थोप दिया। हम अभी भी नशे में हैं। पता नहीं कब तक रहेंगे इस नशे में।
मुझे पता है तुम नहीं छोड़ पाओगे इस नशे को, तुम वहीं वोट दोगे। बीजेपी को या कांग्रेस को। तुम नोटा पर वोट नहीं दे सकते, लोगों ने आरक्षण के अन्याय के खिलाफ लड़ाई में अपनी जानें दी थीं। मुझे कोई उम्मीद नहीं है तुम भक्तों से, लेकिन मैं बस यह चाहता हुं कि लोग जानें राजीव गोस्वामी, सुरिंदरसिंह चौहान जैसों के बारे में जिन्होंने आरक्षण के खिलाफ अपनी जान दी थी। बताते रहना अपने बच्चों को उनके बारे में, शायद वो बच्चे किसी रोज इस नशे से बाहर निकल कर होश में आ पाएं, लड़ना सीख जाएं अपने भविष्य के लिए।
अनिल द्विवेदी