Bharat vs India: व्यर्थ की बहस है भारत बनाम इंडिया

देश में बेरोजगारी,महंगाई, जनसंख्या वृद्धि जैसे आदि कई ज्वलंत मुद्दे हैं। लेकिन सरकार इन मुद्दों को छोड़कर व्यर्थ की बहस में परेशान है।

Update: 2023-09-07 05:00 GMT

सत्यपाल सिंह कौशिक

जब से G-20 देशों के मेहमानों के लिए,भारत के राष्ट्रपति के रात्रिभोज वाले निमंत्रण पत्र पर "प्रेसिडेंट ऑफ भारत" शब्द लिखा गया है। तभी से यह मुद्दा गरम हो गया है कि, क्या अब देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत कर दिया जायेगा। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को लगातार घेर रही है और कह रही है कि भाजपा आईएनडीआईए गठबंधन से डरकर देश का नाम बदलने जा रही है। लेकिन क्या इस बहस को व्यर्थ की बहस नहीं मानना चाहिए। देश के सामने और भी चुनौतियां हैं। जैसे , महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार,जनसंख्या पर नियंत्रण,आदि। लेकिन आज के राजनीतिज्ञ इन सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान न देकर केवल व्यर्थ की बहस में उलझे पड़े हैं। एक तरफ देश की जनता महंगाई, बेरोजगारी से परेशान है तो दूसरी तरफ हमारे नीति-नियंता भारत बनाम इंडिया की बहस में परेशान हैं। अब यह समझना होगा कि, जब भारत के संविधान में इंडिया का जिक्र है और इंडिया को ही भारत माना गया है तो फिर इस विषय पर व्यर्थ की बहस क्यों। क्या इंडिया का नाम भारत कर देने से कुछ बदल जायेगा। जी नहीं, कुछ नहीं बदलने वाला है। केवल अनावश्यक धन ही बर्बाद होगा। केवल एक नाम बदलने मात्र से देश के हजारों, करोड़ रुपया बर्बाद हो जायेंगे।

बरसों पहले इस बात पर हो चुकी है बहस

अगर इस बहस की बात की जाए तो यह बहस कोई नई नहीं है। आज से करीब 74 वर्ष पहले भी इसी तरह की बहस ने जन्म ली थी। वर्ष 1949 में संविधान सभा की बैठक चल रही थी और अनुच्छेद 1 को लेकर मंथन जारी था। समिति के सदस्य एचवी.कामथ को संविधान में लिखे गए इंडिया शब्द से आपत्ति थी। उन्होंने कहा कि जब देश के लिए और भी शब्द सुझाए गए हैं तो उन पर भी चर्चा होनी चाहिए। हिंदुस्तान, भारत, हिंददेश, भारतभूमि, भारतवर्ष ये सभी नाम देश की आत्मा से जुड़े हैं और इनके पुरातात्विक प्रमाण है। तो क्यों न इसी में से कोई नाम देश के लिए रख लिया जाए। इस पर डॉ. अंबेडकर ने आपत्ति जताते हुए कहा कि, इंडिया, दैट इज भारत। अंबेडकर ने आगे कहा कि, हमको इस व्यर्थ की बहस का मतलब समझ में नहीं आता। मेरे मित्र को भारत शब्द में दिलचस्पी है।

हालांकि समिति के सदस्य सेठ गोविंददास भी देश का नाम भारत रखने के पक्ष में थे और अपने तर्क भी प्रस्तुत किए तो वहीं समिति के एक अन्य सदस्य गोविंद पंत ने भी देश का नाम भारतवर्ष करने पर अपनी सहमति जताई। लेकिन कमलापति त्रिपाठी ने होशियारी से काम लेते हुए बीच का रास्ता निकाला और कहा की देश का नाम इंडिया अर्थात भारत रखा गया है। मतलब भारत ही इंडिया है। तो अब हमें इससे कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। और अंततः कमलापति त्रिपाठी की इस बात पर सहमति बन गई और देश का नाम इंडिया अर्थात भारत पड़ गया।

अब एक बार भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है 

लेकिन 74 साल बाद अब ये मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ा है कि, कहीं वर्तमान सरकार इंडिया का नाम भारत न कर दे। सरकार द्वारा बुलाए गए संसद का विशेष सत्र जो 18 सितंबर से शुरू होकर 5 दिनों तक चलेगा। इस मुद्दे पर और चर्चा होने की संभावना है। विपक्ष यह मान रहा है की सरकार देश का नाम बदलने पर विचार कर सकती है। और संविधान संशोधन संबंधित प्रस्ताव संसद में पेश कर सकती है।

व्यर्थ की  बहस में उलझी है सरकार और विपक्ष

अब हमें समझना होगा की विपक्ष ऐसा क्यों कर रही है। हमें लगता है की विपक्ष भी व्यर्थ की बहस में उलझी है और सरकार को घेरने की अन्य रणनीतियों पर ध्यान न देकर केवल व्यर्थ की बहस में परेशान है। सरकार को चाहिए की वे व्यर्थ की बातों में न पड़कर देश के सामने जो अन्य गंभीर चुनौतियां हैं, उनसे निपटे और विपक्ष को चाहिए की वह उन्हीं चुनौतियों को सरकार के समक्ष रखे और एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाए।

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