छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में सत्ता से बाहर हो रही है बीजेपी! कम मतदान का विश्लेषण

यूपी विधानसभा चुनाव में करीब 1 फीसदी मतदान कम होता दिखा है। इसका चुनाव नतीजों पर कितना और किस पर फर्क पड़ेगा, यह जानना दिलचस्प है।

Update: 2022-03-06 10:27 GMT

यूपी विधानसभा चुनाव में करीब 1 फीसदी मतदान कम होता दिखा है। इसका चुनाव नतीजों पर कितना और किस पर फर्क पड़ेगा, यह जानना दिलचस्प है। इसे समझकर ही इन सवालों के जवाब मिल सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में क्या बीजेपी की सरकार दोबारा बनने जा रही है? क्या बीजेपी सरकार दोहराए जाने के आसार हैं? या फिर बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है?

बीते कई चुनावों में बीजेपी को इस प्रवृत्ति का सामना करना पड़ा है कि मतदान प्रतिशत घटते ही वह सत्ता से बाहर हो जाती है या फिर उसके लिए सत्ता से बाहर होने का खतरा पैदा हो जाता है। हम उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ को ले सकते हैं जहां 0.68 प्रतिशत मतदान गिरने से बीजेपी विधायकों की संख्या 49 से घटकर 15 रह जाती है और वह सत्ता से बाहर हो जाती है। इसका मतलब यह है कि बीजेपी दो तिहाई से ज्यादा सीटों का नुकसान हो जाता है। राजस्थान दूसरा उदाहरण है जहां 0.98 फीसदी वोट घटने से बीजेपी की सीटें 163 से घटकर 73 रह गयीं। यानी आधे से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ।

यूपी के हर चरण में घटा है मतदान

मतदान के ट्रेंड और खास तौर से बीजेपी पर मतदान के घटने-बढ़ने के प्रभाव को समझकर जवाब दिया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में क्या होने वाला है। चूकि 2022 के विधानसभा चुनाव के हर चरण में वोटों का प्रतिशत गिरा है इसलिए ऐसा लगता है कि नुकसान बीजेपी को होगा। मगर, यह नुकसान कितना होगा और क्या सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत बीजेपी जुटा पाएगी या नहीं- इसे समझने के लिए हम हरियाणा, गुजरात और झारखण्ड के उदाहरणों पर भी गौर करेंगे। लेकिन सबसे पहले नज़र डालते हैं अब तक विभिन्न चरणों में हुए मतदान प्रतिशत और मतदान में आयी गिरावट पर।

उत्तर प्रदेश में चरणवार मतदान का तुलनात्मक ब्योरा

चरण

पहला 

दूसरा 

तीसरा 

चौथा 

पांचवां 

छठा 

सातवां

2022

62.4 

64.7

 62.3 

62.7

 57.3 

55.7 

-
2017

63.5 

65.7 

62.4 

62.8 

58.4 

56.52

-

अंतर

-1.1 

-1.0 

-0.1 

-0.1 

-1.1

 -0.82

-

2017 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2022 में औसतन एक फीसदी से कम मतदान बड़े बदलाव की वजह हो सकता है। दरअसल जब किसी प्रदेश में दो ध्रुवीय चुनाव होता है तो मतदान में कमी के कारण किसी एक दल को होने वाला नुकसान दूसरे के लिए फायदे में बदल जाता है। इसी तरह किसी एक दल को होने वाला फायदा दूसरे दल के लिए नुकसान में बदल देता है। इस अर्थ में एक फीसदी कम मतदान का प्रभाव दो फीसदी कम मतदान के जैसा हो जाता है। अगर मतदान में बढ़ोतरी हो तो उसे भी इसी तरीके से समझा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की डबल इंजन वाली सरकार है। हम आगे उदाहरणों के जरिए यह बताने जा रहे हैं कि मतदान घटने से नुकसान बीजेपी को होता है। बीते चुनावों में यह प्रवृत्ति देखने को मिली है कि जब मतदान बढ़ता है तो बीजेपी को इसका फायदा होता है और जब मतदान घटता है तो बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

हालांकि यह बात प्रचलित मान्यता के विरुद्ध है। प्रचलित मान्यता यह है कि मतदान के बाद वोट प्रतिशत गिरने से निवर्तमान सरकार दोबारा आती है और जब वोट प्रतिशत बढ़ जाता है तो सरकार बदल जाती है। यह परंपरागत प्रवृत्ति अब सटीक नहीं रही।

हम छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड, हरियाणा और गुजरात में मतदान प्रतिशत में हुए बदलाव और उसके बाद नतीजों में आए फर्क पर बारी-बारी से नज़र डालते हैं और उस प्रवृत्ति को समझने का प्रयास करते हैं जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ : वोट घटे तो सत्ता से बेदखल हो गयी बीजेपी

छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव पर नज़र डालें। 2013 के मुकाबले मतदान में 0.68 प्रतिशत की कमी आयी थी। मतदान में इस मामूली गिरावट ने ही बीजेपी को 2013 में 49 सीटों से 2018 में 15 सीटों पर पहुंचा दिया। बीजेपी के वोट प्रतिशत में 8.07% की बड़ी गिरावट देखी गयी। 2013 में बीजेपी को 41.04% वोट मिले थे जो घटकर 2018 में 32.97% रह गये।

छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने इस मिथक को भी तोड़ा है कि बम्पर वोट होने से सरकार बदल जाती है। 2013 में रमन सरकार दोबारा चुनकर आयी थी जबकि तब विगत चुनाव के मुकाबले 6.62 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ था।

यह भी उल्लेखनीय है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 50 सीटें मिली थीं। तब पांच साल पहले यानी 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 0.79 फीसदी अधिक मतदान हुआ था।

राजस्थान में 1% वोट कम होने से बीजेपी को 90 सीटों का नुकसान

राजस्थान एक और उदाहरण है जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में विगत विधानसभा चुनाव के मुकाबले 0.98 फीसदी वोट कम पड़े। वोटों के इस मामूली गिरावट का असर बीजेपी की सीटों में भारी गिरावट के रूप में देखने को मिला। बीजेपी की सीटें 163 से घटकर 73 रह गयीं। बीजेपी का वोट प्रतिशत जहां 2013 में 45.17 फीसदी थी वहीं वह 2018 में घटकर 38.77 फीसदी रह गया।

झारखण्ड : 2019 में सवा फीसदी मतदान घटने का खामियाजा भुगतना पड़ा

झारखण्ड में 2019 के विधानसभा चुनाव में 1.24 प्रतिशत मतदान घटा और बीजेपी सत्ता से बाहर हो गयी। न सिर्फ बीजेपी सत्ता से बाहर हुई बल्कि मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा था। बीजेपी की सीटें 35 से घटकर 25 रह गयी। हालांकि बीजेपी को मिले वोटों में 2.11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी लेकिन इसका एक कारण यह भी था कि आजसू से गठबंधन नहीं हो पाने की वजह से बीजेपी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी थी।

हरियाणा : मतदान घटा तो मैजिक फिगर से दूर रह गयी बीजेपी

हरियाणा एक और उदाहरण है जहां 2019 के विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत जबर्दस्त तरीके से नीचे आया। पिछले चुनाव के मुकाबले 8.21 प्रतिशत वोट कम पड़े। यहां वोट घटने का नतीजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। बीजेपी की 47 सीटें घटकर 40 रह गयीं। हालांकि दूसरे दलों के सहयोग से खट्टर सरकार दोबारा सत्ता में आ गयी।

गुजरात में 2.9 फीसदी वोट घटे, सीटें भी घटीं मगर बच गयी बीजेपी सरकार

गुजरात का उदाहरण भी रखना जरूरी होगा। जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 के मुकाबले 2.91 फीसदी कम वोट पड़े। मगर, यहां नुकसान के बावजूद बीजेपी सरकार बना ले गयी। बीजेपी की सीटें 115 से घटकर 99 हो गयी।

विभिन्न प्रदेशों के इन उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि वोट प्रतिशत कम होने पर बीजेपी को नुकसान होता है। सीटे घटती हैं और सरकार भी गंवानी पड़ती है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो उत्तर प्रदेश के छह चरणों में मतदान प्रतिशत में गिरावट 1 फीसदी से ज्यादा है। निश्चित तौर पर ऊपर के उदाहरण बताते हैं कि बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

अधिक मतदान से होता है बीजेपी को फायदा

वोट प्रतिशत बढ़ने से बीजेपी की सरकार रिपीट होती है। इसका उदाहरण भी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण भी ले सकते हैं जहां वोट प्रतिशत बढ़ने से बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत पहले की अपेक्षा बढ़ गयी थी। हालांकि वहां बीजेपी सरकार नहीं बना सकी थी।

सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में झारखण्ड और राजस्थान की तरह मतदान कम होने से बीजेपी को भारी नुकसान उठाना होगा और पार्टी सत्ता से बाहर हो जाएगी या वह गुजरात की तरह सरकार बचाने में कामयाब हो जाएगी? क्या ऐसी भी स्थिति हो सकती है कि हरियाणा की तरह बीजेपी को उत्तर प्रदेश में भी कोई ऐसा सहयोगी मिल जा सकता है जिसके साथ पार्टी एक बार फिर यूपी में सरकार बना ले जाए?

राजस्थान की तरह यूपी में आएंगे नतीजे आएंगे!

उत्तर प्रदेश में दो ध्रुवों के बीच चुनाव होता दिखा है। बीएसपी और कांग्रेस सिमटती नज़र आयी है। इस लिहाज से यूपी की तुलना राजस्थान से सही बैठती है जहां मतदान में गिरावट का प्रतिशत भी दोनों प्रदेशों में लगभग समान है। इसका अर्थ है कि बीजेपी को छत्तीसगढ़ में दो तिहाई सीटों का नुकसान ना होकर आधे से ज्यादा सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। बीते चुनाव में बीजेपी को यूपी गठबंधन को 325 सीटें मिली थीं और इस बार इसकी संख्या इसके आधे 163 से कम यानी 135-140 तक सिमट कर रह सकती है।

अगर बीएसपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया तो स्थिति हरियाणा जैसी भी हो सकती है जहां सीटें घटने के बावजूद कोई सहयोगी दल मिल जाए और सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत का आंकड़ा हासिल हो जाए। झारखण्ड जैसे नतीजे भी मिल सकते हैं जहां दो ध्रुवीय चुनाव में बाकी दल पिसकर रह गये थे और अगर ऐसा हुआ तो यूपी में बीजेपी 115-125 सीटों पर आ सकती है।

एक बात तय है कि कम मतदान से बीजेपी को नुकसान हो रहा है। यह नुकसान कितना होगा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा या गुजरात में से किस राज्य की तरह बीजेपी को नुकसान होगा- ये देखना दिलचस्प रहेगा।

साभार : न्यूज़ क्लिक 

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