खिचड़ी का अर्थ होता है, सबसे मिलकर बना यानि एकता या संगठन का भाव वाला व्यंजन है यह...

यूँ ही नही खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन स्वीकार किया जाता है। आप सभी को मकर संक्रांति और की हार्दिक शुभकामनाएं और खिचड़ी भोज का आमंत्रण।

Update: 2024-01-15 03:55 GMT

मकरसंक्रांति के अवसर पर भारत के लगभग सभी घरों में खिचड़ी बनाने की परंपरा है। खिचड़ी का अर्थ होता है सबका घुल-मिल जाना या एक हो जाना। जैसे खिचड़ी में सब्जी-दाल- चावल-मसाले आदि भोजन के अलग अलग अवयव/रूप एक होकर अनूठा स्वाद प्रकट करते हैं। ठीक वैसे ही हम अलग अलग वेश भूसा, खान- पान, रंग- संस्कृति युक्त भारतीय भी एक दूसरे के साथ मिलकर सनातन खिचड़ी बन जाते हैं, एक होकर सिर्फ और सिर्फ सनातनी भारतीय कहलाते हैं।

विधि के लिए तो आप जैसे चाहें सबको मिलाकर जैसे चाहें पका दें, बनेगी खिचड़ी ही। जैसे विश्व मे एकमात्र भाषा संस्कृत है जिसके शब्दो को कहीं भी किसी भी क्रम में रख दें वाक्य का अर्थ नही बदलता ऐसे ही हमारी खिचड़ी भी है, जैसे चाहें पका लें, कोई भी चीज आगे पीछे हो जाये तो भी न नाम बदलेगा न गुण और न ही स्वाद में कमी आयेगी। है न कमाल की बात। और एक खास बात बताऊं अगर इसे बिना तेल, घी के भी बनायेंगे तो भी स्वाद में कोई खास गिरावट नही आयेगी। विज्ञान की भाषा मे एक शब्द आता है सिंक- अर्थात इससे उसके अवयव को कितना भी निकाल लें या कितना भी जोड़ दें इसमी बदलाव नही होता। स्वाद के मामले में हम खिचड़ी को स्वादों का सिंक कह सकते हैं। 

चलिये अब काम की बात करते हैं, तो कहां थे हम....

हाँ, मकर संक्रांति पर। संक्रान्ति का अर्थ है सम्यक दिशा में क्रांति जो सामाजिक जीवन का उन्नयन करने वाली तथा मंगलकारी हो। मकर संक्रांति पर सूर्य नारायण दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं। हिन्दू समाज मे समस्त शुभ कार्यों का प्रारंभ सूर्य के उत्तरायण होने से प्रारम्भ होता है। सामान्य भाषा मे हम कहते हैं कि मकर संक्रांति के बाद से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे नकारात्मकता से अधिक सकारात्मकता के प्रभाव के रूप में भी देखा जाता है। मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। आज के दिन तड़के सुबह स्नान करना उत्तम माना जाता है। तिल का विशेष महत्व है अतः स्नान के जल में भी तिल के दाने डाले जाते हैं। तिल के पकवान लड्डू आदि बनाये जाते हैं और तिल का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है। आज ही के दिन भीष्म पितामह जी ने धरती पर देह त्याग कर महाप्रयाण किया था। मकर संक्रांति की तिथि पर ही 1863 में युवाओं के प्रेरणा स्रोत विवेकानंद जी का जन्म हुआ था। और आज ही के दिन स्वमी विवेकानंद जी के गुरुभाई अखंडानंद जी के शिष्य से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सर संघचालक श्री गुरुजी ने दीक्षा प्राप्त की थी।

संक्रांति या सम्यक दिशा में क्रांति को हम प्रभु श्री राम चन्द्र जी के जीवन से अच्छी तरह समझ सकते हैं। प्रभु श्री राम ने वन वन भटकते हुए माता सबरी के जूठे बेर खाये, निषाद राज की मित्रता का मान रखा, जंगल में रहने वाले जीवों जैसे पशु,पक्षी, वानर, भालू, गिलहरी सभी को एकजुट कर सेना तैयार की और अधर्म के विरुद्ध युध्द किया। यही है संक्रांति का सर्वोत्तम उदाहरण। वैसे शरीर को रोग मुक्त और शक्तिशाली बनाने में तिल का अपना वैज्ञानिक गणित है, जिसकी चर्चा फिर कभी अलग पोस्ट में करूँगा। फिलहाल ये खाना हमारे शरीर के लिए आवश्यक है, बस इतना समझ लीजिए।

अब अवसर मकर संक्रांति हो और खिचड़ी की बात न हो, यह कैसे संभव है। इसीलिये कहानी घूम फिर कर खिचड़ी ओर चली आती है। खिचड़ी नाम का शाब्दिक अर्थ ही है- जो उपलब्ध है, उसे मिला जुला कर बनाया गया व्यंजन। तभी तो जब कोई अवांछित वस्तु किसी खास चीज में मिला देता है तो बरबस ही हमारे मुँह से निकल आता है, ये क्या किया भाई तुमने खिचड़ी कर दिया सब। मेरी राय में खिचड़ी सबसे आम भारतीय व्यंजन है, जो हर स्थान में बनाया, परोसा और पसंद किया जाता है। इसे स्वल्पाहार से लेकर भोजन और भोजन से लेकर प्रसाद सभी रुपों में स्वीकार किया जाता है। मरीज को खिलाना है तो पतली मूंगदाल की खिचड़ी, जमकर पेटभर उच्च पोषण प्राप्त करना हो तो समस्त सब्जी, दाल, चावल, घी, विविध मसाले आदि से इसे तैयार किया जाता है। प्रसाद के रूप में परोसना हो तो उच्च गुणवत्तायुक्त किन्तु कम मसालेदार यानि कि सात्विक तरीके से इसे बनाया जाता है। अलग अलग स्थानों में इसके अलग अलग नाम हैं, जिसकी जानकारी फ़ोटो में दी हुई है।

यह एक ऐसा स्वादिष्ट भारतीय व्यंजन/ भोजन प्रसाद है, जिसे बनाना कभी सीखना नही पड़ता, मतलब यह है कि- जिस भी तरह चाहो झोक/ बघार लगा दो, फिर जितने भी कटे पिटे आइयम हैं प्याज, मिर्च, लहसन, कड़ी पत्ता, अनाब- शनाब सब डाल दो। थोड़ा भून लेने पर सब्जियां मटर, साग भाजी जो उपलब्ध हो डाल दो। मर्जी पड़े तब तक पकने दो। तब तक इधर उधर मटकना हो तो मटक आओ। आने के बाद चावल और दाल धोकर डाल दो। चम्मच चलाओ। स्वादानुसार नमक डाल दो। कुछ कम ज्यादा करना हो तो अभी भी विकल्प है। सब कुछ डाल दिया गया है कुछ और न बचा हो तो ढक्कन ढंक कर पकने के इंतजार करें। बीच बीच मे 2-3 बार चम्मच चलाते रहें वरना कभी कभी नीचे से थोड़ा जल जाता है। वैसे थोड़ा लग भी जाये तो चिंता न करें, स्वाद में और भी बढ़ोत्तरी होगी। अंत मे धीमी आंच पर पकाएं और पक जाने पर बिना इंतजार पेट पूजा कर लें। 

आसान विधि, बेहतरीन स्वाद, उच्च पोषण गुणवत्ता, पाचक, हल्का और झंझट मुक्त होने के कारण यह कुआरों कि प्रिय तो है ही साथ ही परेशान शादिशुदाओं की राहत भी है। धर्मपत्नी के मायके जाने पर यही सूझता है। कहीं नॉकरी पेशा लोगो का समय बचाऊ भोजन है तो कहीं बुजुर्गों का सहारा, कहीं पिकनिक की पसंद है तो कहीं पैसों की बचत। कही यह पोषण है तो कही हल्का भोजन। जिसने जिस रूप में चाहा वैसा अपनाया इसे। नाम की बात करें तो अवयवों और भाषा के हिसाब से थोड़े बहुत बदलाव के साथ खिचड़ी शब्द सर्वपरिचित है। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अगर देखा जाए तो इसमे कार्बोहायड्रेट, बसा, प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन्स सब कुछ होते हैं। और खिचड़ी के चार यार दही, पापड़, घी, अचार के साथ तो यह बेलेंस डाइट का फार्मूला बन जाती है। गुरूदेव Deepak Acharya जी के साथ वनभ्रमन मे यही हमारा पसंदीदा भोजन होता था।

लेकिन सच बात बताऊँ, मुझ जैसे पेटू के लिये यह न तो स्वल्पाहार है, न ही भोजन, न ही प्रसाद और न ही दवा। अपने लिए तो यह अवसर है, खूब दबा के खाने का, समय बचाने का, पेट से लेकर मन तक संतुष्ट कर लेने का और परिवार एवं प्रियजनों के साथ पलों को अनमोल पलों में बदल लेने का।

इति श्री खिचड़ी माता कथा...। तो बताइये कैसी लगी मेरी यह खिचड़ी कथा? जबाब कमेंट में दें।

धन्यवाद 

आप सभी को, पुनः मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..

साभार डॉ विकास शर्मा वनस्पति शास्त्र विभाग शासकीय महाविद्यालय चौरई जिला छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) 

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