देखो कैसा खेला प्रकृति ने खेल, तुम मंदिर गए तो हम मस्जिद हो आये, अब बोलो क्या तुम्हारे पास!
देखिये आज भारतीय राजनीत किस मुहाने पर खड़ी हो गई, आपने सोचा भी नहीं होगा. हिंदुत्व के दुहाई देकर 2014 में सत्ता पाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इस तरह बोहरा समुदाय की मस्जिद में चले जायेंगें यह किसी ने सोचा भी नहीं था. इससे अब तक हिंदुत्व की धार दे रहे लोंगों को भी धक्का लगा है. ठीक उसी तरह राहुल गांधी को भी मंदिर याद आ गये है, सुनने में तो यह भी आ गया था कि अब वो एक जनेऊ धारी ब्राह्मण है. लेकिन राहुल को लेकर लोंगों को झटका नहीं लगा जितना मोदी के इस कारनामे से लगेगा.
मोहर्रम के दौरान बोहरा धर्मगुरू सैयदना के इंदौर प्रवास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके कार्यक्रम में भाग लेने 14 सितंबर को इंदौर पहुंच गए हैं. इस सिलसिले में सुधारवादी बोहरा आंदोलन के नेता इरफान इंजीनियर ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें सैयदना जैसे विवादास्पद धर्मगुरू के कार्यक्रम में शिरकत करने से बचना चाहिए. उन्होंने अपने पत्र में सैयदना और उनके प्रतिनिधियों द्वारा समुदाय के लोगों पर की जाने वाली ज्यादतियों का भी विस्तार से जिक्र किया है.
देश में जब चुनाव हुए तो लोंगों को लगा कि सब कुछ हो सकता है कि यह नरेंद्र मोदी नामक शख्स मुस्लिम समाज के आगे झुकेगा नहीं. यह सोचना भारतीय हिन्दुओं के लिए गलत है क्योंकि इस देश में मुस्लिम भी रहते है तो मोदी हिन्दू ही नहीं मुस्लिम सिख इसाई सभी के पीएम है. तो सबके यहाँ जाने में दिक्कत क्यों? लेकिन यह बात आम लोग नहीं समझते है. अब लोग समझने लगे है कि अब देश के जनप्रतिनिधियों को जनता की नहीं वोट बेंक की चिंता है.
जहाँ बीजेपी और पीएम मोदी एससी एसटी एक्ट की परेशानी को लेकर एक भयंकर बीमारी से गुजर रहे है. जबकि उनको पता है तब भी एक नई समस्या खड़ी कर रहे है. अभी सवर्णों में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा था लेकिन कुछ घटता तब तक इन्होने दो और कर दिए पहला तो गन्ने से शुगर तो दूसरा रावण को समय से पहले जेल से छुट्टी जबकि इसी सरकार को वो उस घटना का सबसे बड़ा दोषी लगा था. अब तीसरी बात यह है कि अब मोदी भी मस्जिद के दीवाने नजर आ रहे है. इससे इनका कितना फायदा होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा पर राजनैतिक पंडितों का मानना है कि नुकसान की उम्मीद ज्यादा दिख रही है.
उधर बात राहुल की करें तो उनके पास तो कुछ खोने को है ही नहीं पाना ही पाना है. जिस राहुल को पप्पू कहते कहते इन्होने हीरो बनाना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला. आज राहुल को इस हालत से नीचे तो नहीं पहुंचा सकते है लेकिन उनके लिए इन्होने उम्मीद का रास्ता खोल दिया. अब देखना होगा यह राहुल से कुस्ती में जीतते है या अपने ही दाँव में चित हो जायेंगे. धीरे धीरे बीजेपी अपने द्वारा बुने जाल में ही फंसती नजर आ रही है जबकि विपक्ष बिना कुछ बोले अपनी ताकत बढाता नजर आ रहा है.