जनसंख्या नियंत्रण पर प्रभावी कानून की आवश्यकता

Update: 2022-06-06 04:15 GMT

सत्यपाल सिंह कौशिक

बढ़ती महंगाई हो, खराब शिक्षा व स्वास्थ्य व्यस्था हो या फिर बेरोजगारी,गरीबी, भुखमरी,अशिक्षा, सुरक्षा, बिजली, पानी, सड़क, अपराध, घूसखोरी, जमाखोरी, महिला अपराध, रूढ़िवादिता, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नशाखोरी, प्रदूषण, सरकारी कामकाज, जहरीली हवा, दूषित पानी, ध्वनि प्रदूषण शहरीकरण, मॉब-लिंचिंग, किसान आत्महत्या कृषि समस्याएं, अर्थव्यवस्था, औसत आय में कमी, यातायात सुविधाओं का अभाव, सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण हो इन सभी समस्याओं के पीछे जो मूल कारण है वह है देश की बढ़ती जनसंख्या है। देश की बेलगाम होती जनसंख्या ने चिंता बढ़ा दी है। एक ओर जहां संसाधन कम होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर दिन ब दिन जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है।हालत यह है कि 2001 से 2011 के बीच में भारत की जनसंख्या 17.6% बढ़ी है। हालत यही रह गया तो वह दिन दूर नहीं जब, यहां पर प्राकृतिक और भौतिक संसाधनों के लिए लोग तरसने पर मजबूर हो जाएंगे। जनसंख्या बढ़ोतरी में एक बड़ा योगदान अशिक्षा का भी है। हमारे देश के ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों के पास शिक्षा की बड़ी कमी है, गांव के लोग यह मानते हैं कि जब बच्चे ज्यादा होंगे तो वह कमाने बाहर जायेंगे और हमारी आर्थिक स्थिति को मजबूत करेंगे। वह यह भूल जाते हैं कि जब ज्यादा बच्चे होंगे तो तो हम उनको उचित शिक्षा नहीं दे पाएंगे उनका पालन पोषण ठीक से नहीं कर पाएंगे।

आश्चर्य की बात तो यह है कि देश को आजाद हुए इतने सालों के बाद भी इस विषय पर कोई ठोस पहल नहीं की गई।

आंकड़ों के आधार पर भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है, पहले स्थान पर चीन है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारी जनसंख्या चीन से भी अधिक हो चुकी है। वैश्विक कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा भारत का है जबकि वैश्विक स्तर का भारत में मात्र 4 प्रतिशत पानी पीने योग्य है। बेरोजगारी दर 7.83 प्रतिशत के करीब है। विश्व में जनसंख्या घनत्व में हमारा स्थान 33वां, प्रवासी के रूप में काम करने में पहला स्थान है। शिशु मृत्युदर में 116वां, भुखमरी में 101वां,वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 136वा , स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च में हो, ह्यूमन कैपिटल इंडैक्स में हो, साक्षरता में हो , ह्यूमन डिवैल्पमैंट इंडैक्स में हो,आत्महत्या में हो सभी स्थानों पर भारत का रैंक और राष्ट्रों की अपेक्षा नीचे ही है।

आंकड़ों की बात हो , यहां तक कि जमीनी आवश्यकताओं की पूर्ति में आज भी संघर्षरत एवं सामाजिक,आर्थिक मुद्दों पर पिछड़ेपन की मुख्य वजह जनसंख्या विस्फोट का होना है। किसी भी देश के लिए जनसंख्या का महत्व तभी है जबकि उनके लिए जमीनी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध हों और उन्हें सही मार्ग में प्रेरित कर उत्पादक कार्य करवाया जा सके जिससे देश के विकास के साथ-साथ उनकी स्वयं की जीवनशैली भी बेहतर हो सके। परन्तु भारत में इसका व्यापक अभाव दिख रहा है। 

बड़ी आबादी औसत दर्जे से नीचे का जीवन-यापन कर रही है। कई कारणों में से एक कारण अधिक जनसंख्या भी है जिसके लिए सरकार निजी क्षेत्र को मुख्य भूमिका में लाने के लिए मजबूरन कार्य कर रही है। पड़ोसी देश चीन से भी हमने सबक नहीं लिया जब चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाए, यहां तक कि तीसरे बच्चे के पैदा होने पर सरकार उस बच्चे की परवरिश करती थी बिना माता-पिता को बताए, कई कटौतियां और कठोर दंड देकर चीन ने अपने आप को जनसंख्या के मामले में बेहतर किया है। विश्व की कुल जनसंख्या का हम 18 प्रतिशत हैं, संख्या में दूसरे स्थान पर और जीवन जीने के लिए जरूरी संसाधन इस अनुपात से नाममात्र के हैं। देश के विकास में कई बाधाओं से बड़ी बाधा जनसंख्या वृद्धि रही है जिसको नियंत्रित किया जाना अत्यंत जरूरी है।

कानून के साथ ही देशवासियों को भी आगे आना पड़ेगा

जनसंख्या को नियंत्रित करना आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आर्थिक स्थिति तो बिगाड़ती ही है, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को भी जन्म देती है। इसके नियंत्रण के लिए सरकार को जागरूकता के साथ-साथ कानून भी बनाना होगा। हालांकि देशवासियों को कानून की बजाय स्वयं आगे आकर विवेक का इस्तेमाल कर जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग करना चाहिए। यह भी देशभक्ति से कम नहीं। भारत में गरीबी, अशिक्षा और जातीय राजनीति की वजह से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का कोई फायदा नजर नहीं आता, लोगों को जागरूक और शिक्षित करके ही इस मसले का हल निकाला जा सकता है। 

भारत के तकरीबन हर परिवार में लोगों की संतान के तौर पर पहली पसंद लड़का ही होता है, इस स्थिति में जनसंख्या नियंत्रण कानून से लड़कियों को गर्भ में ही मारने की घटनाएं बढऩे का खतरा बढ़ जाता है जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से पहले सरकार को इसके दुष्प्रभावों को लेकर लोगों में व्यापक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो जनसंख्या नियंत्रण कानून से जनसांख्यिकीय विकार पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है। 

हालांकि सरकार समय-समय पर परिवार नियोजन के विषय में अनेक जागरूकता शिविरों का आयोजन करती आई है लेकिन अब इस विषय पर देश में एक सख्त कानून की आवश्यकता भी महसूस की जाती है ताकि नैतिकता के साथ-साथ व्यक्ति कानून में रहकर अपना परिवार नियोजन करे तथा राष्ट्र व समाज के विकास में अपना श्रेष्ठ योगदान दे। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि यह योगदान तभी संभव हो सकता है जब राष्ट्र व समाज में जनसंख्या को नियंत्रित करने के विषय को सकारात्मकता के साथ अपनाकर इस पर गहनता व शोध के साथ कार्य किया जाए। 

यह भारत है, यहां लोग तब तक नहीं मानते जब तक उन्हें सुविधाओं से वंचित न किया जाए। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून को सख्ती से अपनाकर तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर सीमित समय में अंकुश लगाया जा सकता है। संभवत: अगर समाज को जनसंख्या वृद्धि के घातक परिणामों के बारे में जागरूक किया जाए तो वे स्वयं ही जनसंख्या नियंत्रण के कार्य में अपना विशेष योगदान अवश्य देंगे।

2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने उठाई थी जनसंख्या नियंत्रण की बात

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार द्वारा 11 जुलाई 2021 को विश्व जनसंख्या दिवस के दिन नई जनसंख्या नीति की घोषणा की गई थी। इस घोषणा में 2 से अधिक बच्चे होने पर, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले सकता। सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता और न ही स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव लड़ सकता, यदि दो बच्चों से अधिक है तो। प्रदेश सरकार एक बच्चा होने पर कई फायदे देने जा रही थी जिसमें

एक बच्चे वाले कर्मचारी को चार अतिरिक्त इन्क्रीमेंट देने की बात, इसके इलावा प्रदेश सरकार प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट और पीएफ में एम्प्लॉयर कंट्रीब्यूशन बढ़ाने जैसी आकर्षक सुविधा देने की बात कही थी। लेकिन ये सभी घोषणाएं केवल चुनाव से पहले की बातें थीं। चुनाव खत्म हो जाने के बाद अभी इन बातों पर अमल नहीं हो सका है।

देश के सीमित संसाधनों, रोजगार के अवसरों और गरीबी को देखते हुए इस मामले में सर्वमान्य हल जरूर ढूंढना चाहिए। यदि इस संबंध में कोई कानून बनाया भी जाता है तो वह किसी धर्म या वर्ग विशेष को लक्ष्य करके नहीं बनाया जाना चाहिए, बल्कि देश हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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