देश में डीजल पेट्रोल की आग में जलता आम आदमी, कराहता देश मस्त सरकार और वेचैन विपक्ष!
भारत एक विविधता का देश है. जहाँ पर गंगा जमुनी तहजीब के तहत हिन्दू,मुस्लिम, सिख, इसाई और सभी धर्मों को मानने वाले लोग इस देश के ह्रदय में बसते है. जहां वोट की खातिर तो हम सब कुछ कह लेते है लेकिन शाम को इकबाल चाचा से दुआ सलाम और राम राम भी करते है. इक़बाल चचा भी उसी मस्त लहजे में उत्तर देते है. लेकिन जिन चीजों की जरूरत रोज मर्रा की है उन जरूरतों पर जब डाका पड़ता है तो आम आदमी कराहने लगता है. जिसकी चीख उस सरकार को भस्म कर देती है.
जब कहा है " मुई खाल की स्वांस सो लौह भस्म हुई जाय" . ठीक उसी प्रकार से यह कराह भी असर कारी है. हाँ यह असर जरुर हो कि कराहने की आवाज आ रही है या नहीं? बात करें देश में बढती डीजल पेट्रोल की कीमतों की तो हर आदमी चीख रहा है अभी कराहना आरम्भ नहीं किया है. क्योंकि डीजल की जरूरत कराहने वाले को अब बरसात के बाद पड़ेगी तब कराह निकलेगी. जब गेंहू की फसल में पानी लगेगा, गन्ना की सिंचाई होगी, सूखने पर फसलों की सिंचाई होगी. पीने के लिए फ्शुओं और आदमी को पानी की जरूरत पड़ेगी.
डीजल की बढती बेतहाशा कीमत इस सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत पैदा करती है. लेकिन कीमतें रुकने का नाम नहीं ले रही है. अब कुछ सरकारें जाग रही है जैसे वो सौ रही थीं. अब भागते भूत की लंगोटी छीनने का प्रयास है कि कुछ राहत देदो. यह खेल इस सरकार द्वारा क्यों खेला गया जबकि इसके मुखिया पूर्व में यह कहते थे कि केंद्र में बैठी निक्कमी सरकार कुछ करना नहीं चाहती है तब डीजल की कीमत साठ रूपये से कम होती थी लेकिन अब केंद्र में बैठी यह जागरूक और छप्पन इंची सीने वाली सरकार क्या कर रही है. जो डीजल तिहत्तर और पेट्रोल दिल्ली में इक्य्यासी रूपये प्रति लीटर है. क्या कर रही है सरकार?
और हाँ एक नई नवेली सरकार के मुखिया और आम आदमी पार्टी के नेता तो दिल्ली में डीजल और पेट्रोल चालीस रूपये बिकवाने की बात करते थे इन पर भी कई फ़ॉर्मूले थे लेकिन जब से इनके सबूतों का बेग कहीं गिर गया है तो सारे फ़ॉर्मूले और सबूत उसी में चले गए तब से निराश होकर दिल्ली में पीएम मोदी का विरोध और पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने में लगे हुए है लेकिन दिल्ली का विकास जैसे अबरुद्ध हो गया है. हाँ शिक्षा और स्वास्थ्य पर जरुर कुछ कार्य हुआ है.
विपक्ष अब तक दिशाहीन दीन हींन भाव में बैठा अपनी जाँच की फ़ाइल दबाये बैठा चुपचाप यह खेल देखता रहा, कहता रहा कि इस बार उसके खिलाफ है सरकार मुझे कोई दिक्कत नहीं है. और सरकार अपने हिसाब से देश चलाती है चलाने दो. विपक्ष तो था नहीं कांग्रेस के नेता को पप्पू का ख़िताब दे दिया जिसे मीडिया ने पूरी तरह साबित करके मुहर लगा दी कि असली पप्पू राहुल ही है विकास पुरुष तो इस देश में सिर्फ और सिर्फ मोदी है जबकि वोट पुरुष अमित शाह है. अब राहुल ने पूंछा भी पहली बार लोकसभा में ठीक प्रश्न तो उसने मोदी को सम्मान दिया.उन्होंने अपने पुराने लहजे में फिर से लोकसभा का समय कांग्रेस और राहुल को गालियाँ देने में व्यतीत किया न कि देश हित की बात की.
लोकसभा में देश हित की बात होनी चाहिए अन्यथा इनको मिलने वाले भत्ते काट देने चहिये. लेकिन लोकसभा चले चाहे मत चले लेकिन भत्तों की ओर निगाह उठाई तो सब मिलकर आपकी आँख फोड़ देंगे. जानते हो क्यों?