अखंड इसराइल जैसा बने भारत? हकीकत या सपना

इसराइल के लोगों का कहना है कि जब हमारे पास धार्मिक संविधान है तो दूसरे संविधान की आवश्यकता ही नहीं है।

Update: 2020-01-15 07:06 GMT

(माजिद अली खां, राजनीतिक संपादक )

नई दिल्ली। मोदी सरकार बनने के बाद संघ का प्रभाव बढ़ने से यह बात अकसर इसराइल की चर्चा भी सामने आती रहती है। लोगों में चर्चा है कि भारत सरकार इसराइल के मार्गदर्शन में अपनी नीतियां अंजाम दे रही है और सरकार व संघ समर्थक लोगों का ये भी कहना है कि भारत को इसराइल जैसा ही बनना चाहिए जो अपने विरोधियों के बीच मजबूती से टिका है और किसी के सामने दबता नहीं है। फिर सवाल पैदा होता है कि क्या भारत के हालात और व्यवस्था और सामाजिक ताना बाना ऐसा है कि इसराइल बन सके। इस पर गौर करने से पूर्व हमें इसराइल की स्थिति और इसराइल वालों की मानसिकता भी देखनी चाहिए।

इसराइल दुनिया का एक छोटा और यहूदी धर्म के मानने वालों का अकेला देश है। 1948 में वजूद में आए इस देश में बसने वाले सब दूसरे देशों द्वीपों से आए यहूदी हैं। इसराइल में आने वाले यहूदियों ने आखिर अपने दुशमनों के बीच जान का खतरा क्यों लिया ये जानना भी जरूरी है। इसराइल दुनिया का सबसे धार्मिक देश है और वहाँ कोई संविधान नहीं है बल्कि उनकी धार्मिक किताब तौरात ही उनका संविधान है।

इसराइल के लोगों का कहना है कि जब हमारे पास धार्मिक संविधान है तो दूसरे संविधान की आवश्यकता ही नहीं है। इसराइल में आकर बसे लोग एक मान्यता के साथ वहाँ रह रहे हैं कि यह क्षेत्र ईश्वर की तरफ से उन्हें तब दिया गया था जब ईशदूत मूसा के साथ वो मिश्र से निकले थे, इसलिए यह सारा इलाका यहूदियों की जागीर है। इसी मान्यता के आधार पर एक ग्रेटर इसराइल बनाना उनका मकसद है। इसराइल की यहूदी जनता को पता है कि वो हर तरफ से विरोधियों से घिरे हैं और ये विरोध भी इसराइल के इस नारे के आधार पर है कि इसराइल की सरहदें दजला नदी से फरात नदी तक हैं। इन नदियों के बीच के सभी अरब देश इसराइल की इस बात को अपने खिलाफ युद्ध समझते हैं।

इसराइल में बसने वाले लोगों ने जो रिस्क वहाँ आकर उठाया है उसका आधार है कि दुनिया के यहूदियों को एक अंतिम युद्ध लड़ना है जिसमें उन्हें विजय मिलनी ही है। इस मकसद को हासिल करने के लिए इसराइल के अलावा दुनिया में दूसरी जगह बसने वाले यहूदी तैयारी करते रहते हैं। दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका की अर्थव्यवस्था को अपने चंगुल में फंसा कर यहूदी इसराइल की रक्षा करते हैं और अमेरिका को इसराइल की खातिर ही युद्ध करने पड़ते हैं। इस प्रकार अगर देखा जाए तो इसराइल वाले जो कुछ भी कर रहे हैं, तकनीक, धन, आदि जो भी अर्जित करते हैं वो सिर्फ अंतिम युद्ध के लिए कर रहे हैं। इसराइल के अंदर बहुत सारे धर्म नहीं हैं इसलिए वहाँ का हर नागरिक सैनिक है। अब आने वाला समय ही बताएगा कि इसराइल इसमें कितना कामयाब हो पाता है।

अब भारत की बात करें तो भारत दुनिया का बहुत बड़ी जनसंख्या वाला प्राचीन देश है। भारत के लोग इसलिए नहीं जी रहे हैं कि उन्हें किसी से युद्ध करना है। भारत का सामाजिक ताना बाना विभिन्न धर्मों और जातियों का गठजोड़ है। भारत दुनिया में अपनी इसी पहचान के साथ विशेष स्थान रखता है। भारत के साथ पाकिस्तान का द्वंद्व भी सरकारी स्तर पर और सेना के स्तर पर है। कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध हो चुका है लेकिन इसके बाद भी दोनों ओर की जनता के बीच नफरत नही है। व्यापार, आना जाना सब चल रहा है। भारत को इसराइल जैसा बनने की वकालत करने वाले बता सकते हैं कि क्या वो हर समय किसी से युद्ध लड़ने के लिए पूरा जीवन गुज़ार सकते हैं।

क्या भारत के पास अमेरिका जैसा माइबाप है जो अपने हथियारों और तकनीक के घमंड में सिर्फ इसलिए भिड़ जाता है कि इसराइल की सुरक्षा करनी है। इसराइल की मान्यता के अनुसार उसे आसपड़ौस पर विजय मिलेगी लेकिन भारतीय महाद्वीप के देश से निपटना भारी पड़ेगा। खासतौर से अफगानिस्तान से। इसलिए इसराइल ने समय समय पर अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध शुरू कराए। 2001 में अमेरिका और दूसरे देशों का अफगानिस्तान में हमला भी इसी मकसद से था। लेकिन अफगानिस्तान में अमेरिका बहुत भारी कीमत अदा कर चुका है।

इसराइल भारत को भी अपने मकसद में इस्तेमाल करना चाहता है। इसराइल चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत को जयादा से जयादा उलझाए। भारत को इसराइल बनाने वाले बता सकते हैं कि वो दूसरों की खातिर कितनी लंबी लड़ाई पड़ौसियों से लड़ सकते हैं। क्या भारत की बहुत बड़ी आबादी किसी देश से किसी दूसरे के फायदे के लिए युद्ध लड़ेगी, बिलकुल नही। तो भारत को इसराइल के तबाही भरे रास्ते पर भेजने की वकालत करने वाले इन सब सवालों पर भी गौर करें और भारत को भारत ही बना रहने दें।



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