लोकतंत्र की जय-जयकार, भाजपाई कब्ज़े वाली संसद से 92 विपक्षी सांसद सस्पेंड

Cheers to democracy, 92 opposition MPs suspended from BJP-occupied Parliament

Update: 2023-12-18 18:09 GMT

यूँ ही इलज़ाम नहीं लगता है कि मौजूदा सत्ताधारी मोदी सरकार सत्ता के लिए निरंकुश हो चुकी है। वो अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को किसी भी कीमत पर खामोश कर देना चाहती है। बात चाहे संसद की हो या संसद के बाहर सब जगह देश के राजा जी भाजपा पार्टी का केवल एक जैसा ही निरंकुश रवैया है।

राहुल गांधी ने अडानी के खिलाफ आवाज बुलंद की तो संसद से निष्काषित कर दिया गया था। महुआ मोइत्रा से पासवर्ड शेयर करने के नाम पर सांसदी छीन ली जाती है मगर संसद में घुसपैठ में करवाने (पास जारीकर्ता) वाले भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा को सारे गुनाह माफ़ है।

भाजपाई सांसद रमेश बिधूड़ी ने लोकसभा के अंदर मुस्लिम सांसद दानिश अली को कटुआ और आतंकवादी तक बोला मगर मजाल है स्पीकर महोदय ओम बिरला को ये बात आपत्तिजनक लगी हो और बिधूड़ी को सस्पेंड किया हो। सस्पेंड करने वाला फार्मूला तो केवल विपक्ष के लिए आरक्षित है।

वो राजनीतिक कहावत आज बिलकुल सटीक बैठती है “जब सड़कें सूनी हो जाये तो संसद आवारा हो जाती है”. विपक्ष के निकम्मेपन ने संसद और सत्ता पक्ष को आवारा बना दिया है। लोकसभा और राज्यसभा के 92 विपक्षी सांसदों को सस्पेंड करने के बावजूद विपक्षी नेताओं द्वारा सामूहिक इस्तीफा नहीं देना विपक्ष के निठल्लेपन को दिखाने के लिए काफी है।

लोकतंत्र की हत्या और अघोषित आपातकाल लागू होने के बावजूद भी विपक्ष द्वारा देश भर में जन आंदोलन न करना और आमरण अनशन पर न बैठना भाजपा सरकार के निरंकुश होने में खुली छूट देने समान है।

यूँ तो भाजपाई नेता इंदिरा गांधी के आपातकाल पर रोना धोना मचाते हैं मगर वही लोग मौजूदा समय में सत्ताधीश भाजपा के आपातकाल को थेथर की तरह सही ठहरा रहे है। संसद की मर्यादा का चीरहरण करने वाले भाजपाई आज संसद की मर्यादा पर प्रवचन देते हुए मिल जायेंगे।

मुझे लगता है यही सही वक्त है जब देश में सिर्फ एक पार्टी, एक व्यक्ति का राज होना चाहिए। हम भारत के लोग भी इसके लिए तैयार हैं। ये चुनाव की नौटंकी को बंद कर देना चाहिए। चाइना की तरह ढोंग करते हुए हर 5 साल बाद चुनाव करवाना चाहिए मगर सत्ताधीश तो केवल एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के रूप में बनना चाहिए।

एक अपील तो सत्ता पर काबिज़ मोदी सरकार से भी है कि बहुत हुआ अब खुलकर खेलना होगा जो भी सरकार के खिलाफ बोलेगा संसद या उसके बाहर, उन सबको जेल भेजा जाए और कम से कम उम्र कैद हो। अगर तब भी न मानें तो सजा फांसी तक जानी चाहिए।


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