सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिहार में दागी नेताओं की नींद उड़ी, चुनावी टिकट पाने के लिए चली नई चाल

अगर राजनीतिक दल न्यायालय की व्यवस्था का पालन करने में असफल रहते हैं तो चुनाव आयोग इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाए।

Update: 2020-02-15 06:09 GMT

पटना। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों में में बढ़ती दागियों की संख्या पर चिंता जताते हुए राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया है कि उसे अपने उम्मीदवारों के आधिकारिक मामलों का रिकॉर्ड अपने वेबसाइट पर दिखाना होगा। साथ ही यब भी आदेश जारी किया कि क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को वो टिकट क्यों दे रहे हैं, इसकी वजह बतानी होगी और जानकारी वेबसाइट पर देनी होगी। अब इसका असर सबसे पहले बिहार में दिखने की उम्मीद है. कारण है इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. उल्लेखनीय है कि बिहार में दागी नेताओं की पैठ हमेशा से राजनीती में अच्छी रही है.

किस दल में कितने दागी

BJP में कुल 53 विधायक हैं जिनमें से 34 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं जेडीयू की बात की जाए तो 71 विधायकों में से 37, आरजेडी में 80 में से 46 और कांग्रेस के 27 में से 16 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

बिहार की चारों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों पर नजर डाली जाए तो हर दल में आपराधिक मामले के लिप्ट विधायकों की संख्या आधे से भी अधिक है. अब सभी दल कोर्ट का फैसला आने के बाद से इससे बचने का रास्ता ढूंढ रहे हैं. बीजेपी नेता और बिहार सरकार में मंत्री राम नारायण मंडल कहते हैं कि बीजेपी इस आदेश का पालन करेगी लेकिन साथ ही वे ये भी कहते हैं कि इसमें आपराधिक मामले की गंभीरता को देखना होगा. यही बात राजद के शक्ति सिंह यादव भी दोहराते हैं, उनका कहना है कि यदि उम्मीदवार पर गंभीर आरोप न हो तो फिर क्या हर्ज है.

अलग अलग दलों के नेताओं की ये बेचैनी देखकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी कोई न कोई रास्ता निकाल हीं लेंगे. वैसे भी राजनीति में इसका चलन पहले से है कि अगर किसी नेता पर गंभीर आरोप लगे हैं तो उस नेता की पत्नी को पार्टीयां उम्मीदवार बना देती हैं. बिहार में शहाबुद्दीन, अनंत सिंह, सुरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला जैसे दर्जनों ऐसे उदाहरण भी है जिन पर आरोप लगने या जेल जाने के बाद उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाया गया. इनमें से लगभग सभी ने जीत भी दर्ज की।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सियासी दलों को वेबसाइट, न्यूजपेपर और सोशल मीडिया पर यह बताना होगा कि उन्होंने ऐसे उम्मीदवार क्यों चुनें जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सियासी दलों को ऐसे उम्मीदवार को चुनने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी जिसके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। जिन उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं उनके बारे में अगर राजनीतिक दल न्यायालय की व्यवस्था का पालन करने में असफल रहते हैं तो चुनाव आयोग इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाए।


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