पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हिंदी भाषी तीन राज्य हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी को फंसा नुकसान हुआ है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आकलन के मुताबिक बीजेपी की मजबूत पकड़ वाले इन राज्यों में हार की वजह सामने आई है. इस वजह में अगड़ी जातियों का गुस्सा पार्टी कैडर में उदासीनता और कुछ सरकार की नीतियां खास है.
संघ के भरोसेमंद सूत्र ने बताया कि एससी एसटी एक्ट बहाल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाया गया विधेयक और उसके कड़े प्रावधान का यह बड़ा खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा है. जिससे अगड़ी जातियां बीजेपी से पूरी तरह नाराज हो गई. इस नाराजगी के चलते मध्यप्रदेश में पार्टी की जीत की संभावनाओं को बड़ा नुकसान हुआ है. इसका पार्टी को सबसे ज्यादा ग्वालियर चंबल संभाग में नुकसान उठाना पड़ा है. ग्वालियर चंबल और मालवा क्षेत्र में इस साल 8 लोगों की दलित संगठनों के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन के दौरान मौत हो गई थी. यहां की 34 विधानसभा सीटों में से पार्टी को महज 7 सीटों पर जीत मिल सकी. जबकि 2013 में आंकड़ा 21 सीटों का था. यह बिल पास हो जाने से ओबीसी वोटर भी नाराज था. जिसका खामियाजा छत्तीसगढ़ में ओबीसी वोटर ने बीजेपी का सफाया कर के दिया.
फीडबैक में यह भी जानकारी मिली है कि मतदान में नोटा का बटन दबाने की वजह से भी पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है. जिससे साफ जाहिर होता है कि वोट डालने के बाद भी उस शख्स का वोट पार्टी के खाते में नहीं गया. हालांकि नोटा बटन दबाने वाले सभी लोगों को पार्टी से मोहभंग होने वाला करार नहीं दिया जा सकता है. मध्य प्रदेश राज्य में नोटा की वजह से राज्य की कई सीटें प्रभावित हुई हैं.
जबकि दिल्ली में बैठे कई राजनेताओं का मानना है कि चुनाव में एंटी इनकंबेंसी होने के कारण हार हुई है. मगर पार्टी ने राजस्थान और मध्यप्रदेश में अच्छी टक्कर दी. आरएसएस के आकलन में एक बात और सामने आई. तीनों राज्यों मैं बीजेपी के मजबूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे. जबकि छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर भी नहीं थी. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में स्थानीय कुछ मुद्दे थे जिनमें ग्रामीण बिजली संकट, जीएसटी, एससी एसटी एक्ट, जिसे स्थानीय नेताओं ने बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया था. जिसका खामियाजा एक बड़ी हार के रूप में बीजेपी को भुगतना पड़ा है.