प्रथम नवरात्र माता शैलपुत्री की ऐसे करें पूजा, पूर्ण होगी सभी मनोकामनाएं

Update: 2020-10-17 04:09 GMT

शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और नवमी तिथि तक चलता है। इस बार यह त्योहार 17 अक्तूबर से शुरू हो रहा है। हिन्दू धर्म के इस पावन पर्व पर मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का विधान है। इस दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

माता शैलपुत्री का स्वरूप

शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है 'पर्वत की बेटी'। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो मां के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वे नंदी बैल की सवारी करती हैं।

पूजन करते समय निम्न मंत्र का 108 बार जप करें

वन्दे वाञि्छतलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||

माता की तस्वीर को धूप दीप दिखाते हुये ये पाठ करें

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।

सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।

मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

कलश स्थापना शुभ समय

घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है। अगर किसी कारणवश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं, तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं। प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। यह 40 मिनट का होता है। हालांकि, इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।

कलश स्था‍पना की तिथि और शुभ मुहूर्त

कलश स्था‍पना की तिथि: 17 अक्टूबर 2020

कलश स्था‍पना का शुभ मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 12 मिनट तक।

कुल अवधि: 03 घंटे 49 मिनट

कलश स्थापना कैसे करें

नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें।

मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं और कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।

अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्सेे में मौली बांधें।

अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें।

इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं।

अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें।

अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें, जिसमें आपने जौ बोएं हैं।

कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है।

आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं।

पं0 गौरव कुमार दीक्षित

ज्योतिर्विद

08881827888

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