क्या सरकार की नीति से किसान वास्तव में घायल है?

कब तक सड़क पर सोयेगा किसान, क्या सुलह का कोई रास्ता हुआ तैयार ?

Update: 2020-12-27 04:12 GMT

भारत सरकार और देश के किसानों की बीच सहमति का मार्ग नहीं दिख रहा है। खेती से जुड़े 3 कानूनों को रद्द करने की मांग किसान आंदोलन का मुख्य हिस्सा है। सरकार संशोधन चाहती है। लेकिन कानूनों को रद्द करने के विकल्प पर सहमत नहीं। एक तरह से सरकार और किसानों की बीच यह भीषण गतिरोध है। 30 दिनों से भयंकर सर्दी में किसान आंदोलन पर हैं।

खुले आसमान के नीचे प्रदर्शन कर रहे हैं । यह स्थिति चिंताजनक है और देश के लिए ठीक नहीं है। यह गतिरोध टूटना चाहिए। संवाद के जरिए समाधान का प्रयास हो । सुप्रीम कोर्ट को भी चाहिए जब मामला विचाराधीन है तो वो पहल करके इस अभूतपूर्व गतिरोध को दूर करवाए। इस कानून को कोई अपनी प्रतिष्ठा से ना जोड़े। संवाद, सहमति, सुप्रीम कोर्ट और समाधान यही विकल्प हैं।


हालाँकि कृषि कानूनों के खिलाफ टिकरी बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। किसान संगठनों ने सरकार को वार्ता के​ लिए 29 दिसंबर का प्रस्ताव दिया है।  अब देखना यह होगा कि सरकार किसान संगठनों से बात करती है या नहीं?

जबकि किसान नेताओं के मुताबिक भाजपा वालों के मौखिक वादों पर जो भरोसा कर ले उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं हो सकता। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर एमएसपी का निर्धारण और एमएसपी को लीगलाइज किया जाना यही समस्या का हल है।


‌ प्रधानमंत्री जी की बात की साख जनता में खत्म हो चुकी है इन्हीं प्रधानमंत्री जी ने कहा था नोटबंदी के समय के अगर 50 दिनों में आपके सपनों का भारत ना बन जाए तो मुझे बीच चौराहे पर जो चाहे सजा देना। जीएसटी लागू करते समय इन्हीं प्रधानमंत्री जी ने कहा था अब विश्व आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा भारत।

चुनाव से पहले इन्हीं प्रधानमंत्री जी के हाथ में काला धन वालों की एक लिस्ट हुआ करती थी जो अब गायब है और काला धन की बातें खत्म हो गई। तो प्रधानमंत्री जी जो कहते हैं या भाजपा सरकार जो कहती है उसका ठीक उल्टा होता है ।यह बात जनता के और किसानों के मन में बैठ गई है। प्रधानमंत्री का साफ है कि एजेंडा है कि देश में 10 -20 बड़े आदमी रहेंगे बाकी सब गुलाम बनकर रहेंगे।

इस आंदोलन में अब तक तीन दर्जन किसान अपनी जान गंवा बैठे है। इस किसानों के परिवार अब किसके सहारे जिंदगी काटेंगे। जबकि आंदोलन की धार अभी भी कम दिखाई नहीं पड रही है। जहां भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को जान से मारने की धमकी भी मिली है। इस बात की रिपोर्ट उनके सहप्रवक्ता ने गाजियाबाद जनपद के कौशाम्बी थाने में दर्ज कराई है।


जबकि किसान संगठन अब इस बात पर भी तैयार होते नजर आ रहे है कि सरकार एक बार हमारी मांग पर बात तो करे तभी कोई रास्ता निकलेगा।इस पर किसान नेताओं ने सुझाव सरकार को दिया है और २९ दिसंबर को बातचीत के लिए कहा है।

किसान संगठन सिर्फ एमएसपी की गांरंटी चाहते है तो आधा आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा। क्योंकि लोंगों का मानना है इससे किसान को मजबूती मिल जायेगी। उसके साथ हो रही गडबडी का अंत हो जायेगा। क्योंकि एमएसपी पर सिर्फ सरकार खरीद करती है जबकि व्यापारी अपनी कीमत पर खरीद करता है यही व्यापारी की मोनोपॉली है।जिससे किसान निजात चाहता है। इसका असर यह है कि देश में सरकार सिर्फ चार प्रतिशत खरीद करती है जबकि बाकी की खरीद खुले बाजार में व्यापारी करता है तो सरकार इसे लागु करने में पीछे क्यों हटती है।


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