लालू के इस नए समीकरण ने बीजेपी के गढ़ पटना में दिया झटका और 18 साल बाद जीती पश्चिमी चंपारण सीट

जानिए कैसे काम कर रहा तेजस्वी का A टू Z!

Update: 2022-04-07 17:30 GMT

पटना : बिहार की सत्ता अगर चाहिए तो सवर्ण वोटरों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। बेशक उनकी संख्या दूसरी पिछड़ी जातियों के मुकाबले कम है, मगर सत्ता की चाबी उनके पास जरूर है। जीताऊ वोट चाहिए तो सत्ता में हिस्सेदारी देनी होगी। वरना हाथ में आते-आते कुर्सी फिसल जाएगी। लालू यादव और तेजस्वी यादव ने सवर्ण जातियों (Bhumihar Yadav Equation) को अपनाया तो उसका रिजल्ट विधान परिषद चुनाव (Bihar MLC Result) में देखने को मिला। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पटना की सीट है। जिसे बीजेपी का गढ़ कहा जाता है, वहां पर एनडीए कैंडिडेट तीसरे नंबर पर रहा।

MY से BY की ओर RJD

राष्ट्रीय जनता दल के बेस वोट बैंक मुस्लिम-यादव यानी MY को माना जाता है। आम धारणा है कि इसके नेता सवर्णों को नहीं अपनाते हैं। कुछेक अपवाद छोड़कर। मुस्लिम और यादव समीकरण की बदौलत डेढ़ दशक तक लालू यादव बिहार की सियासत के शहंशाह बने रहे। मगर अब पहले वाली बात नहीं है। हालांकि अब भी माना जाता है कि MY (मुस्लिम-यादव) पर लालू यादव का जादू चलता है। मगर पकड़ ढीली जरूर हुई है। उसकी भरपाई आरजेडी की ओर से सवर्ण मतदाताओं से करने की कोशिश की जा रही है। अब नया समीकरण भूमिहार-यादव यानी BY देखने को मिल रहा है।

6 में 3 भूमिहार उम्मीदवार जीते

लालू यादव के वारिस तेजस्वी यादव को कमान संभालते ही उनके मैनेजरों ने ज्ञान दे दिया था कि सवर्णों पर दांव लगाना फायदेमंद रहेगा। खुले मंच से तेजस्वी यादव ने माफी भी मांगी थी। हमेशा वो MY नहीं बल्कि A टू Z की बात करते हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव जीतते-जीतते रह गए। सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कुर्सी की रेस में पिछड़ गए। कई सीट को तो मामूली अंतर से गंवा दिए। शायद इसी का नतीजा रहा कि बिहार एमएलसी चुनाव में उन्होंने सवर्णों खासकर भूमिहार जाति के उम्मीदवारों पर दिल खोलकर दांव लगाया। इसका नतीजा रहा कि जीतनेवाले उनके छह उम्मीदवारों में तीन भूमिहार, एक राजपूत, एक यादव और एक वैश्य है।

पटना, बेतिया, मुंगेर में मिली कामयाबी

एनडीए खासकर बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले पटना सीट पर तेजस्वी ने एक भूमिहार उम्मीदवार को मैदान में उतारा और कामयाबी मिली। अनंत सिंह के करीबी कार्तिकेय सिंह ने जीत दर्ज की। हालांकि उनके पास यादव जाति से दानापुर के विधायक रीतलाल यादव के भाई लाइन में थे, मगर परसेप्शन न बिगड़े इसके लिए लालू यादव ने खुद मास्टर कार्तिक के नाम का एलान किया था। ताकि सवर्णों में साफ-साफ मैसेज जाए और दूर की राजनीति न बिगड़े। नतीजा ये रहा कि कुर्मी जाति से आनेवाले जेडीयू के वाल्मीकि सिंह तीसरे नंबर पर चले गए। मुंगेर-जमुई-लखीसराय सीट पर भी आरजेडी के जिस उम्मीदवार (अजय सिंह) ने जीत हासिल की वो भूमिहार जाति से आते हैं। इसके अलावा पश्चिम चंपारण जैसी सीट को 18 साल बाद आरजेडी ने भूमिहार उम्मीदवार की बदौलत बीजेपी से छिन ली।

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