8 माह की गर्भवती नाबालिग रेप पीड़िता ने हाईकोर्ट से मांगी गर्भपात की अनुमति, कोर्ट ने सीएमओ से किया तलब

यूपी के बाराबंकी जिले में नाबालिग रेप पीड़िता 8 महीने के गर्भ से है। नाबालिग की मां ने पीड़िता के 8 माह के गर्भ को गिराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। पीड़िता की मां ने कहा है कि बच्चे को जन्म देने पर उसे सामाजिक और मानिसक स्थिति पर गहरा आघात पहुंचेगा। मामले की सुनवाई 6 जुलाई को की जाएगी।

Update: 2022-07-02 11:19 GMT

बाराबंकी: दुष्कर्म की घटनाएं आए दिन खबरों में बनी रहती हैं जहां सरकार और प्रशासन दुष्कर्म की इन घटनाओं को रोकने प्रयास कर रही है तो वहीं, दूसरी ओर इस तरह की घटनाए सुर्खियों में बनी रहती हैं। हैवानियत इस कदर बढ़ती जा रही है कि रिश्तों की मर्यादाओं को भी तार-तार कर रही है। हाल ही में बाराबंकी के कुर्सी थाना क्षेत्र में अंतर्गत एक ऐसा ही मामला सामने आया है। पीड़िता के साथ उसके ही रिश्तेदार ने दुष्कर्म जैसी घिनौनी घटना को अंजाम दिया है। जिसके बाद पीड़िता और उसकी मां हाईकोर्ट की शरण में न्याय की गुहार लगाने पहुंच गई हैं।

रिश्तेदार ने नाबालिग से किया दुष्कर्म

बाराबंकी के कुर्सी थाना क्षेत्र के तहत नाबालिग पीड़िता से उसके ही रिश्तेदार ने दुष्कर्म जैसी घटना को अंजाम दिया है। पीड़िता ने उस लड़के के खिलाफ 4 जून को थाने में छेड़खानी की शिकायत दर्ज कराई थी। जांच में पता चला कि नाबालिग गर्भवती है तो मामले में रेप की धारा बढ़ा दी गई थी। अब नाबालिग पीड़िता और उसकी मां ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। जिसमें कोर्ट से गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई है। पीड़िता की मां ने कोर्ट में कहा है कि यदि कोर्ट द्वारा गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई तो नाबालिग के सामाजिक और मानसिक स्थिति पर गहरा आघात होगा। नियम के हिसाब से 21 सप्ताह तक में गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है लेकिन नाबालिग 8 महीने के गर्भ से है।

पीड़िता ने हाईकोर्ट से मांगी गर्भपात की अनुमति

मिली जानकारी के अनुसार पीड़िता और उसकी मां के होईकोर्ट में गुहार लगाए जाने के बाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बाराबंकी के सीएमओ को तलब किया है। सीएमो को न्यायालय ने आदेश देते हुए कहा है कि तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों का पैटल बना कर रेप पीड़िता की निष्पक्ष जांच की जाए। साथ ही न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट भी सील्ड कवर में तलब किया है। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की अवकाशकालीन पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश 29 जून को दिया है। न्यायालय ने बोर्ड से राय मांगते हुए कहा है कि यदि पीड़िता बच्चे को जन्म देती है तो उसे किस तरह की मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ेगा। इसलिए पीड़िता की मानसिक स्थिति और भ्रूण में पल रहे बच्चे की भी स्थिति पर स्पष्ट रिपोर्ट मांगी गई है। मामले की अगली सुनवाई 6 जून को होगी।

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