Gorakhpur: सर्वकामना सिद्ध करती हैं मां तरकुलहा देवी, स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है इतिहास

गोरखपुर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह ऐतिहासिक मंदिर।

Update: 2023-10-16 04:00 GMT

Gorakhpur : जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर तरकुलहा माता मंदिर में भक्तों का भारी भीड़ जुटी है।शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।

सभी मुरादें पूरी करती हैं मां 

लोग कहते हैं कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी जाती हैं, वो सभी मुरादें पूरी होती है। शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. यही वजह है कि यहां नवरात्रि पर हर दिन भक्तों की आस्‍था का सैलाब उमड़ पड़ता है. शहीद बंधु सिंह ने पिंडी स्‍थापित कर यहां पर आच्छादित जंगल और तरकुल के पेड़ के बीच मां तरकुलहा देवी की पूजा शुरू की थी।

क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु से ने की थी स्थापना

 इस मंदिर का स्‍वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है.क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे. जंगल में तरकुल के पेड़ों के बीच में पिंडी स्थापित की.अंग्रेजी हुकूमत में शहीद क्रांतिकारी बाबू बन्धु सिंह इस मंदिर पर गुरिल्ला युद्ध कर कई अंग्रेज अफसरों की बलि देते रहे हैं।

स्‍वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है नाता 

तरकुलहा मंदिर पर कई वर्षों से आ रहे श्रद्धालु बताते हैं कि, जब अंग्रेजो ने बाबू बन्धु सिंह को पकड़ा, तो फांसी की सजा सुनाई और सात बार फांसी टूट गई. आठवीं बार जब फांसी लगी, तो बाबू बन्धु सिंह ने मां का आह्वान किया कि हे मां अब मुझे अपने चरणों में जगह दो. उधर फांसी हुई, इधर तरकुल का पेड़ टूटा और रक्त की धार बहने लगी. तबसे इस मंदिर पर लोगों की आस्था जुड़ गई और श्रद्धालुओं की भीड़ माता रानी के दरबार में जुटने लगी. वर्तमान में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है. मां दुर्गा का आशीर्वाद भक्‍तों को हमेशा से मिल रहा है. शहीद बंधु सिंह के योगदान की वजह से मंदिर पर लोगों की आस्‍था बढ़ती चली जा रही है। यहां चैत्र राम नवमी में एक माह का मेला लगता है। विवाह, मुंडन व जनेऊ व अन्य संस्कार भी इस स्थल पर होते रहते हैं।

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