राहुल और प्रियंका ने डबल इंजन सरकार को घेर लिया?

लगता है कांग्रेस ने छोड़ रखा है कि भाजपा ने अपनी पोल खुद खोली और खुल भी रही है।

Update: 2020-05-19 14:31 GMT

संजय कुमार सिंह 

मजदूरों के पैदल चलने पर राजनीति हो रही है और वे बेचारे पिस रहे हैं। बुधवार को मैंने लिखा था, मजदूर राजनीति के शिकार हो गए या निशाने पर हैं? मेरा मानना है कि गरीबी हटाओ का नारा जितना लोकप्रिय था उतना कामयाब नहीं हुआ और गरीबी खत्म नहीं की जा सकी। यह निश्चित रूप से यह अभी तक की सरकारों की असफलता का स्मारक है। पर मामला प्रस्तुति का है। अगर कांग्रेस इस मामले में असफल रही तो ऐसा नहीं है कि भाजपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने सत्ता पर काबिज होकर कुछ करने का कोई भी मौका छोड़ दिया हो। जब जैसे विपक्ष या गैर कांग्रेसी सरकार बन पाई बनी ही। ऐसे में असफल सिर्फ कांग्रेस नहीं रही है असफल वो भी रहे जो सत्ता में आ ही नहीं पाए या आकर कुछ नहीं किया। पर वह अलग मुद्दा है। अब यह दिख रहा है कि सरकार घिर गई है। शायद कुछ रास्ता निकले।

महामारी के इस दौर में गरीबों को जैसे छोड़ दिया गया है। यह गरीबी हटाने से अलग गरीबों को हटा देना है और यह इरादतन न भी हो तो गरीबों के प्रति लापरवाह रहना ही है। अखबार चाहे न बताएं पर यह समझ में आने लगा है कि इस पर राजनीति हो रही है और सत्तारूढ़ दल बुरी तरह घिर गया है। अहमदाबाद में दीवार बनाकर गरीबी को ढंकने के बावजूद शहर को कोरोना से नहीं बचाया जा सका और जनादेश गुजरात मॉडल को देश भर में लागू करने का है। इसलिए गुजरात में जो हो रहा है उसका इंतजार देश के बाकी हिस्से में भी करना चाहिए। फिर भी आज मैं सिर्फ प्रवासी मजदूरों की बात करूंगा। राजस्थान पत्रिका ने इसपर एक खबर भी छापी है। शीर्षक है, मजदूरों पर सियासत, कांग्रेस और भाजपा आमने सामने। इसमें वह सब है जो मैं यहां लिख रहा हूं पर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर यह खबर नहीं है। दिलचस्प यह भी है कि सरकार की तरह सरकार समर्थकों ने भी गरीब मजदूरों से मुंह मोड़ लिया है।

राहुल गांधी ने प्रवासी मजदूरों से बात क्या कर ली सत्तारूढ़ दल परेशान हो गया। यह मामला वित्त मंत्री से संबंधित नहीं है। हिन्दी में सोनिया गांधी से बहुत खराब बोलती हैं फिर भी हिन्दी में राहुल गांधी की निन्दा की। वह भी इस आधार पर कि उन्होंने उनसे बात करके उनके 10 मिनट खराब कर दिए। कहने की जरूरत नहीं है कि सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ हुई लेकिन ट्रोल सेना की परेशानी भी दिखती रही। वित्त मंत्री की परेशानी गौर करने लायक थी। वाहन उपलब्ध नहीं होने और जो ट्रेन चल रही है उससे यात्रा मुश्किल या असंभव होने के कारण बहुत सारे लोग पैदल जाने के लिए मजबूर हैं। डबल इंजन वाली सरकारों के राज में उन्हें घुसने नहीं दिया जा रहा है। सीमा पर भीड़ लग जा रही है सोशल डिसटेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है और 10 घंटे का रास्ता 10 दिन में पूरा हो रहा है उसपर चुप रहने वाली वित्त मंत्री 10 मिनट बर्बाद कर दिए जाने पर परेशान हो गईं।

आज अखबारों में खबर है कि लॉकडाउन नियम तोड़ने पर कांग्रेस के (दिल्ली) प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी गिरफ्तार कर लिए गए। चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने अपने वाहन से प्रवासी मजदूरों को यूपी गेट तक पहुंचाया और वहां भीड़ जुटा ली। खुद पर लगे आरोप को अनिल चौधरी ने गलत बताया। उन्होंने कहा कि अगर लोगों को खाना खिलाना गुनाह है तो यह अपराध उन्होंने किया है। कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी ने बैठकर बात कर ली तो समय खराब किया। मास्क लगाए थे, देह से दूरी बनाए रखी इसलिए उनपर मामला नहीं बना लेकिन मजदूरों की सेवा करने पर गिरफ्तार कर लिया गया। यही भीड़ राज्यों की सीमा पर लग रही है तो कोई बात नहीं। मामला इतना ही नहीं है। दिलचस्प यह रहा कि शाम में प्रियंका गांधी ने पैदल चल रहे लोगों को बसों से उनके गंतव्य तक पहुंचाने की पेशकश की और उत्तर प्रदेश सरकार से इसकी अनुमति मांगी जो खबर मिलने तक नहीं दी गई। यह खबर द टेलीग्राफ में है।

स्थिति यह है कि राहुल गांधी ने कोई राजनीति नहीं की, भाजपा या केंद्र सरकार की कोई निन्दा नहीं की फिर भी वित्त मंत्री को यह बात बुरी लगी। भाजपा समर्थकों का कहना है कि कांग्रेस यह सब वहां करे जहां उसकी सरकार है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जहां कांग्रेस की सरकार है वहां जरूरत नहीं है और जहां जरूरत हैं वहां भाजपा कांग्रेस को मजदूरों की सेवा नहीं करने दे रही है। वित्त मंत्री ने जो सुझाव दिए उसे पूरा करने के लिए सोनिया गांधी ने प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक छोड़ने के लिए बसें उपलब्ध करा दी तो उत्तर प्रदेश की सरकार ने अनुमति नहीं दी। किस राजनीति और किस चाल से किसे फायदा होगा यह तो बाद की बात है पर अभी भाजपा सिर्फ राहुल और प्रियंका के प्रयासों (आप उसे राजनीतिक चाल कह सकते हैं) से परेशान है। और अखबार भले न छापें साफ तौर पर किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कांग्रेस से घिर गए हैं। और यह कांग्रेस की कोई पार्टी स्तरीय रणनीति नहीं है। अभी तो सोनिया गांधी के दो बच्चे सक्रिय भर हुए हैं जो वंशवाद का लाभ लेना चाहते हैं। अगर कांग्रेस या कांग्रेस अध्यक्ष राजनीति करें तो क्या होगा? मुझे लगता है कांग्रेस ने छोड़ रखा है कि भाजपा नेअपनी पोल खुद खोली और खुल भी रही है।

इससे पहले जब खबर आई कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन से मजदूरों को पहुंचाने के पैसे लिए जा रहे हैं और पैसे नहीं होने के कारण कुछ को लौटा दिया गया (तथा सीटें खाली रहीं) तो कांग्रेस ने ऐसे प्रवासी मजदूरों का किराया देने की पेशकश की थी। यह अगर प्रस्ताव के अलावा राजनीतिक चाल थी तो बेहद मारक रही और भाजपा पर इसका असर दिखने लगा। फिर भी होना यह चाहिए था कि सरकार और भाजपा ट्रेन चलाती जिनका किराया कांग्रेस से लेना होता लेती और ज्यादा से ज्यादा मजदूरों को कम से कम समय में उनके गंतव्य पर पहुंचाया जाता। पर भाजपा ने न तो राजनीतिक जवाब दिया और न जनहित का काम किया उल्टे ट्रेन का चलना गोपनीय हो गया। कांग्रेस पर जो आरोप लगे सो अलग। मैंने तब लिखा था कि मजदूर राजनीति के शिकार हो गए। भाजपा चाहती तो कांग्रेस के काफी पैसे खर्च करवा सकती

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