11 साल बाद पहली बार: मोदी सरकार के खिलाफ शुद्ध विरोध — कितने दिन टिक पाएगी यह सरकार?
इसके कारण क्या हैं, और मुख्य सवाल: कितने दिनों तक यह सरकार टिक पाएगी?;
जब एक सत्ता शक्ति लंबे समय तक केंद्र में रहती है, तो विरोध की आवाज़ धीरे-धीरे दबती जाती है। लेकिन हाल ही में ऐसा मोड़ आया जहाँ मोदी सरकार के खिलाफ व्यापक और संगठित विरोध देखा गया — कुछ लोग इसे 11 साल बाद “पहली मोर्चेबंदी” कह रहे हैं। इस आर्टिकल में हम देखेंगे कि यह विरोध कैसा है, इसके कारण क्या हैं, और मुख्य सवाल: कितने दिनों तक यह सरकार टिक पाएगी?
1. विरोध का स्वरूप और गहराई
(क) विपक्षी सम्मेलन और रिपोर्ट कार्ड
मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर विपक्षी दलों ने एक साझा मोर्चा बनाया और सरकार की नीतियों पर कठोर आलोचना की। कांग्रेस ने रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जिसमें उन्होंने विकास के वादों की “अधूरापन” और “झूठे वादे” पर जोर दिया।
(ख) आरोपों की श्रृंखला
विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने संविधान की संस्थाओं को कमजोर किया, राज्यों के अधिकारों को उपेक्षित किया, और ख़ूब प्रचार किया पर परिणाम कम हुए।
(ग) विपक्ष की मजबूती और चुनौतियाँ
अभी तक विपक्ष के सामने कई चुनौतियाँ हैं:
दलों के बीच तालमेल की कमी
संसाधनों और मीडिया एक्सेस में असंतुलन
सत्ता पक्ष के पास नियंत्रण और अनुभव
विपक्षी दलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि विरोध सिर्फ नारा न बने, बल्कि एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में सामने आए।
2. सरकार के पक्ष में ताकतें
(क) केंद्रीय नियंत्रण और संसाधन
केंद्र सरकार के पास वित्तीय एवं प्रशासनिक संसाधनों का नियंत्रण है। यह सत्ता पक्ष को बड़ा लाभ देता है।
(ख) मीडिया और सूचना नियंत्रण
सरकारी नीतियों, अभियानों और भाषणों का प्रचारना आसान है जब मीडिया समर्थन आदि मिलें। इसके अलावा, सत्ता पक्ष कार्रवाई करने की गति बढ़ा सकता है जब विरोध कहीं अधिक हो।
(ग) विपक्षी प्रदर्शन का सीमित असर
भारत में बहुत बार विरोध और आंदोलन दिखाई देते हैं, लेकिन उनका असर चुनावी और रणनीतिक स्तर पर सीमित रह जाता है। इसलिए केवल विरोध होना पर्याप्त नहीं — इसे एक वैकल्पिक दृष्टि और नेतृत्व देना ज़रूरी है।
3. कितने दिनों तक टिक सकती है यह सरकार?
यहां “टिकना” का मतलब है: प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखना, विरोध को नियंत्रित करना, और अगले चुनावों तक कर रुकना।
संभावित कालखंड: 1–3 वर्ष
अगर विरोध संगठित रूप ले सके, जनता में तीव्र समर्थन पा सके, और सत्ता पक्ष की नीतियों की कमजोरियाँ उजागर कर सके — तो यह प्रयास 1–3 वर्ष तक सरकार पर दबाव बना सकते हैं।
लेकिन क्यों नहीं लंबे समय तक?
सत्ता पक्षों में संसाधन, नियंत्रण और अनुभव अधिक होते हैं।
विरोधी दलों में मतभेद, नेतृत्व संघर्ष और रणनीति विवाद हो सकते हैं।
सरकार क्राइसिस प्रबंधन कर सकती है (नए नीतियों, वादों, आर्थिक उपायों से)
मीडिया व प्रशासन दबाव बना सकते हैं और विरोध को डीमैजिक कर सकते हैं
यदि विपक्ष अगले चुनाव तक सत्ता बदल देने की स्थिति न बना पाए, तो सरकार बरकरार रह सकती है।
मोदी सरकार के 11 साल बाद जो व्यापक विरोध देखा जा रहा है, वह राजनीति के लिए दिलचस्प क्रूच है — यह संकेत है कि जनता की उम्मीदें असंतुष्ट हैं। लेकिन विरोध की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि विपक्ष कितना सुदृढ़, संगठित और भरोसेमंद विकल्प बन पाता है।
मेरी राय में, इस सरकार को अगले 1–2 वर्षों तक चुनौती देने की पूरी संभावना है, लेकिन उसे पूरी तरह गिराने या बदल देने की संभावना तब तक नहीं दिखती, जब तक विपक्षी शक्ति खुद को मजबूत न बनाए।