तो राहुल गांधी ने 2024 के लिए बना लिया ये प्लान, जिससे मोदी को हैट्रिक बनाने से रोक लेंगे!

राजनीतिक विशेषज्ञ इस गुत्थी को सुलझाने में जुट गये कि एक साथ देश के विभिन्न राजनीतिक दलों की हस्तियों को याद करने की इस अनूठी पहल का प्रयोजन क्या है?

Update: 2022-12-28 09:16 GMT

जब 4 डिग्री सेल्सियस तापमान में कोहरे की चादर लपेटे हुए राजधानी दिल्ली ठिठुर रही थी तो महज टी शर्ट में राहुल गांधी समाधि-समाधि चक्कर काट रहे थे. देश की मीडिया अहले सुबह कैमरे के साथ उनके आगे-पीछे सक्रिय थी और टीवी स्क्रिन पर लगातार खबरें बदलती चली जा रही थीं.

'सदैव अटल' पहुंचकर राहुल ने देश को चौंकाया. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने कभी यहां का रुख नहीं किया था. राहुल ने यह गलत परंपरा बनने नहीं दी, बल्कि नयी परंपरा की शुरुआत की. एक दिन पहले ही भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन था. राहुल के इस कदम ने सबसे ज्यादा बीजेपी को हैरान कर दिया, जो जल्द ही पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओँ की बेचैनी और बयानों में प्रकट होने लगी.

राहुल शांतिवन गये तो विजय घाट और शक्तिस्थल भी. लेकिन, जब किसान घाट और एकता स्थल पहुंचे तो सियासी गली में मानो भू-चाल आ गया. राजनीतिक विशेषज्ञ इस गुत्थी को सुलझाने में जुट गये कि एक साथ देश के विभिन्न राजनीतिक दलों की हस्तियों को याद करने की इस अनूठी पहल का प्रयोजन क्या है?

अटल बिहारी वाजपेयी के बहाने बीजेपी के अंतर्विरोधों को हवा देना और उनके बीच जगह बनाने की रणनीति तो समझ में आ रही थी, लेकिन चरण सिंह और जगजीवन राम के बहाने कौन सी सियासी गोटी बिछाने जा रहे थे राहुल गांधी!

दिन भर सियासत गर्म रही. बीजेपी ने कांग्रेस के एक नेता का ट्वीट ढूंढ़ लिया था जिसमें उसे अटल बिहारी वाजपेयी के अपमान करने वाले तत्व मिल चुके थे. वह उसी मुद्दे को बारंबार उछाल-उछाल कर कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमले करने लगी. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर तकरार मोल लेने के बजाए गौरव पांधी नामक उस नेता से अपना ट्वीट डिलीट करा लिया था.

शाम होते-होते तस्वीर साफ हो गयी. 'भारत जोड़ो' यात्रा के यूपी में तीन दिन रहने और इस दौरान निमंत्रित राजनीतिक हस्तियों के नाम सामने आ चुके थे. मायावती, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी, ओम प्रकाश राजभर और सीपीआई नेता अतुल कुमार अनजान इनमें शुमार थे. चौंकाने वाले नामों में यूपी के पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश सिंह भी हैं जिन्हें बतौर प्रोफेसर यात्रा में न्योता मिला है. दलित चिंतक और प्रोफेसर रविकांत भी निमंत्रित हस्तियों में शामिल हैं.

सुबह 7 बजे की सर्दी में पॉलिटिक्स का जो लैटेंट हीट राहुल गांधी को एक टी शर्ट में ही जोश भर रहा था वह शाम 7 बजे स्पष्ट हो चुका था. गांधी-नेहरू परिवार से बाहर ब्राह्मण चेहरों में अटल बिहारी वाजपेयी से बड़ा कोई दूजा नाम नहीं. अखिल भारतीय स्तर पर जगजीवन राम से कद्दावर दलित चेहरा भी बाबा साहेब अंबेडकर के अलावा कोई नहीं. वहीं किसान नेता के तौर पर चरण सिंह देश में सर्वमान्य नेता रहे हैं. इन नामों के गिर्द यूपी में सियासी गोलबंदी साफ तौर पर दिख रही है.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा दिल्ली पहुंचते-पहुंचते एक संभावित राजनीतिक गठजोड़ का कुनबा तैयार कर चुकी है जिसमें शामिल होने को देश के विभिन्न क्षेत्रीय दल तत्पर हैं. वामपंथी, डीएमके, टीआरएस, शिवसेना (उद्धव), एनसीपी, एसपी, बीएसपी, आरएलडी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इस कतार में हैं. महबूबा मुफ्ती और फारूख अब्दुल्ला दोनों को कांग्रेस ही रिझा पा रही है. जबकि बिहार में महागठबंधन से जुड़े दल भी कांग्रेस के साथ खड़े दिख रहे हैं.

मगर, इससे आगे बढ़कर कांग्रेस मुद्दों के साथ-साथ समीकरण को गूंथने में लगी है. ब्राह्मण और अनुसूचित जाति के साथ-साथ अल्पसंख्यक वर्ग का समीकरण कांग्रेस का परंपरागत आधार रहा था. मंडल-कमंडल की सियासत ने कांग्रेस का यह आधार कमजोर कर डाला. अब कांग्रेस उसी जनाधार को पुन: पाने की कवायद करती दिख रही है.

ओबीसी वर्ग और उसमें भी हाशिए की जातियों के समूह को साधने की कोशिश में जुटी है कांग्रेस. अटल बिहारी वाजपेयी के समाधिस्थल तक जाकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करना और शाम तक यूपी के पूर्व डिप्टी सीएम को भारत जोड़ो यात्रा में निमंत्रित करना इसी तैयारी का हिस्सा है. यही तैयारी जगजीवन राम और चरण सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए अनुसूचित जाति के दलों, नेताओं और शुभचिंतकों को निमंत्रित करने में नज़र आ रही है. भारत जोड़ो यात्रा में मायावती को निमंत्रित करना और चंद्रशेखर आजाद को भूल जाना भी बताता है कि बीएसपी प्रमुख से एक सहमति बन चुकी है.

किसान आंदोलन की ताकत के सामने मोदी सरकार पहले ही नतमस्तक हो चुकी है. एक बार फिर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की लड़ाई लड़ने को इकट्ठा हो रहे हैं. कांग्रेस इस आंदोलन की आवाज बनने की तैयारी कर चुकी है. चौधरी चरण सिंह के समाधिस्थल से यह संदेश किसानो को प्रेषित हुआ है. अगर आरएलडी ने सकारात्मक रुख दिखाया तो यह संदेश और अधिक मजबूत और देशव्यापी हो जाएगा. राष्ट्रीय स्तर पर इस पहल का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता. 2023 में होने वाले 10 राज्यो के विधानसभा चुनावों और 2024 में होने वाले आम चुनाव दोनों ही लिहाज से भारत जोड़ो यात्रा महत्वपूर्ण लामबंदी करती दिख रही है.

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