फेसबुक पर बहुत से लोग पॉक्सो (POCSO) को पॉस्को (POSCO) लिख रहे है, जानिये क्या है सच
फेसबुक पर बहुत से लोगों को देख रहा पॉक्सो (POCSO) को पॉस्को (POSCO) लिख रहे। दरअसल यह The Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012 है।
अब यह मत कहियेगा कि Auto Correct हो गया। यह Auto Correct नहीं, यह Auto Wrong का मामला है। चुपचाप गलती मानिए और उसे सुधारिये। भावार्थ के साथ शब्दार्थ भी बहुत हद तक कानूनी पेचीदगियों में महत्व रखते हैं।
बाकी रही बात POCSO Act की, तो कानून अपने हिसाब से चलता है। वह भावनाओं में नहीं बहता। तभी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हालिया कहा भी था कि उसके ऊपर भी कोई न्यायालय होता, तो सुप्रीम कोर्ट के आधे फैसले पलट जाते!
जो फैसले अधीनस्थ न्यायालय करता है, उसे कई बार हाई कोर्ट पलट देती है और कई बार हाई कोर्ट के फैसले सुप्रीम कोर्ट। कानून की बातों को हम सभी सोचते हैं कि अमुक फैसला होना चाहिए, पर कई बार ठीक उसका उल्टा हो जाता है।
कानून की सभी बातों पर एक राय होती तो विरोधी पक्षों के वकील आपस में बहस ही क्यों करते! या फिर एक ही बेंच में सम्मिलित माननीयों के फैसले कई बार एक-दूसरे से बिल्कुल अलग क्यों होते!
इसी क्रम में कई बार निर्दोषों को फँसाया भी जाता है। हमारे देश में कई मामले इसी प्रकार के होते हैं। जिससे दुश्मनी हो जाये, उस पर इतने False Charges लगा दो कि वह जीवन भर कोर्ट-कचहरी करते-करते मर जाये या जेल चला जाये। यही कारण है कि शरीफ लोग डर जाते हैं पुलिस-कोर्ट-कचहरी का नाम सुन कर।
इसीलिए मेरा स्टैंड बिल्कुल साफ रहता है इस दिशा में। किसी ने भी यदि मुझे गलत/झूठा फँसाया किसी भी मामले में और मुझे त्वरित न्याय नहीं मिला, तो प्रियांक न्याय कर देगा मरने से पहले, फिर चाहे सामने कोई माई का लाल हो। हम पहले किसी को छेड़ते नहीं और गर जो मुझे किसी ने छेड़ा, तो उसे फिर छोड़ते भी नहीं!
मेरे एक करीबी मित्र विद्वान न्यायाधीश (Chief Judicial Magistrate) ने मुझे एक बार बताया था कि किस तरह एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को झूठे मुक़दमे में फँसाया था और वह इसे समझ भी रहे थे, पर वह कानून के हाथों मजबूर थे कि पूरी विधिक प्रक्रिया के पालन के बिना आनन फानन में किसी को न सजा दे सकते थे, न ही छोड़ सकते थे।
..जय हिंद..जय भारत।🙏