झारखंड के आदिवासियों के भगवान के रूप में प्रचलित बिरसा मुंडा का आज पुण्यतिथि है,आइए जानते हैं कैसे अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे बिरसा मुंडा
वैसे तो बिरसा मुंडा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, स्वतंत्रता आंदोलन में उनके द्वारा किए गए अदम्य साहस के कामों से उनको एक अलग पहचानन मिली। आदिवासी हितों की लिए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया।
बिरसा मुंडा का और शिक्षा-दीक्षा
भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिला, झारखंड में हुआ था। बचपन से ही होनहार बिरसा ने शिक्षक गुरु जयपाल नाग के मार्गदर्शन में शिक्षा ग्रहण , बाद में जर्मन स्कूल में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई को जारी रखा।
कहा जाता है महापुरुषों और आंदोलनकारियों, हुल और उलगुलानकर्ताओं की पहचान संघर्ष के बाद उनके शहादत से होती है। शहादत के बाद वैश्विक पहचान बनती है। लोग उनके वीर गाथाओं को, उनके संघर्ष को, उनके उलगुलान को, उनके हूल को याद करते हैं। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर गहन चिंतन-मंथन होता है। साथ ही उनके वीर गाथाओं पर चलचित्र, वृत्तचित्र, कथा, कहानी, चित्रलेख, कविताएं, गीतों की रचनाओं, जन कथाएं, जनश्रुतियां के अलावे उनके इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाते हैं।
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मात्र 25 वर्ष के युवा ने संघर्ष करते हुए शहादत दी। 23 वर्ष की उम्र में 28 जनवरी 1898 को अबुआ दिसुम-अबुआ राइज का संकल्प चुटिया स्थित राधावल्लभ मंदिर में लिए। अबुआ दिसुम-अबुआ राइज के इस संकल्प के साथ लगातार बिना रुके बिना थके 2 वर्षों के कालखंड में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।
अपने अदम्य साहस से अंग्रजो के छक्के छुड़ा दिए
उनकी वीरता ही थी कि ब्रिटेन की महारानी बिरसा मुंडा को ब्लैक आयरनमैन के रूप में संबोधित करते हुए उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की थीं। तीर-धनुष के सहारे ब्रिटिश हुकूमत की तोपों और बंदूकों को नेस्तनाबूद करने की अपार क्षमता बिरसा मुंडा में थी। भूख से तपने और संघर्ष में उलगुलान करने की जीवट बिरसा मुंडा के अंदर कूट-कूट कर भरी थी। विलक्षण प्रतिभा के धनी बिरसा मुंडा के आदम्य साहस और विश्वासपूर्ण नेतृत्व क्षमता के आगे मुंडा समाज जहां नतमस्तक था। वहीं, ब्रिटिश हुकूमत किंकर्तव्यविमूढ़।
अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा मुंडा की सीधी लड़ाई की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आज भी जीवंत है। प्रलोभन का एक साजिश और षड्यंत्र के माध्यम से बिरसा मुंडा को 3 फरवरी 1900 ई. में गिरफ्तार किया गया। जेल के अंदर ब्रिटिश हुकूमत के वे साजिश का शिकार हो गए। 9 जून 1900 ई. को बिरसा मुंडा अनंत चिर निंद्रा में सो गए। वहीं से उलगुलान के नायक, धरती आबा भगवान और एक युग पुरुष के रूप में बिरसा मुंडा का जन्म होता है। नवयुग बिरसा मुंडा से परिचित होता है। स्वशासन अर्थात अबुआ दिसुम-अबुआ राइज के महत्व को समझता है। बंजर भूमि को चीर कर खुटकट्टी व्यवस्था के संदर्भ को जान पाता है। सुख के लिए दुख भोगने का आनंद उठाता है।
सामाजिक कार्यों के कारण बिरसा को भगवान का दर्जा मिला
प्रकृति की गोद अर्थात जल, जंगल और जमीन जीवन के मूल आधार पर स्थापित होता है। उन्होंने अपने उलगुलान के साथ-साथ समाज में फैले, अंधविश्वास, नशा बंदी वगैरह के प्रति बेदारी लाई। बिरसा के संघर्ष को अलग-अलग रूपों में देखते हैं। सामाजिक क्षेत्रों में किए गए उनके कार्यों को भगवान का दर्जा दिया जाता है और गांधी से पहले गांधी का भी दर्जा मिलता है। उनके उलगुलान को आज शोषण, जुलूम, दमन अत्याचार, अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरणा माना जाता है।