वीओ चिदंबरम पिल्लई, वो स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें अंग्रेज हल में जोतते थे : जयंती विशेष

अंग्रेजों ने चिदम्बरम को लाखों रुपये का लालच दिया | अंग्रेजीं ने दर घटाई, मुफ्त सर्विस आरंभ की पर उनको तिलमात्र भी सफलता न मिली। अंत में उन्होंने चिदम्बरम पर देशद्रोह का आरोप लगाकर कैद कर लिया। न्याय का स्वांग भी रचा गया। पर हिन्दुस्तानी के साथ न्याय कैसा ?;

Update: 2021-09-05 06:52 GMT

 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै का जन्म सितम्बर 1872 को ओट्टपिडारम नामक स्थान में हुआ। यह स्थान तिन्नवेल्ली जिले में है, जो मद्रास से लगभग 250 मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्वी दिशा में बसा है। इस प्रदेश के निवासी अपनी वीरता तथा विद्वत्ता के लिए इतिहास प्रसिद्ध हैं । इसी जिले में कवि भारती का जन्म हुआ था। और चिदंबरम की जयंती है इसी उपलक्ष में प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ.चिदंबरम पिल्लई को उनकी जयंती पर याद किया..

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ.चिदंबरम पिल्लई को उनकी जयंती पर याद किया है।

एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा;

"दूरदर्शी वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई को उनकी जयंती पर स्मरण करते हैं। उन्होंने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी योगदान दिया। उन्होंने एक आत्मनिर्भर भारत की भी परिकल्पना की और इसके लिए उन्होंने बंदरगाहों और पोत परिवहन क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रयास किए। वह हमारे लिए विशेष प्रेरणा के स्रोत हैं।"

चिदम्बरम ने १८९५ में वकालत पास की और उसी साल ट्रिची में वकालत आरंभ की। पिता का बनाया हुआ क्षेत्र था ही। आरंभ से ही उन्हें इस क्षेत्र में सफलता मिली। साथ ही पर्याप्त धन और यश भी कमाया जनता के सम्पर्क में आने से उन्हे जनता के सुख-दु:ख का परिचय मिला। जनता की गरीबी, दासता आदि का परिणाम देख उन्हे अत्यंत दु:ख हुआ। गरीब जनता से फीस लिए बिना काम करना आरंभ किया। इससे उनकी कीर्ति को चार चांद लग गए।

बीसवीं सदी का आरंभ हुआ। राष्ट्रीयता जोर पकड़ने लगी। १९०५ में भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जीवन-स्फूर्ति का संचार हो गया। भारतीय जागरण को दबाने के उद्देश्य से लार्ड कर्जन ने १९०५ में बंगाल के दो टुकडे कर दिए। बंगाल में विद्रोह हो गया। इसका प्रभाव समस्त भारत पर पड़ा। देश का नेतृत्व लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा विपिन चन्द्र पाल के हाथ में था। चिदम्बरम उग्र विचारों के थे सारे दक्षिण में, विशेषकर तामिलनाडु में, उन्होंने आग भड़का दी। तब से वह अंग्रेजों की आंखों में खटकने लगे। १९०७ में उन्होंने सूरत कांग्रेस में भाग लिया। उन्होंने स्वभावतः ही तिलक का साथ दिया। आगे चलकर जनता ने उन्हें "दक्षिण के तिलक" की उपाधि दी।

चिदम्बरम के पिता का नाम उलगनाथ था। वह अपने समय के एक सफल वकील थे और अपनी विद्वत्ता, उदारता तथा आदर्श चरित्र के लिए जनता में आदर के पात्र थे। योग्य पिता ने अपने प्रिय पुत्र की विद्या तथा लालन-पालन का सबसे अच्छा प्रबंध किया। बालक चिदम्बरम ६ वर्ष की आयु में टूटीकोरिन के अंग्रेजी स्कूल में भेजे गए। कालेज तथा वकालत की पढ़ाई ट्रिची में हुई । चिदम्बरम बचयन से ही मेधावी थे तथा खेल-कूद में सर्वदा अव्वल रहते। अपनी विनयशीलता के कारण वह अपने अध्यापक वर्ग में सप्रिय थे। जिस विषय को उन्होने सीखा उन्हें आशातीत सफलता मिली।

चिदम्बरम दक्षिण भारत में स्वदेशी आंदोलन के जनक थे उन्होंने विदेशी चीजों का बहिष्कार कराया। जनता में एकता की भावना जागृत की। साधारण जनता को उन पर महान आस्था थी। उनका कहना था कि ५०,००० अंग्रेजों को हम एक दिन में भगा सकते हैं यदि हमारे अंदर एकता हो जाए तो अंग्रेज यहां टिक नहीं सकते।

चिदम्बरम का सबसे बड़ा काम स्वदेशी जहाजरानी कम्पनी की स्थापना है। उन दिनों मद्रास के सभी छोटे-बड़े बंदरगाहों पर अंग्रेजी जहाजरानी कम्पनी का आधिपत्य था वह जनता को मनमाने ढंग से लूटती थी, भारतीयों को मजदूरी भी नाममात्र के लिए दी जाती थी। सारा व्यापार अंग्रेजों के हाथ में था। चिदम्बरम ने इस बात को अनुभव किया और अंग्रेजी कम्पनी की जड़-मूल से उखाड़ कर बाहर किया

अंग्रेजों ने चिदम्बरम को लाखों रुपये का लालच दिया | अंग्रेजीं ने दर घटाई, मुफ्त सर्विस आरंभ की पर उनको तिलमात्र भी सफलता न मिली। अंत में उन्होंने चिदम्बरम पर देशद्रोह का आरोप लगाकर कैद कर लिया। न्याय का स्वांग भी रचा गया। पर हिन्दुस्तानी के साथ न्याय कैसा ? उनको साढे छःसाल की जेल हुई। उस समय के न्यायप्रिय अंग्रेज लार्ड मार्ले ने लार्ड मिंटो को इसके विरोध में पत्र लिखा।

चिदम्बरम जब कारावास की अवधि पूरी करके बाहर आए तब जनता ने उनका हार्दिक स्वागत किया। उनका स्वास्थ्य गिर गया था आर्थिक स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गई थी। जहाजरानी के टूट जाने से कई हिस्सेदारों ने उनसे अपना धन वापस मांगा। वह घबराए नहीं, उन्होंने उनको धन देने का वचन दिया और फिर से वकालत शुरू की।

चिदग्बरम अपने समय में तमिल भाषा के चोटी के विद्वान थे। बचपन से ही उनकी लिखने की प्रवृति थी। स्वदेशी आंदोलन के आरंभ में उन्होंने जनता को अवगत कराने के लिए "विवेक भानु" नाम की मासिक पत्रिका निकाली। जेल में रहते हुए उन्होंने तीन ग्रंथ लिखे :- मानप्पोल वलव, अगमे पुरम् और वलिमैक्कुमार्गम्॥

वे तिरुवल्लुवर के बड़े भक्त थे। इसीलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में तिरुवल्लुबर के जीवन संबंधी सिद्धांतों की व्याख्या की है।

चिदम्बरम को गरीबी से बड़ी चिढ़ थी। पर गरीबों से उन्हें बड़ी सहानुभूति भी थी। तामिलनाडू में आज भी बातें प्रसिद्ध हैं कि उन्होंने न केवल गरीबों से बिना फीस लिए

वकालत की अपितु वह अपने तन के कपड़े तक उतारकर उन्हें दे दिया करते थे। इसीलिए उनके जीवन में सदा आर्थिक संकट बना रहा।

जून १९३६ में उनका देहात हो गया उस समय वह केवल ६४ वर्ष के थे। समस्त देश ने, विशेषकर दक्षिण भारत ने अपने प्रिय नेता की मृत्यु पर शोक मनाया।           

संदर्भ स्रोत - EPIC Hindi

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