क्या कभी नेपाल था भारत का अखंड हिस्सा? भारत में क्यों विलय चाहता था नेपाल? नेपाल में क्यों बैन हुई आदिपुरुष? आइए जानते हैं विस्तार से।

नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर विक्रम शाह ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव रखा था। जिसे नेहरू ने अस्वीकार कर दिया था। ऐसे में अगर नेहरू चाहते तो नेपाल आज भारत का हिस्सा होता।;

Update: 2023-06-20 04:30 GMT

ओम राउत द्वारा निर्देशित फ़िल्म आदिपुरूष पर उठा विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस विवाद की आग भारत में ही सीमित न रहकर नेपाल तक पहुंच गई है। एक तरफ जहां भारत में इसके बैन की मांग हो रही है तो दूसरी ओर भारत के पड़ोसी और मित्र राष्ट्र नेपाल ने इसे अपने देश में बैन कर दिया है। विवादित संवादों को लेकर छिड़ा विवाद अब बड़ा रूप धारण कर चुका है।

जानिए नेपाल में क्यों बैन हुई आदिपुरूष

दरअसल, बात बस इतनी सी है की, फिल्म में एक संवाद है जिसमें यह कहा गया है कि माता सीता भारत की बेटी हैं। बस इसी बात को लेकर नेपाल ने ऐतराज जताया है। नेपाल हमेशा से ही माता सीता को नेपाल की बेटी बताता आया है और श्रीराम को वह अपना जमाई मानता है। भारत के राज्य बिहार के सीतामढ़ी जिले की सीमा से करीब 20 किमी. की दूरी पर नेपाल राष्ट्र के जनकपुर में माता सीता का जन्म हुआ था। हालांकि, इस फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर इस पर अपनी सफाई देते हुए कहते हैं कि, "जब माता सीता का जन्म हुआ था उस समय नेपाल भारत का अखंड हिस्सा हुआ करता था"। फिल्म रिलीज होने पर इस संवाद को हटाने को लेकर नेपाल ने फिल्म के निर्देशक को 3 दिनों का समय दिया था और कहा था कि यदि 3 दिनों के अंदर इस संवाद को फिल्म से नहीं हटाया गया तो हम अपने (नेपाल) यहां इस फिल्म को बैन कर देंगे। और हुआ भी यही 3 दिन की डेडलाइन समाप्त होते ही,नेपाल ने आदिपुरुष को अपने देश में बैन कर दिया। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने विधिवत इसकी जानकारी मीडिया को दी।

क्या सच में नेपाल भारत का अखंड हिस्सा रहा है? आइए जानते हैं।

नेपाल का जन्म आज से तकरीबन 9 हजार वर्ष पहले नव पाषाण युग में हुआ था। हजारों वर्ष पूर्व से ही नेपाल की काठमांडू घाटी प्राचीन सभ्यता का एक अहम हिस्सा रही है। बात मध्यकाल की करें तो नेपाल मुगलई सल्तनत से अपने आपको बचाकर रखा और दिल्ली सल्तनत से अपनी दूरी बनाकर रखी। नेपाल का पहले नाम "गोरखा साम्राज्य" था। लेकिन वर्ष 1764 में इसका नाम बदलकर नेपाल कर दिया गया। एक तरफ जहां 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारत में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे तो वहीं अंग्रेजों से भी नेपाल ने अपने आपको बचाकर रखा। लेकिन 1814 से 1816 के बीच ईस्ट इंडिया कम्पनी और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में नेपाल पराजित हो गया। जिसके तहत नेपाल और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच एक संधि हुई जिसका नाम "सुगौली" की संधि रखा गया। संधि की शर्तों के अनुसार नेपाल को करीब एक तिहाई बड़ा भू भाग ब्रिटिश हुकूमत को देना पड़ा। जिसमें आज भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। नेपाल और भारत के बीच हुए सीमा निर्धारण में गंडक नदी के एक तरफ का हिस्सा भारत को जबकि दूसरा हिस्सा नेपाल को दे दिया गया। लेकिन 1923 में ब्रिटिश साम्राज्य के साथ हुए एक समझौते के तहत नेपाल को एक स्वतंत्र राष्ट्र मान लिया गया। लेकिन बावजूद इसके नेपाल का विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय अंग्रेजों के पास ही रहा। फिर आता है भारत की स्वतंत्रता का वर्ष 1947, और इस वर्ष ही अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद नेपाल पूरी तरह से अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त हुआ।

लेकिन क्या वास्तव में नेपाल भारत का हिस्सा रहा है। इतिहासकारों की मानें तो भारत के कई ऐसे साम्राज्य हुए जिनका हिस्सा नेपाल रहा है। जैसे कौशल महासाम्राज्य पांचाल महासाम्राज्य, मल्ल महासाम्राज्य, काशी महासाम्राज्य। इन तर्कों से पता चलता है कि नेपाल, भारत का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। लेकिन इसे कभी कानूनी मान्यता नहीं मिल पाई।

पंडित नेहरू के समय भारत में विलय चाहता था नेपाल।

यह बात बहुत ही रोचक है की एक समय ऐसा था जब नेपाल, भारत में शामिल होना चाहता था। लेकिन उस समय भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। इस बात का जिक्र मिलता है, भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा लिखी गई अपनी जीवनी "द प्रेसिडेंशियल ईयर" में। इस पुस्तक के अनुसार नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर विक्रम शाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव रखा था। जिसे नेहरू ने अस्वीकार कर दिया था। नेहरू का कहना था कि नेपाल स्वतंत्र राष्ट्र है और इसे स्वतंत्र ही रहना चाहिए। दरअसल,नेपाल में राणा शासन के बाद राजशाही शासन के दौरान नेहरु ने लोकतंत्र को मजबूत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसे में अगर नेहरू चाहते तो नेपाल आज भारत का हिस्सा होता।


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