नागरिक सुरक्षा विभाग, गाजियाबाद में चल रहे गोलमाल को बड़े लोगों का शह है हासिल

शिकायत दर शिकायत जारी है, लेकिन उसे नजरअंदाज करने के तौर तरीके भी लोगों की जुबां पर रहे हैं तैर

Update: 2020-01-24 12:37 GMT

अतिथि संवाददाता

गाजियाबाद। एक ओर जहां जिलाधिकारी डॉ अजय शंकर पांडेय ने विभागीय भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कलेक्ट्रियट परिसर में ब्लैक बॉक्स रखवा दिया है, ताकि लोग बेधड़क होकर विभागीय भ्रष्टाचार के मामले उन तक पहुंचा सकें और वैसे लोगों को बेनकाब करने में उन्हें सहूलियत हो। वहीं, जनपद में सक्रिय एक सजग व्यक्ति और एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता का आरोप है कि नागरिक सुरक्षा विभाग, गाजियाबाद में हो रही मनमानी पर जिला प्रशासन मौन है। शायद इसलिए कि सम्बन्धित मामले में जनपद के शीर्ष नेताओं की परोक्ष दिलचस्पी है। आरोप तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि राज्य की शीर्ष सत्ता भी इस मसले की अनदेखी जानबूझकर कर रही है, जबकि पत्राचार के द्वारा उसका ध्यान भी इस ओर आकृष्ट कराया जा चुका है।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रीतम लाल के एक व्हाट्सएप ग्रुप संदेश के मुताबिक, नागरिक सुरक्षा विभाग गाजियाबाद में निदेशालय के नियमों की अनदेखी कर संयुक्त अस्पताल की ओपीडी की पर्ची पर अनिल अग्रवाल डिप्टी चीफ वार्डन का नवीनीकरण किया गया, जो कि नियम विरुद्ध है। उन्होंने सवाल उठाया है कि ओपीडी की पर्ची को किस दृष्टिकोण से मुख्य चिकित्सा अधिकारी का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र माना गया। उनके मुताबिक, आलम यह है कि सभी साक्ष्य देने के बाद भी जिलाधिकारी सह नियंत्रक नागरिक सुरक्षा के द्वारा अभी तक उनके विरुद्ध ना तो कोई कार्यवाही की गई और ना ही नागरिक सुरक्षा के विभागीय अधिकारियों के द्वारा इस नियमों की अनदेखी करने पर दोषी मानते हुए उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही ना करना यह दर्शाता है कि यह निष्काम सेवा भी अब मय चिंता का विषय है। बता दें कि निदेशालय के पत्रांक संख्या 1670/अनु-1/89/2014 दिनांक 9-12-14 के अनुसार, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा जारी स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद ही नवीनीकरण किया जाए, लेकिन अनिल अग्रवाल का नवीनीकरण उक्त ओपीडी पर्ची पर कर दिया गया, जो गम्भीर बात है। 




वहीं, आरटीआई कार्यकर्ता मधुर शर्मा के एक अन्य व्हाट्सएप ग्रुप संदेश के मुताबिक, नागरिक सुरक्षा विभाग, गाजियाबाद के डिप्टी चीफ वार्डन अनिल अग्रवाल के फर्जी नवीनीकरण के कारण, वार्डन भी अनिल अग्रवाल की तरह ही अपना नवीनीकरण कराने मे लगे हुए हैं। उनका आरोप है कि उप नियंत्रक रविन्द्र कुमार ऑफिस में आते ही नहीं हैं, जबकि एडीसी दिनेश कुमार किसी की बात मानते नहीं हैं और अपनी मनमानी करते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सार्वजनिक तौर पर यह सवाल भी किया है कि आखिर कब तक इस विभाग की मनमानी चलती रहेगी। 

सूत्र बताते हैं कि नागरिक सुरक्षा विभाग, गाजियाबाद स्थानीय मीडिया को मैनेज करके प्राप्त धनराशि का भी वारा-न्यारा करता है। उसकी विज्ञापन नीति भी व्यक्तिगत सम्पर्कों पर आधारित है और इसी चक्कर में वह कतिपय राष्ट्रीय अखबारों की उपेक्षा करने में भी गुरेज नहीं करता है, जो जांच का विषय है। एक विभागीय जानकार ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बताया कि जिला प्रशासन से प्रभावित इस नागरिक सुरक्षा विभाग की व्यक्तिगत मनमानी और पक्षपाती उद्यम किसी सभ्य और सुसंस्कृत लोकतांत्रिक परम्परा का वाहक तो कतई नहीं समझा जा सकता है। इसलिए जिला प्रशासन को इन आरोपों को गम्भीरता से लेना चाहिए। क्योंकि जिन कानूनों के नाम पर कोई व्यक्ति  सजा पाता है, उन्हीं कानूनों के दांवपेंच का सहारा लेकर किसी अपात्र को पात्र घोषित करना या उसे बचाये रखना न्यायसंगत तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है।




 


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