एकल विधालय चलाने वालेअनुदेशक और शिक्षा मित्र तो सरकार को लगते है अच्छे, फिर मांग को पूरी करने में दिक्कत क्यों?

अगर इनको नियमित अध्यापक की श्रेणी में रखकर सरकार काम कराए तो योगी की पाठशाला पूरे विश्व में नाम रोशन कर सकती है।

Update: 2023-03-10 12:49 GMT

उत्तर प्रदेश के उच्च प्राथमिक विधालय में और प्राथमिक विधालय में अनगिनत जगहों पर अनुदेशक और शिक्षा मित्र उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की लाज रखते है। उन स्कूलों को विधिवत खोलकर शिक्षण कार्य कराते है। जबकि उन्हीं शिक्षा मित्र और अनुदेशकों को सरकार लाभ देने की बात पर मुकर जाती है क्यों? जबकि आज भी उन्हे कुशल मजदूर का वेतन नहीं मिलता है। 

योगी की पाठशाला नंबर वन है और रहेगी। इस योगी की पाठशाला नंबर वन का श्रेय किसी को जाता है तो उत्तर प्रदेश के डेढ़ लाख शिक्षा मित्रों और 27000 हजार अनुदेशकों को जाता है। स्पेशल कवरेज न्यूज के कार्यक्रम योगी की पाठशाला नंबर वन में रोज नए नए स्कूलों से अनुदेशक और शिक्षा मित्र शामिल होते है अपनी बात रखते है और बताते है कि किस तरह सुबह से शाम तक अपने छात्रों का अध्यापन का कार्य करते है। 

इन शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों में वेल क्वालीफाइड टीचर है जो इंटर मिडीएट तक के छात्रों को विधिवत एजुकेशन देने का काम कर सकते है। सरकार अगर इनका मानदेय बढ़ा देती है और समायोजन करने की बात कर देती है तो ये योगी की पाठशाला देश में ही नहीं पूरे विश्व में नाम रोशन कर देगी और छात्रों की संख्या भी बहुत ज्यादा होगी। 

इन्ही शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों के जरिए यूपी के कई स्कूल अकेले चलाए जा रहे है। एसा नहीं है उनमें बचके कम हों उनमे बच्चे और ज्यादा है। लगातार अधिकारी गण इस बात को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष ईमानदारी के साथ रखें तो इनका काम कोई नहीं रोक सकता है। इन्हे नियमित किया जा सकता है। 

बताइए ये कौन सा ठीक काम है एक अकुशल श्रमिक के वेतन से भी कम वेतन देकर प्रदेश के मासूम शिक्षित किए जा रहे है जबकि सभी सरकारें शिक्षा प्र ध्यान सबसे ज्यादा दे रही है। बता दें कि विश्व बेंक भी शिक्षा के नाम पर देश को बड़ी आर्थिक सहायता प्रदान करती है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत उत्तर प्रदेश सरकार को इन शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों को एक सम्मानजनक मानदेय देकर योगी की पाठशाला का नाम रोशन करने का मौका दिया जाना चाहिए। 

पिछले कई वर्षों से अनुदेशक और शिक्षा मित्र इसी ओह पोह में जी रहा है कि आबकी बार उसका कुछ न कुछ जरूर होगा लेकिन मार्च से शुरू होकर फिर मार्च आ जाती है नतीजा शिफर का शिफर रहता है। इस दौरान हजारों की संख्या में शिक्षा मित्र मौत की मुंह में भी चले गए। लेकिन किसी ने दो आँसू दुख के नहीं बहाए वो चाहे सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष सबके सब इस मामले में खामोश निकले। 

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