नदी पुत्रों पर अधिकार की जंग !!
यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर निषाद समाज की 16 उपजातियों के वोट बैंक पर सियासी निशाना …;
अवनीश विद्यार्थी
नदीपुत्र यानी नदियों के आसपास के इलाक़ों में सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभाव रखने वाला समाज यानी निषाद और 16 अन्यउपजातियों के साथ निषाद समुदाय कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बाथम, गौर, तुरा, मांझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, धीवर और मछुआ ..है जिनके सियासी रसूख़ को देखते हुए राजनैतिक दलों के मुँहे से पानी आ रहा है ।
निषाद समुदाय से जुड़े नेता उत्तर प्रदेश में इस वोट बैंक को कुल ओबीसी आबादी का लगभग 18 प्रतिशत और लगभग 25 लोकसभा और 160 विधानसभा क्षेत्रों में अच्छी उपस्थिति बताते है ।
यूँ तो विधानसभा,लोकसभा में इन जाति समूहों का प्रतिनिधित्व कम ही रहा लेकिन धीरे धीरे अपने अधिकारों और अपनी माँगों लेकर राजनैतिक चेतना ने समाज को वोट बैंक के रूप में एकजुट किया है । हालाँकि ये वोटबैंक चुनाव दर चुनाव अपनी दिशा बदलता रहा है ।पिछले डेढ़ दशकों में हुए राजनैतिक बदलाव का ही असर है की आज विभिन्न राजनैतिक दल वो राष्ट्रीय प्रभाव रखते हो या क्षेत्रीयअपना प्रभाव दिखा रहे है । यही नहीं बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले एक दशक से महादलित वोटबैंक का जोप्रयोग किया उसी कड़ी आगे चल कर खड़े हुए हम पार्टी और VIP पार्टी जैसे दल न सिर्फ़ सदन में पहुँचे बल्कि सरकारों का हिस्सा भी होगए । अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव थोड़ी ही दूर है लिहाज़ा वोट के लिए प्रयोगशाला में विभिन्न राजनैतिक रसायन परीक्षण होरहे है । बिहार के इन जातियों में प्रभाव रखने वाले दोनो दल VIP पार्टी के मुखिया मुकेश साहनी और हम पार्टी के मुखिया जीतन राममाँझी के बेटे और बिहार। सरकार में मंत्री संतोष माँझी उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके है और दोनो उत्तर प्रदेश में जातिगत प्रभाव वाले इलाक़ों में अपने लिए समर्थन की टोह ले रहे है ।
हालाँकि बिहार के प्रयोग के साथ उत्तर प्रदेश में भी बीएसपी के दलित वोट बैंक पर बनेप्रभाव को कुंद करने के लिए 2004 में OBC की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव विधानभवन से पारित करकेंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार को भेजा गया मक़सद था दलित वोट बैंक को बड़ा किया जाए और बसपा के एकाधिकार को ख़त्मकिया जाए साथ ही ओबीसी की दूसरी जातियों को आरक्षण का अधिकार अधिकतम मिले और उन पर सियासी पकड़ और कसी जाए। पर यूपीए की सरकार ने फ़ैसला नहीं लिया और वोटबैंक तब के सियासी समीकरणों के तर्ज़ पर ओबीसी शिफ़्ट के पैटर्न पर बसपाको स्थानांतरित हो गया । यही नहीं कई ओबीसी वर्ग से आने वाले नेताओं को ख़ास कर नदीपुत्रों को मंत्रिमंडल से लेकर सरकार में जगहदी गई ।
लेकिन अगले चुनाव में फिर दांव हुआ बसपा सरकार पूर्ववर्ती सपा सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ दिखती रही और नतिज़ावोट बैंक अबकि फिर से समाजवादी पार्टी की तरफ़ रुख़ कर गया और पहली बार उनकी बहुमत की सरकार बन गई । सरकार औरसंगठन सबमें नदी पुत्रों को जगह मिली पर अनुसूचित सूची में शामिल करने का मुद्दा लगातार गर्म रहा , अखिलेश सरकार ने भी दो निर्णयलिए एक तो अनुसूचित सूची में शामिल करने के पुराने प्रस्ताव को फिर से केंद्र को भेजा गया दूसरा सरकारी योजनाओं में विशेष कोटानिर्धारित किया गया पर अनुसूचित सूची का मामला फिर नहीं बना और नतिज़ा हुआ की अगले चुनाव में वोट बैंक फिर स्थानांतरित हुआऔर इस बार भाजपा के पक्ष में , हालाँकि बीजेपी की यूपी सरकार में कोई ख़ास महत्व नहीं मिला लेकिन 2017 के लोकसभा उपचुनावों में गोरखपुर की प्रतिष्ठित लोकसभा सीट पर इसी समीकरण के दम पर समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी के गठबंधन कर अपने उम्मीदवार प्रवीण निषाद को जिता लिया हालाँकि इससे पहले पूर्ववर्ती सांसद और यूपी के वर्तमान मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनावी टक्कर निषाद समुदाय के पूर्व मंत्री जमुना प्रसाद निषाद ही देते थे । प्रतिष्ठित सीट की हार भाजपा को तकलीफ़ देती रही और इस बीच 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने ख़ास रणनीति के साथ समाजवादी पार्टी - बसपा के महागठबंधन को झटका देते हुए निषाद पार्टी मय सांसद प्रवीण निषादभाजपा में शामिल कर उन्हें संत कबीर नगर से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया , प्रवीण लहर में फिर चुनाव जीत गए इधर निषाद पार्टीके साथ आने से गोरखपुर की प्रतिष्ठित सीट पर भी एक बार फिर भाजपा का क़ब्ज़ा हो गया ।केंद्रीय मंत्री और फ़तेहपुर से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति भी इसी समाज से आती है ।
इधर इसी बीच राज्यसभा उपचुनाव में भाजपा ने गोरखपुर के ही पहले बसपा में रहे जय प्रकाश निषाद को उम्मीदवार बना निर्विरोध जिता लिया । उत्तर प्रदेश में एक बार फिरचुनाव का बिगुल फूंक पुरानी कांग्रेस को पटरी पर लाने की कोशिश में प्रियंका गांधी के नेतृत्व ने नदी अधिकार यात्रा शुरू की गई , मक़सद साफ़ था पार्टी की निगाह इस बड़े वोट बैंक को अपने पाले में करने की थी, इधर भाजपा ने निषाद पार्टी के नेताओं को दिल्ली बुला कर मान मनव्वल की कोशिशें तेज की गई , बक़ौल संजय निषाद ( निषाद पार्टी के अध्यक्ष ) उनकी पार्टी चुनाव से पहले योगीमंत्रिमंडल का हिस्सा होगी जबकि उनके किसी सदन में कोई सदस्य नहीं है । अखिलेश यादव कुछ समय पहले फ़िरोज़ाबाद स्थितनिषाद समाज की कुलदेवी सियर माता के दर्शन कर वोट बैंक को लुभाने की कोशिश की , यही नहीं उन्नाव में निषाद समाज के पुराने नेता की प्रतिमा का अनावरण भी किया । समाजवादी पार्टी ने डॉक्टर राजपाल कश्यप के नेतृत्व में प्रदेश व्यापी अभियान भी चला रखा है । हालाँकि अब ये देखना दिलचस्प होगा की विधानसभा के 2022के चुनावों निषाद समूह वोट बैंक के रूप में सत्ता में भागीदार बनता है या फिर अलग अलग समूहों में बँट कर महज़ सियासी जोख़िम बन कर रह जाएगा ।