पीएम , सीएम स्वरोज़गार योजना बनी बैंकों के हाथों का खिलौना

बड़े-बड़े दावे किए जाते विज्ञापन जारी होते है ख़ूब प्रचार किया जाता है लेकिन ज़मीन पर हक़ीक़त बिलकुल विपरीत होती है यही हाल पीएम सीएम की स्वरोज़गार योजना का हो रहा है बेरोज़गार हताश और निराश है सरकार मदहोश हैं।

Update: 2020-09-17 04:28 GMT

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। भूख , ग़रीबी व मजबूरी यह ऐसे शब्द है कहने में और सुनने में बहुत अच्छे लगते है नेताओं द्वारा बड़े-बड़े भाषण दिए जाते है जिसे बहुत सराहया जाता है ख़ूब तालियाँ बजती है लेकिन बस यह सब वही तक सीमित रह जाता है हक़ीक़त में इसका अहसास तब होता है जब कोई इसका सामना करे।जहाँ एक ओर बेरोज़गारी की मार झेल रहे युवा स्वरोज़गार के लिए छटपटा रहे है , उनकी कोशिश है किसी तरह मज़बूत होकर भारत की गिरती जीडीपी को उठाने में अपना योगदान दे सके।

वही बैंक बेरोज़गार युवकों के इस सपने का मज़ाक़ बना रहे है उनके सपनों को पंख लगाने के बजाय बैंकों में पड़ी सरकारी कार्यालयों से स्वीकृत फ़ाइलें अपनी बेबसी पर आँसू बाँह रही है लेकिन उनका कोई पुरसाने हाल नही है।बेरोज़गारी के मुद्दे पर बढ़ती महँगाई पर केन्द्र की मोदी सरकार विपक्ष और बेरोज़गारों के निशाने पर है ,17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन को बेरोज़गार जुमला दिवस के रूप में मना रहे है तरह-तरह के आयोजन कर कुंभकर्णी नींद सोयी सरकार को जगाने के लिए कार्यक्रम आयोजित कर रहे है , क्योंकि सरकार में आने से पहले उन्होंने अच्छे दिन लाने का हर वर्ष दो करोड़ नए रोज़गार सृजन करने का कालेधन को लाकर हर व्यक्ति के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख रूपये देने के तमाम लोकलुभावन वायदे किए थे जिन्हें सरकार में आने के बाद जुमले कहकर टाल दिए नए रोज़गार देना तो दूर पुराने रोज़गार बचाना मुश्किल हो रहा है।

जिस तरीक़े से दिन प्रतिदिन बेरोज़गारी के आँकड़े बढ़ते हुए मोदी सरकार को आइना दिखा रहे है ताज़ा आँकड़ों पर नज़र दौड़ाने से पता चलता है कि अब तक लगभग दो करोड़ लोग अपना रोज़गार गँवा चुकें है।हालाँकि अपने दामन पर लगे इस बदनुमा दाग़ को मिटाने के लिए देखा जाए तो सरकार कोशिश भी कर रही है या दिखावा कर रही है लेकिन मोदी सरकार को बैंकों की हठधर्मी नीति के चलते सफलता नही मिल पा रही है लगता है बैंकिंग व्यवस्था इतनी बेलगाम हो गईं है कि वह किसी भी स्तर पर बेरोज़गार युवकों को स्वरोज़गार के अवसर प्रदान करना ही नही चाहती है ,उस पर किसी के आदेशों का कोई असर होता नही दिखता है।पूरे प्रदेश के नौजवानों ने प्रदेश भर के दफ़्तरों में अपने स्वरोज़गार के लिए आवेदन किए हुए है वहाँ से जैसे-तैसे उनके आवेदन स्वीकार भी हो चुके है लेकिन बैंकों में उनके आवेदनों पर कोई गंभीरता नही दिखाई जा रही है जिसके चलते वह बैंकों के चक्कर काटते-काटते थक चुके है। ज़िले स्तर के अधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद बैंक अपनी मनमर्ज़ी पर ही उतारूँ है।

सहारनपुर, शामली, मुज़फ़्फ़रनगर , मेरठ व बागपत के आँकड़ों से पता चलता है कि रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की योजनाओं को बैंकों में कैसे फँसा कर रखा गया है और वह कैसे दम तोड़ रही हैं और बेरोज़गार अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है।प्रधानमंत्री स्वरोज़गार सृजन योजना और मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजनाएँ सरकारी दफ़्तरों से स्वीकृत आवेदनों के मुक़ाबले बैंकों से मिलने वाली स्वीकृति बहुत कम है बल्कि अगर यह कहा जाए कि न के बराबर है तो ग़लत नही होगा।प्रधानमंत्री स्वरोज़गार योजना और मुख्यमंत्री युवा स्वरोज़गार योजना के तहत उद्योग लगाने के लिए 25 लाख रूपये और सेवा क्षेत्र के लिए दस लाख रूपये का लोन दिया जाता है ,लेकिन लगता है यह सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही सीमित होकर रह गया है।संबंधित अधिकारियों का कहना है कि लाभार्थियों का चयन एक प्रक्रिया के तहत कर फ़ाइलें बैंकों को भेज दी जाती है लेकिन बैंक लोन देने में आनाकानी कर देरी करते है जिसकी वजह से इन योजनाओं को सफलता की सीडीयां नही चढ़ाईं जा रही है हमारा प्रयास होता है कि स्वरोज़गार के तहत युवा रोज़गार करे लेकिन बैंकों की हिला हवेली के चलते यह योजनाएँ बीच रास्ते में ही दम तोड़ देती है।

प्रधानमंत्री स्वरोज़गार योजना के तहत यूपी के सहारनपुर में 490 आवेदन स्वीकृत किए गए, बैंकों ने मात्र 39 आवेदनों पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाईं, मेरठ में 370 आवेदन स्वीकृत किए गए जबकि बैंकों ने मात्र 37 आवेदनों को ही पात्र मानते हुए स्वीकृत किए, शामली में 71 आवेदन स्वीकृत किए गए बैंक ने मात्र 19 को ही लोन दिया , मुज़फ़्फ़रनगर में 190 आवेदन स्वीकृत किए गए बैंक ने यहाँ भी मात्र 46 ही आवेदनों पर अपनी स्वीकृति प्रदान की ,बागपत में 105 युवाओं के आवेदनों को स्वीकार कर बैंक भेजा लेकिन बैंकों ने यहाँ भी मात्र 13 नौजवानों को ही स्वरोज़गार करने के लिए लोन देने में अपनी रज़ामंदी दी यही हाल मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना का है इस योजना के तहत सरकारी दफ़्तरों से जिन आवेदनों को स्वीकृत किया उनका आँकड़ा भी उपरोक्त जैसा ही प्रतीत होता है।

मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना से सहारनपुर जनपद से 138 आवेदन स्वीकृत किए गए लेकिन बैंकों ने मात्र 6 आवेदन ही स्वीकृत किए , मेरठ में 224 आवेदन स्वीकृत किए वही बैंकों के द्वारा मात्र 17 आवेदन ही स्वीकृत किए गए ,शामली में पहली बात तो यहाँ आवेदन ही मात्र 27 स्वीकृत किए गए लेकिन बैंकों ने मात्र पाँच आवेदन ही स्वीकृत किए ,मुज़फ़्फ़रनगर में भी मात्र 32 आवेदन स्वीकृत किए गए यहाँ भी बैंकों का रवैया ऐसा ही रहा मात्र 8 आवेदन ही स्वीकृत किए गए, बागपत में 71 आवेदन स्वीकृत किए गए जहाँ बैंकों ने 17 आवेदनों को स्वीकृत किया गया यह हाल है हमारे बैंकों का, जहाँ बेरोज़गारी युवाओं को आत्महत्या करने को प्रेरित कर रही है जबकि नौजवानों को निराश नही होना चाहिए जीवन संघर्ष का नाम है इससे घबराना नही चाहिए यह बात सत्य है सफलता मिलेगी देर से ही सही यह बात अपनी जगह है लेकिन बैंक अपनी ग़लत नीति से हठने को तैयार नही है नोटबंदी के बाद से देश में बेरोज़गारी की संख्या बढ़ती जा रही थी।

24 मार्च 2020 को चार घंटे के नोटिस पर देश में लगाए गए लॉकडाउन ने और भयानक बना दिया है चारों ओर बेरोज़गारों की बाढ़ आई हुई है बैंक फिर भी अपनी पुराने ढर्रे पर ही चल इसको और जटिल बनाने में अपना योगदान दे रहे है , जबकि बैंकों को चाहिए था कि देश में आए आर्थिक संकट से निपटने के लिए दिल खौलकर आवेदनों को स्वीकृत कर देश में फैलीं बेरोज़गारी को दूर करने में अपना योगदान देते लेकिन नही यह तो कोई सहयोग करने के लिए तैयार नही है ऐसा हम नही सरकार के अफसर कह रहे है, लगता है वह भी मजबूर है कुछ करने या कहने की स्थिति में नही है।

हमने बहुत से आवेदन करने वाले नौजवानों से सम्पर्क किया जिसके बाद पता चला कि अभी तक उनके एक लाख रूपये या इससे ज़्यादा खर्च हो चुके है ज़िला उद्योग केन्द्र या खादी ग्राम उद्योग के अधिकारियों ने आवेदन स्वीकृत के नाम ख़ूब लूट मचाई की है उसके बाद भी उनका लोन मंज़ूर नही हो रहा है बैंकों में भी ख़ूब लूट हो रही है जो उनको घूस दे रहा है उनका लोन मंज़ूर किया जा रहा और जो नही दे रहा है उसको इतने चक्कर कटा रहे है कि वह थक हार कर ख़ुद ही घर बैठ जाएगा सच यही है।

सरकारें बड़े-बड़े दावे कर जनता में वाह वाही लूटती है लेकिन सच क्या है इसकी हक़ीक़त बस वही जानते है जो अपने जीवन को इन योजनाओं के तहत चलाने की सोचते है। सरकारी योजनाएँ चालू करते वक़्त ऐसा प्रदर्शन किया जाता है जैसे इस योजना के बाद सब कुछ सही हो जाएगा बड़े-बड़े दावे किए जाते विज्ञापन जारी होते है ख़ूब प्रचार किया जाता है लेकिन ज़मीन पर हक़ीक़त बिलकुल विपरीत होती है यही हाल पीएम सीएम की स्वरोज़गार योजना का हो रहा है बेरोज़गार हताश और निराश है सरकार मदहोश हैं।

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